Tuesday, July 3, 2012

जैसे एक बच्चा अपने भविष्य को गढ़ने में हमारी मदद चाहता है ,,वैसे ही एक बुजुर्ग अपनी अवश्यभावी मृत्यु से लड़ने में हमारा संबल ,,,मृत्यु अकेलेपन के भय से भरी हुई होती है ,,एक अनजानी यात्रा ,,,ऐसे में उनका हाथ संभाले रखिये ,,,टूटती सांसे भी जीवन के आखिरी प्रेम घूंटो की प्यासी होती है ,,,,बंद होती आँखों को इस अहसास के साथ विदाई दे ,,की आप इस जगत में अपना हिस्सा छोड़े जा रहे है ,,,,,,,,आईये अपने बुजर्गो को अपना कुछ समय दे ,,,,जो कभी उन्होंने हमें दिया था ,,,,,,हमारा आज बनाने के लिए ,,,,,,,,,,,
लोकतंत्र के केक्टस ,,,
गिरफतार लश्कर आतंकवादी अबू जुन्दाल की माँ का कहना है " मेरा बेटा बेकसूर है , उसे क्यों पकड़ा गया??मुबई हमले में मारे गए लोगो की माओं का भी लगभग यही कहना है ,,हमारे बच्चे निर्दोष थे ,,उनके साथ ऐसा क्यों हुआ ,,,अंतर है तो इतना की अबू की माँ का बेकसूर बच्चा आज भी जिन्दा है ,,,और २६ /११ में मारे गए लोगो की माओ की गोद हमेशा के लिए सुनी हो चुकी है ,,,,,,अबू की माँ जानती है ,,की भारतीय न्याय व्यवस्था में उसके बेटे का गुनाह जल्द साबित नहीं हो सकता ,,गर हो भी गया तो सजा मिलना आसान नहीं होगा ,,अगर सजा भी हो गयी ,,तो भी उसके जिगर का टुकड़ा ,,सलाखों के भीतर ही सही ,,सांसे तो लेता ही रहेगा,,साथ ही एक माँ की मार्मिक अपील ,,दिग्विजय जी जैसे कोमल ह्रदय राजनयिक को उनके घर तक आने को मजबूर भी कर सकती है ,,,रही मुंबई में मारे गए लोगो की माओं की बात ,,तो उनके आंशु से इस लोकतंत्र की बंजर होती जमी में उगे केक्टस सीचे जायेंगे ,,जिससे उनका और हमारा हृदय सदेव बिधता रहेगा ,,,,,,,,,

अनुभव
कार नहीं का का का ,,,,,,,,र ,,,नहीं तो बेकार 

आदमी की पहचान आज कल उस गाड़ी से जानी जाती है ,,वह जिसमे घूम रहा है ,,,सफारी ,,स्कार्पिओ या पजेरो जैसी एस यु वी में घूमने वाले भले ही रायपुर की ट्रेफिक के लिए सिरदर्द हो ,,लेकिन उनके भरी भरकम राजनितिक व्यक्तित्व का बोझ ऐसी ही बड़ी गाड़ी ढो सकती है ,,मर्सडीज ,बी ऍम डब्लू या ओडी जैसी लम्बी गाडियों में घूमने वाले अपने व्यापारिक व्यस्तता की थकान ,,और अपनी फैलती दुकान,, का भार इन विदेशी कम्पनियों के हवाले कर सुखी होते है ,,,, सेंट्रो ,,मारुती में घुमते माध्यम वर्गी तो ,,अपनी गाड़ी के पे लगे एक स्क्रेच को याद कर सपने में भी कराह उठते है ,,,बचे पुरानी फिअट वाले तो उनकी औकात यह है की उन्हें रिक्शावाले भी साइड देना पसंद नहीं करते ,,,,अगर वाहनों के महत्व की तुलना पौराणिक हिन्दू देवताओ से करे तो कुछ ऐसी ही तस्वीर दिखाई पड़ती है ,,,,,,,,,
देवताओ में सबसे भारी एवं गज शीशधारी गणेश जी का वाहन चूहे को चुना गया ,,,यह तो अद्भुत व्यंग है ,,,वन्ही धन और समृधि की देवी श्री लक्ष्मी के स्वामी विष्णु भगवान का वाहन गरुड़ गति और पिक अप में तो बेहतर है लेकिन स्टाइल और डिज़ाइन में नारायण के स्टेटस का नहीं लगता ,,और माइलेज के हिसाब से मुर्दाखोर होने के कारण थोडा मिडिल क्लास लगता है ,,,इस मामले में भगवान शिव का वाहन नंदी जरुर लेण्ड क्रुसर वाला एस यु वी प्रभाव रखता है ,,जो उनके निवास स्थान पहाड़ो के लिए उपयुक्त भी,,इन्द्र का वाहन हाथी भी उनकी राजा वाली हैसियत के अनुरूप जरुर है लेकिन संसार के सभी तपो को भंग करने वाले उनके काम के लायक गति की अपेक्षा इससे नहीं की जा सकती ,,,,,जो भी हो देवताओ के लिए चुