Saturday, November 14, 2020

जायके को लेकर हर इक राय जुदा होती है,,खालिस देशी रोटी भात  का आशिक चीनी न्यूडल्स ,,और इतालवी पिज़्ज़ा को फिरंगी तहजीब वाली हिकारत से देखता है,,,पर पर्सियन समोसे ,,कचोरियों के चटखारे लेने से नही चूकता,, आखिर हजार बरसों का साथ जो है,,,,,मैकडॉनल्ड के फ्रेंच फ्राई किसी हाल में देशी नही है,,,पर मेथी आलू संग पूरी के बिना,,कोई भारतीय रेल यात्रा पूरी नही होती,,आलू भी कमबख्त पुर्तगालियो की पांच सौ बरस पुरानी सौगात ही तो है,,उस हरी लाल मिर्च के जैसे,,जिसकी छोंक के बिना भारत की कोई भी करी ,,मरी हुई ही होगी,,,हमारी काली मिर्च तो दक्कन के उस पार साम्भर ,,में ज्यादा महकती है,,,इन रंग भेदों के साथ,,ही छेत्रवाद का शिकार भी लज़्ज़त की दुनिया को
     

Tuesday, October 13, 2020

जायके को लेकर हर इक राय जुदा होती है,,खालिस देशी रोटी भात  का आशिक चीनी न्यूडल्स ,,और इतालवी पिज़्ज़ा को फिरंगी तहजीब वाली हिकारत से देखता है,,,पर पर्सियन समोसे ,,कचोरियों के चटखारे लेने से नही चूकता,, आखिर हजार बरसों का साथ जो है,,,,,मैकडॉनल्ड के फ्रेंच फ्राई किसी हाल में देशी नही है,,,पर मेथी आलू संग पूरी के बिना,,कोई भारतीय रेल यात्रा पूरी नही होती,,आलू भी कमबख्त पुर्तगालियो की पांच सौ बरस पुरानी सौगात ही तो है,,उस हरी लाल मिर्च के जैसे,,जिसकी छोंक के बिना भारत की कोई भी करी ,,मरी हुई ही होगी,,,हमारी काली मिर्च तो दक्कन के उस पार साम्भर ,,में ज्यादा महकती है,,,इन रंग भेदों के साथ,,ही छेत्रवाद का शिकार भी लज़्ज़त की दुनिया को
     

Wednesday, September 16, 2020

खेत मे धान ज्यों बढ़े,,तब माहू आया,,हरा फिर भूरा,,,कीटनाशक छींट कर माहू से मुक्ति तो हो ली,,पर धान अब रसायन से लतपथ था,,,यही चावल शरीर को स्टार्च देगा,,हमारी कोशिकाओं तक रसायन की दखल,,,ये एक रासायनिक युद्ध है,,,आपके और मेरे ऊतकों में ज़हरीली रसायन की परतें चढ़ी जा रही है,,,शासन मजबूर है सब्सिडी को,,उर्वरकों ,,कीटनाशकों ,,के रूप में उत्पादक किसानों तक पहुचाने के लिए,,किसान मजबूर है,,,बाज़ार की मांग पे धान उगाने के लिए,,जहर ऊगा कर हम जहर हजम कर रहे है,,,आखिर ये चक्र कैसे टूटे,,,
             दिपावली में आपके घर जो रोशनी होती है,,उसपर माहू धान का रस पीकर मंडराते है,,,

Tuesday, September 15, 2020

उफ़ ये उन्माद का दौर है,,,,लोग चीख रहें है,,,जिंदाबाद मुर्दाबाद,,, भय ,,जय पराजय,,,खोखले सपनों और गलीच आत्मस्वाभिमान की प्रवंचना का दौर,,,,,,हमारी आंखों का मोतियाबिंद पकने लगा है,, इलेट्रॉनिक मीडिया के निर्लज्ज  कैमरे हाँफते हुए दौड़ रहे है,,,,रिया के पीछे ,,,,कुछ तो बताइए,,,,क्या आपने मारा राजपूत को,,,, गांजा पीती है,,,,देश जानना चाहता है,,,,,कई स्वघोषित अभिमन्यु ,,चक्रव्युह में अकेले योद्धाओं से भिड़ रहें है,,,,,
            राफेल ,,,,अपाची ,,,न जाने कितनी मिसाईल बीजिंग और इस्लामाबाद में छोड़ आये,,,हम जीत चुके है,,हिंदुस्तान जिंदाबाद,,,गदर फ़िल्म का नायक तारा सिंह नारा लगा रहा है,,,,कभी यही मीडिया ,,खबर दिखाती थी,,पाकिस्तान करोंना में तबाह हो जाएगा,,अब डब्लू एच ओ,, ने प्रशंसा कर दी तो फिर ,,क्या कहें,,,,,
                       प्रश्न ये है,,कि क्या करोंना के वायरस ने मष्तिष्क में खलल पैदा कर दी है,,की हम नीद में भी बड़बड़ा रहे है,,,आपदा के दौर में ब्रिटेन के सबसे अतिवादी नायक चर्चिल ने अपने देश के लोगों को प्रलाप से बचाकर,,, प्रयास में जुटाया था,,,परिणाम था,,हिटलर की वायुसेना के पूरे बम समाप्त हो गए,,पर ब्रिटेन टस से मस न हुआ,,,,तो साहिबान खोखली खबरों के चटखारे पेट का हाजमा ही खराब करेंगे,,,,,,लब्बोलुआब यह है,,कि ग्लेडिएटर के दर्शकों की तरह,,,सत्ता को प्रेरित न करें कि आपको खूनी कुश्ती का नजारा दिखाए,,,,,युद्ध उन्माद हो या फिर आत्महत्या की शहीद कथा,,,,,ऐसी खबरों से बेहतर है,,, किसी पेड़ की पत्तियां गिन लें

Sunday, September 13, 2020

हिंदी दिवस को मैंने उसे,,,
गन्दी गाली दी
क्यू कि,,, 
इसी वर्तनी का बचा अर्थ था
 ,,शेष व्यर्थ था,,





भाषा अब वो जूठन है जो कचरे में फेंक दी जानी चाहिए,,आज के इंसान को संवाद के लिये क्या भाषा चाहिए,,,क्योंकि हम जो बोल रहे है,,,वो डाटा है भाषा नही,,,, शोले में गब्बर कहता है,,कितने आदमी थे,,,आज की पूरी भाषा ही ऐसी है,,,डाटा बेस,,, जब हम सम्वेदनाओं की जगह केवल फैक्ट्स का आदान प्रदान कर रहे है,,,,,कैसे हो ,,,वाट्स एप,,मेसेज,,,बेहतर,, उत्तर,,,कन्हा हो,,,ऑफिस,,कब आओगे ,,शाम तक,,फिर मिलते है,,,,भाषा शुध्दि की 

Wednesday, September 9, 2020

कायर

कायर संग कोविड की कारस्तानी,,,,,एक चेतावनी
देश की सरहद में ,जंगे हालात है,, चीनी सेना इस जद्दोजहद में है कि हमारे उत्तरी अभेद्य हिमशिखरों के दर्रों से होकर ,,,हिन्दुसानी शाख को दुनिया के सामने राख कर सके,,पर हमारे सेना के जज़्बे और तैयारी को सलाम ,,,चीनी चूहों को अब तक वो दरार ही नही मिली कि उनके नापाक इरादे कामयाब हो सके,,,,,क्या यही मुक्कमल तैयारी हमने ,,,इस चीनी वायरस के खिलाफ भी कर रक्खी है जो हमारे घर परिवार के दरवाजे दरार खोज रहा है,,,शायद नही,,,,,आंकड़े तो यही कह रहे है
              कुछ दिनों से कई जवां मौतों की खबर रोज का किस्सा हो चला है,,हृदय घात,,,, क्या ये सम्भव है कि 40 ,,50 उम्र के चलते फिरते लोग यू अचानक कार्डिक अरेस्ट की चपेट में एक साथ रुख सत ले रहे हो,,जनाब ये सीधा इशारा है,,,हम करोंना के दहशत ओर अफवाहों की गफलत के शिकार है,,,ताजुब्ब होता है कि वाट्स एप की ग्रुप के जहीन ओर तथाकथित दानिशमंद लोग,,,करोंना टेस्ट का न केवल विरोध कर रहे है बल्कि दुसरो को भी अपनी जहालत का शिकार बना कर ,,टेस्ट कराने से रोकते मिलते है,,ये अपराध है,,,किसी भय से कांपते शुतुरमुर्ग के जानिब रेत में सर छुपाने जैसा,,, और इस बकवास का नतिजा भुगतते है आप,,आपके अजीज,,,जब कोविड आपके फेफड़ो में काई की तरह अपनी बस्ती बना लेता है,,तब सीरियस लम्हो में हम आई सी यू के लायक ही रह जाते है,,जंहा अब तिल भर की जगह नही,,,सभी नामी गिरामी हस्पताल अब लबालब है,,,क्या कीजियेगा,,अपने परिजनों के धीर्मी पड़ती सांसों में प्राणवायु फुकने के लिए,,,,अपराधी आप खुद है
               राज्य शासन ने हर स्तर पे तैयारी कर रक्खी है,,,पर सबसे जरूरी है टेस्ट,,,,हम घर मे खांसते खाखरते ,,,खुद के डर को छुपाते ,,,यह यंकी कर चुके है कि मौसमी बुखार है,,,अरे धिक्कार है,,,जब रोज आपके चारो ओर चिताएं जल रही हो तब इतनी असावधानी,,,आज हमारे पास करोंना से लड़ने के सभी साधन मौजूद है,,वो भी घर मे बैठ कर,,पर तब जब शुरुआत में ही टेस्ट हो जाये,,जंहा दो तीन दिनों की देरी हुई ,,मतलब चीनी वायरस की चौकियां आपके फेफड़ो में जम जाएंगी,,ओर हस्पताल का एक बिस्तर नाहक ही आपकी गलती से भरेगा,,,जो हमे पहले ही पता लग जाये ,,की मर्ज क्या है होम आइसोलेशन के सहारे घर पर ही 9 से 10 दिन में करोंना की हार तय है,,पर पहले हम अपने डर से तो जीते
               मुझे यंकी है सरहद में हम मुस्तैद है पर क्या ये मुस्तेदी घर पर जरूरी नही,,जंहा दांव पर बस आप नही आपके बुजुर्ग,,बच्चे पड़ोसी सभी लगे हो,,,पिछले 14 दिन के अपने अनुभव से ओर ऐसे शुतुरमुर्गी प्रतिभाओ से बात कर यह कटुता मैंने पाई है जो उगल रहा हु,,,,करोंना का टेस्ट ही आपको ओर परिवार को बचा सकता है,,साथ ही शासन के संसाधनों का कुशल प्रबंधन करने का रास्ता बनाता है,,इस लिए हे न्यूज चैनल में देश प्रेम का रसास्वादन करते बुद्धि जीवियों,,,सरहद की चिंता छोड़ो,,पहले अपने घर की दरारों पे मुस्तैद हो जाओ ,,ओर भगवान के वास्ते लक्छण मिलते ही टेस्ट करवाओ

अनुभव ,(टेस्ट और होम आइसोलेशन के भरोसे आज 14 दिन बाद मेरा परिवार भी सुरक्छित है)

Tuesday, September 8, 2020

महफ़िल मेरे पाटन की रह रह के महक रही
कोविड तेरी वजह से बेजार हो गया हूं
अब तो विदाई लेले फेफड़ो से मेरे
अपनो से जाम  टकराने बेकरार हो गया हूं

Thursday, August 20, 2020

हे गौरी ,,जल झन पीना
भोले भंडारी बोले
नंदी महराज कंबिन्स हुए
ओकरो मुडी डोले
माता गौरी गुर्री गुर्री देखत तेकर बाद
लुगरा सांटी लाबे आजे,,तभ्भे रँहु उपास

हरितालिका तीज की बधाई

Monday, August 17, 2020

pora

पोरा तिहार के सजे बाज़ार से माटी के बैल जोडे और चुकिया बिसा लाये,,,,,इन मृण्मूर्तियों से आज सभ्यता की कहानी शुरू हुई ,,,कहानी उस दौर की है जब जंगल की एक घांस को हमने खेतों में उगाना सीखा,, बैलों के संग हल से खेत जोत कर पहले पहल ,,माटी के भीतर से सभ्यता की कथा शुरू हुई,,,त त त त,,,राजस्थान के कालीबंगा में हल से जुते खेत के  साक्छ यू तो 5000 वर्ष पुराने है,,पर लोहे के फाल वाले हलों ने बुद्ध के दौर में नगरीय क्रांति ही खड़ी कर दी,,,चमचमाती कारों के दौर से पहले इन्ही बैल गाड़ियों से राहें गुलजार रहती थी,,जिसकी बानगी राजकपूर की रेणु कथा पे आधारित फ़िल्म तीसरी कसम में देखिए,,इस कर के,,प्रेमचन्द ने अपनी कथा में हीरा मोती बैलों को नायक चुना,,,जो बैलो का साथ न होता ,,तो क्या होता,,
                  आज इतिहास का कालक्रम मृदभांडों पे आधारित है,, हर सभ्यता की पहचान उस दौर के विशेष मृदभांडों से होती है,,काले लाल ,,सैन्धव सभ्यता,, उत्तरीय ब्लेक एन्ड पॉलिश्ड पोटरी बुद्ध के काल के ,,लाल कुषाण कालीन मृदभांड,,,इस कुम्हार कला का ही सम्मान है पोरा तिहार,,,चुकिया,,चक्की की पूजा,,इन खिलौनों के साथ हमारी ग्रामीण संस्कार बचपन को दिक्छित करते है,,,,, इस त्योहार का जायका भी जुदा है ,,,कुर मुरी ठेठरी और खस खसी ,,खुर्मी ,,,,देशी सुवाद से लबरेज,, कूट रूंग कूट रूंग खाइये,,,,,हमारी किसानी तहज़ीब के इस तिहार पोरा की सभी को हार्दिक बधाईया,,

अनुभव

Monday, August 10, 2020

कोबिड

कहत कोबिड रे! मनखे जात
जम्मो दुनिया तन्हि कमात
आनी बानी के जीव औ प्रान
काबर जनमिस होही भगवान
बाढ़ गे तोर अस अत्याचार
तेकर सेती ले हव अवतार
थोथना ढाँके ले नई मिले परसाद
बेक्सिन खोज ले मनु के औलाद

Thursday, August 6, 2020

नाना जी

हमारे नाना जी कमाल के जादूगर भी थे,,उनके कई तमाशो के चश्मदीद हमारा छुटपन रहा,,,,सुबह बरामदे की तखत में उनकी बैठक जमती,,सामने की खिड़की से सूरज की रौशनी ग्रिल से छनती हुई दीवार पे बिखरती होती जिसमे तैरते गोला बीड़ी के धुंवे के छल्ले के बीच एक जादुई मंच बना जाता,,बिखरे सेविंग किट,,के बीच सिह सिह करती नानी के हाथों चीनी मिट्टी के कप में जब तीसरी चाय सुडुक जाती तब कंही वो खेला प्रारम्भ होता,,,उस दौर में बच्चों के लिए,,,रंग बिरंगी बाँटिया बहुमूल्य निधि होती थी,,,नाना जी पहले दोनों हाथों को मसलते,, फिर हमें दिखाते,,,खाली है ,,दर्शकों की सहमती,,, खाली है,,,अब देखो,,,ध्यान से ,,,,और मन्त्र उच्चारण जिसे हम कभी समझ न पाए,,,फिर दन्त हीन मुख से बाँटिया एक एक कर बरसने लगती,, बाटियों की ताबड़ तोड़ बारिश,, सबके हिस्से जादुई बाँटिया बट जाती,,,बजाओ ताली,,तड़ तड़ तड़,,,काफी बाद में जाकर पता लगा,,की पृष्ठभूमि में खड़ी छोटी मौसी इस जादुई खेल में उनकी सहायिका थी,,बांटी पीछे मुड़े हाथों तक पहुचाने में,,,एक शरारत भरा खेल भूत दिखाने का भी होता,,जिसके चपेडे में कोई एक बार ही आता,,, वो देखो भूत ,,कंहा ,,,बच्चा ऊपर खोजता,,,वो दे रे बुजा के,,,कंहा,,और फिर सुलगती बीड़ी चुट से पैर में जलती,,,बाल क्रंदन की ध्वनि से पूरा माहौल गूंज उठता,,,और नाना जी की हंसी,,,उहि तो है रे,,,खिन्नन्नंन्नं भरी नाना जी की हंसी जीभ निकाल कर खांसते हुए ही समाप्त होती,,,,,,ऐसे कई जादुई खेल रोज की दिनचर्या में शामिल थे,,,पर ये ऐसा खेल था जिसका टिकिट का पैसा भी आखिरकार हमे ही मिलता,,,गोल चवन्नी,,वो भी उनके कान से निकली हुई,,,,,,,,बाल मनोविज्ञान के सभी प्रयोग उस दौर में हम पर हुए,,,आज वो स्मृतियां ही किसी जादुई लोक की लगती है

Thursday, July 23, 2020

लॉक डाउन के दौर में,,,,स्मृतियां,, वन्य वैभव की

क्या गजब घाटी है साल वेली ,, अमरकंटक पर्वत को घेरे सतपुड़ा के ऊंघते अनमने जंगल के बीच से फुर्ती के साथ किसी सर्प सी उतरती है,,,,,,मानसूनी बादल किसी कटी पतंग से हरियाते साल वृक्ष की डालियो में फस कर फड़फड़ाते है,,गरजते फिर बरस पड़ते है,,,और पूरी घाटी जल धाराओं की कल कल से गूंजने लगती है,,,,,इसी प्राकृतिक एपोरा के बीच आदिम बैगाओं ने अपनी खेतों की छोटी डोलियां,, और कच्ची भूरी खपरैल की छत तान ली है ,,,,जिनसे लग कर ,,,एक रिजॉर्ट भी इस पूरे सांस्क्रतिक कलेवर को समेटे आपका इंतजार करता है,,,,साल वेली रिसोर्ट,,, 
               शहर केवल प्रश्न देंते है तनाव से भरे थकान से चूर मष्तिष्क को बहुत सहज जवाबो की तलाश बनी रहती है,,किसी सुबह जब आप इस रिजॉर्ट के आंगन में पसरे आम्र कुंज के नीचे बैठ ले ,,तो पपीहे की पीहू पीहू और कोयल की कुहू कुहू,, मन मे सिमटे बोधिसत्व को जाग्रत क्यू न करे,,,, नमी में भीगी घांस हरियाती ही जा रही है,,,चारो ओर ,,,काई लगी सीढियो से सम्भल कर उतरते देखा नीचे लगे हुए खेत मे दो बैल जूते हुए है ,,त त त त ,,,,की बोली समझते ,,,हवा नर्म ओर कई वन रेजीनो की सुंगन्धो से भरी धीमे धीमे,,,बस बह रही है,,,मधुमक्खीयां ,,तितलियों संग फूलों के चयन में लगी है,,,,वहाँ जंहा डूमर को वन बेल ने ऐंठ कर कोई कलाकृति बना दी है ठीक उसके नीचे,,कनखुजुरा टहल रहा है,,,फिर बड़ी फीकी मुस्कान लिए एक दुपहरी सजने लगती है,,,गुनगुनी ,,,टूक टूक टूक की ये आवज जो कंही दूर से आरही है ना ,,वो कॉपर स्मिथ बारबेट की कलाकारी है,,,जनाब,,, ये वक्त है,,,जायके का,,तो फिर रेस्त्रां की रसोई से गहरी लहसुनी प्याज की गंध क्यू नही उड़ रही,,,ये महक है उस छौंक की जो किसी मसाले भरे पंजाबी ढाबे से जुदा,,, देशी व्यंजन परोसता है,,,कुरकुरे कोहड़ा फूल के भजिये हो या फिर,,,खट्टी कढ़ी के साथ खेक्सी आलू और आम अथान की कलियों,,, उदर भरकर आराम और कुर्सी में पसर गए,,,
                     आखिरकार शाम उतरने लगी ,,ओर चारो ओर कीट पतंगे,,भिनभिनाने लगते है,,कंही कोई तारा बादलों के बीच दिख गया तो लगता है अभी टपक जाएगा, ,,,,,ये थोड़ा सा वक्त ही आपको वो सामर्थ्य देगा,,जिससे जिंदगी फिर नई नई लगने लगे

Wednesday, July 8, 2020

अब तुम बड़ी हो रही हो ,,कुहू
उस रोज तो बिल्कुल छोटी थी
तब भी यूँही रिसते थे बादल
तुम कठिन छंद में रोती थी
तब से मैं पापा हु






Saturday, June 20, 2020

लालच की संजीवनी बूटी
राम चरित मानस की कथा में श्रेष्ठ भक्त के रूप में बजरंग बलि देवत्व को प्राप्त हुए,, लेकिन अब कलयुग है भाई,,,,,अब श्री राम जब बजरँगी को संजीवनी बूटी लेने भेजे,तब हिमालय तक वो दलाली करने में जुट गया,,,,अपने बन्धु नल नील,, के साथ,,ट्रांसफर पोस्टिंग से लेकर,,ठेकेदारों की तलवागिरी,,,, पैसा कमाई का चक्र कुछ यूं चला,,की आखिरकार,,, श्री राम ने उसे हकाल दिया,,फिर क्या,,बजरंगी रावण ,,से मिल कर षडयंत्र करने लगा,,उसे शक्ति का मिथ्या अभिमान हो चला,,लेकिन वो भूल गया ,,की उसका अस्तित्व श्री राम के तेज से था,,,अब लालच में आकर जो उसने पूरी श्री राम की सेना पर जो लांछन लगाने शुरू किए,,उसका प्रतिफल तो भुगतना तय है,,आखिर भक्त ,,यदि अभिषक्त निकले तो फिर क्या हो,,

Friday, May 15, 2020

स्नेह की कोई भाषा नही होती
स्निग्ध की शेष अभिलाषा नही होती

सभी प्रियवर जनों के इस विशेष अवसर पर आशीष के पीयूष वचनों के लिए,,हृदय की गहराईयों से नमन ,नमस्कार,,धन्यवाद,,आपके इस अवसर पर मेरे प्रति अनुरक्त संवेदनाओ का संवरण मैं सहर्ष स्वीकार करते हुए,सदैव अनुग्रहित रहूंगा,,,,, आपका मनीष

Sunday, May 10, 2020

उम्र हर घड़ी ही बड़ी हुई
दुनिया भी कितनी बढ़ी हुई
मुश्किल हरदम ही खड़ी हुई
कंही बुरा रहा कंही अच्छा हु





बस तेरी आँखों मे मैं बच्चा हूँ

Thursday, May 7, 2020

स्कॉच,,,

शराब एक सामाजिक बुराई है,,जो परिवार को तबाह कर देती है,,,,कीरत जमीन में बैठ कर छटी क्लास का पाठ रट्टा मार रहा था,,,,ध्वनि एक कमरे के घर मे नीचे से ऊपर की ओर गूंज रही थी,,तबाह कर देती है,,,तबाह कर देती है,,,,,ऊपर चारपाई में घर के स्वामी नेतराम,,,लुंगी उधेड़े पसरे पड़े थे,,,,,,कुकर की सिटी ,,,बजाती ,,अर्धांगनी,,, मुस्कुरा रही थी,,,नेतराम ने गौर किया,,,शराब तबाह कर देती है ,,देती है,,,,,अबे चूतिया नंदन ,,एक ही पाठ में अव्वल आजएगा क्या,,,,जरा पाठ दो भी तो पलट ले,,,कुकर से भांप निकल रहा था

            ड्राइवरी की नॉकरी ,,,बेहद सवेदनशील मामला रहता है,,साहब की जान आपके हाथों

Tuesday, April 21, 2020

शहर की कहानी,,ये कहानी है रायपुर शहर की ,,जो आज छत्तीसगढ़ की राजधानी है,जो,,आज से लगभग 600 वर्ष पूर्व एक गाँव मात्र था,, रतनपुर उन दिनों छत्तीसगढ़ के हैहय कलचुरी शासकों की राजधानी हुआ करती थी,,,ऐसे में राजवंश के आपसी बटवारे ने,,रायपुर नगर के जन्म की पृष्ठभूमि रखी,,,हैहय वंशी शासकों ने शिवनाथ नदी को विभाजक रेखा मानते हुए,,उस पार के 18 गढ़ रतनपुर के हिस्से गए और शेष 18 गढ़ दूसरी शाखा को मिले,,और तभी खोज शुरू हुई एक नई राजधानी की,,,कुछ वक्त तक के लिये खल्लारी भी कलचुरी राजनीतिक केंद्र बनी,,आखिरकार राजा ब्रह्मदेव राय के शासन में हैहय वंशी राजधानी की खोज खत्म हुई,,,खारुन नदी के किनारे  जिसे आज भी हम रायपुरा ग्राम के नाम से जानते है,,,समय था 1409 ईसवी,,रायपुर शहर के नामकरण को लेकर इतिहास कारो में विभिन्न मत प्रचलित है,,, जैसा कि रायपुरा नाम से ही पता लगता है,,कि यह राय शब्द से निकला है,,राय अर्थात राजा,,राजा ब्रह्मदेव राय एवम उनके पिता रामचंद्र राय दोनों ही शासकों के साथ राय शब्द जुड़ा हुआ था,,,इसलिये 



Sunday, April 19, 2020

हवा जहरीली है बरखुरदार,,अबके,,नाक में रुई ठूस लो,,,समस्या साँसों में भड़की है,,,,फेफडे में केकड़े बिल खोद चुके है,,,सभी कुदरती किताबें ,,प्रेम का सबक सिखाती ,,सांसो की माला में सिमरे पिय का नाम,,फिर क्यू कर सड़कों मुहल्लों में एक दूसरे की सांसे घोंटने की सोसिअल अंडरस्टैंडिंग लोकप्रिय हो गई है,,,,करौना माई फुट,,,,,नफ़रत नापने की टेस्ट किट तो अब तक  आई,नहीं,,,न्यूज चैनलों में रोज महाभारत का टेलीकास्ट जारी है,दुर्योधन के नृशंस कृत्यों को धृतराष्ट्र  राष्ट्र राष्ट्र कह कर संरक्षण दे रहें है,,, थूक दो मूत दो,,पत्थर फेंक दो,, मुक्तिबोध कह गए,,अब अभिव्यक्ति के सारे खतरे उठाने ही होंगे,, ,पर किसे,,देश को,,कमाल है पहले वेक्सीन करौना की खोजी जा रही है,,

Friday, April 3, 2020

फ़रोना,,या फिर मरोना

फ़रोना,, या,,मरोना

,मसला ये था कि ठीक पड़ोस में रहा एक आम का झाड़,,,,दीवार के उस पार,,जड़ें पड़ोसी के आंगन गड़ी थी,पर धूप तलाशती डालियाँ कंहा माने ,,,,हमारी हवाई चौहद्दी का मण्डपाच्छादन हो रक्खा था,,, हरी हरी पत्तियां ,,जंहा बुढ़ाती ,,,कलाबाजियां खाते,, हमारी फर्श पे पीली कालीन बन पसर जाती,,,,उतरती दुपहरी की कूलर फेल गर्मी ,,, हमारी खिड़की तक पहुचने का दुःसाहस कभी न कर पाई,,करें तो भी कैसे सारी ऊष्मा,,तो आम मण्डप सोंख लेता,,, केवल दो फुट उस पार ,,दूसरे के स्वत्व का ये झाड़,,,जाने कौन जनम का रिश्तेदारी निभाते,,, सारा सुख हम पर उलेड रहा था,, और तो और घोसला बनाती पडकी,,या कुहकती कोयल,,पीलक भी इसी तरह की डाल में सहूलियत महसूस करती!!! कमी थी तो केवल एक,,,,ये आम बौराता तो जरूर था,,पर फरता नही था,,
          पड़ोसी रहे बड़े डिपलमेटिक टाइप,, शांत एवम भद्र पुरुष,,उनकी पैनी नज़र इस भेदभाव को गहराई से महसूस कर रही थी,,,और फिर उनके आंगन एक दूसरा झाड़ दसहरी आमों का भी था,,जो झाड़ चौहद्दी की मर्यादा को भी मानता था,,और मालिक के प्रति वफादारी के भाव से भी भरा था,,,, पिछले दो मौसम से अपने प्रतिद्वंद्वी को नीचा दिखाते दसहरी झाड़ ,,आचार की बर्निया भी भर रहा था और पुलाव के नीचे पक कर महक भी रहा था,,, लाभ हानि का फार्मूला दोनों झाड़ों के बीच लम्बी दरार डाल चुका था,,,
              इस मौसम के बौर जब आये तो पड़ोसी बड़ी देर से हमारे प्रति अनुरक्त पेड़ को निहार रँहे थे,,,छत पे छाँह का आनंद लेते हुए मुझसे मुखातिब हुए,,,यार अबकी जो ये नही फरा तो सोंचता हु,,,कटवा दूं,, थोड़े जोर से बोले,,,,,लाभार्थी हृदय कांप गया,, नही भैया,,,फ़रेगा कई प्रजाति थोडा वक्त लेती है,,मैं बोला,, और फिर,,,इतना सुंदर झाड़ है,,काहे कटवाएंगे,,,शायद मेरी ये प्रशंसा,,,हानि की भावना को और भभका गई,, बोले,,क्या सुंदर,,,जगह अलग घेरे है,,कचरा अलग,,,,,और फिर देखो उस दसहरी को,,तुलना ,,,आलोचना,,,झाड़ सुन रहा था लगा,,मैं फुसफुसाया,,,फर जा रे
                उस रोज दसहरी पूरे शबाब में हरे आमों से भरा ,,मानों  दूसरे को जिबरा रहा था जब पेड़ काटने के वास्ते दो मजदूर हमारी ओर की डालियों को बांध रँहे थे,,की कोई नुकसान पड़ोस में न हो जाये,,मैंने आखिरी बार संयत प्रतिरोध किया,,भैया काहे कटवा रँहे है,,अगला सीजन देख लेते,,,पड़ोसी बोले ,,,कोई फायदा नही ,,ये नही फ़रेगा,,,दूसरा दसहरी लगाएंगे अबकी,,,आरी चलने लगी,,,डालियाँ हरे पत्तों को समेटे गिरती गई,,और धूप मेरी खिड़की को घेरने लगी,,,अपने इस साथी की,इस विदाई की घड़ी मैं पड़ोसी के साथ डटा रहा,,,और जब हड्डियों के चरचराने के स्वर से मूल तना धराशाई हुआ,,,तो अवाक,,,,,,,,ऊपर की डंगाल पर दो सुनहरे पके आम लगे थे,,,,पड़ोसी ने मुझसे कुछ झेंपते हुए,,धीरे से वो आम तोड़ लिए,,, बाद में बता रहे थे,,पके जरूर थे,,पर थे खट्टे,,बेहद खट्टे,,,

अनुभव

Saturday, March 28, 2020

रविवार का ब्रेकफास्ट,,,देशी स्वाद से लबरेज,,,धर्मपत्नी द्वारा चूल्हे में सिकी पान रोटी ,,और बैगन दही की जुगलबन्दी के साथ,,,टमाटर का फदका,,,महफ़िल को और रौशन कर रही है,,हरी चटनी,मसालों से,भरी मिर्च ,,साथ ही भुजिया सेव का कुरमुरा पन,,,, टमाटर सब्जी के जायके में मेरे प्रयासों की भी खूबसूरती समाहित है,,इस तरह पेश है  देशी सुवाद से महकती थाली

Sunday, February 23, 2020

खुड़िया

जो खुड़िया झील न होती,,तो फिर खूबसूरती का अर्थ कुछ कमतर जरूर होता,,,मनियारी नदी पे बनी इस मानव निर्मित झील को मैकल की पहाड़ियों ने चारों ओर से मानो समेट रखा है,,पहरेदार है,,सतपुड़ा के घने,, ऊँघते अनमने,, जंगल,,,,नीली झील सूरज के साथ ,,जब जागती है,,तो अलसाई गुलाबी सी सलवटों से भर जाती है,,,,दूर देशों के प्रवासी परिंदे,,और यंहा के रहवासी कुहूकते चुहुकते गोते लगाते इसके आलस्य को जैसे भेदते है,,,प्रकीर्णित प्रकाश बिम्बों से चमकती ये पीर पंजाल सा वातावरण खड़ा कर देती है,,, फिर शाम भी उतरती है आहिस्ते आहिस्ते ,,इंद्रधनुषी छटा बिखेरते ,,रात चान्दनी से चमकती इस घाटी में एक आदिम वियोग गीत का अलाप होता है,,,,सुर्खाब या चक्रवाक का जोड़ा ,,जो हर शाम बिछड़ कर ,,इसे स्वरबद्ध करता है
                          प्राकृत काव्य विशारद ,,राजशेखर ने कर्पूर मंजरी नाट्य में,,,चकवा को सुंदरता में हंस से अधिक तरजीह दी है,,हिमालय पार से सुर्खाब का झुंड जाड़े में इस झील में उतरता है,,ऋग वैदिक काल से  साहित्य में उतरता वृस्मित सौंदर्य,,,,नोँउका विहार के दौरान ,,कंही गुल की कलाबाजियां ,,कंही सिकपर बतखों और बड़े पनकौवे की डुबकियां,,,और फिर तट पर बने कौसल भैया के खपरेल वाले टेंट हाउस में ,,,भिन्न भिन्न प्रजातियों की मछलियों के पूरे कुनबे से मुलाकात,,,चूल्हे में रँधाये,, धुंगियाये,, खट्टे साग का सुवाद,,,, खुड़िया के पास एक वन्य बस्ती ,,बैगा आदिवासियों की भी है,,जंहा जाना ,,अगली बार तय हुआ,,आखिर इस सौंदर्य को बार बार निहारने के लिए कुछ शेष तो छोड़ना ही होगा,,,खूबसूरत खुड़िया

Wednesday, January 22, 2020

दस्ताने डेंगू,,

जिले में महामारी फैल रही थी,,,साला ! एक मच्छर आदमी को मुर्दा बना रहा था,???,,,जोड़ों में दर्द,,तेज ज्वर,,और रक्त प्लेटलेट्स में कमी,, यानि डेंगू ,,, मौत का सैकड़ा पूरा होते ही ,जिल्ला प्रशासन की,,एक बेहद आकस्मिक ,,आपातकालीन,, और गोपनीय बैठक आहूत हुई,,,एजेंडा था ,,,मुकाबला डेंगू से,,
              दरबार सजना शुरू हुआ,,,सभागार में समूचे जिले के कोने कोने से अधिकारी पहुच रहे थे नमस्कार सर,,नमस्कार नमस्कार,,,अग्र पंक्ति में अपर जॉइंट डिप्टी कलेक्टरों की जमावट दूसरी ओर जिला पंचायत, पीडब्लूडी,एरिगेशन जैसे विकास  विभाग और अनुविभाग के सँजोर नायक ,,आबकारी शिक्छा परिवहन जैसे सुदृढ़ सरदार,,, विराजमान ,तत्पश्चात,पीछे की पंक्तियों में तहसीलों  से आये कुछ ऊंघते से अनमने योद्धा,,कुर्सीयां  कम पड़ रही है,,,,,झुंझलाता छोटा अधिकारी ,,बड़े अफसर को कुर्सी सम्मान सहित सौपता है,,,गजटेट वर्ग क्रम में अपनी ओकात का ध्यान रखना सिविल सेवा आचरण का प्रथम नियम है,,हाजिरी रजिस्टर के आते ही सभागार में हलचल के साथ हस्ताक्षर अभियान की शुरुआत हुई,,, हल्की फुल्की प्रोटोकाली हँसी,, और सब्जी बाजार से कुछ कम गूंज वाली वार्तालाप से महफ़िल गुलजार हो रही थी,,,कि अचानक,, लाल टोपी धारी संकेतक का प्रवेश
   यानि,,सावधान,,,जिलाधीश महोदय का आगमन,,,सट्ट फट्ट की आवाज के साथ पूरी पलटन खड़ी हो गई,,,साहब के विराजमान होते ही,,,,पुनः सभी उसी गति से  पसर गई,,एकदम किनारे बैठा कार्यवाही लेखक कलम लेकर मुस्तैद ,,साहब ने पूरे कच्छ को एकबारगी फोकस किया,,,,एडिशनल साहब ने निगाहों से ही बता दिया कि उपस्थिति पूरी है,, ओके,, शुरू करें,,तो आज का एजेंडा है,,डेंगू
               फाइल खुलने लगी,, एडिशनल साहब ने आंकड़ों की पहली लड़ी बिखेर दी,,,अब बॉल स्वास्थ्य अधिकारी के पाले में थी,,,जो प्रस्तावना में डेंगू की बारीकियों से होते हुए,,,एक एक स्वास्थ्य केंद्र की तैयारियों की जबरजस्त व्याख्या कर रहे थे, डॉक्टर कम है कर्मचारी भी कम है,,दवाई भी थोडी कम है, मांग पत्र भेज दिया गया है,,सविंदा नियुक्ति जारी है यानि कि,, व्यवस्था चाक चौबंद है,,पर महामारी का मूल है तो है गन्दगी,,,अब निगम अधिकारी ने गेंद सँभाली,,,नाली टू नाली ,,की सफाई की स्ट्रेटजी से लेकर घुरवा प्रबन्धन के क्रियान्वयन तक ,,विस्तृत रिपोर्टिंग,,,किन्तु,,,जब तक घरों में कूलर और गमलो में जमा पानी नही खाली होगा ,,मच्छर भुनभुनाते रहेंगे,,,जनजागरूकता सबसे जरूरी है,और,डी डी टी का छिड़काव भी,,  पी एच ई के ई- साहब बिना बताए अनुपस्थित है,,, कारण बताओ नोटिस जारी हो,,मीटिंग का प्रथम निर्णय,,,मादा शब्द का उच्चारण को सुनते ही ऊंघते हुए महिला बाल अधिकारी चौंक गए ,,पर ये जानकर की बात मादा मच्छर की हो रही है तो फिर से छोटी मीठी नीद के आगोश में समा गए,,,इसी तरह कई लोगों की तन्द्रा,नाश्ते के गर्म आलू चाप और चाय की महक से टूटी,,पर अंतिम पंक्ति तक पहुचते चाप और चाय दोनों जुड़ा गई ,,,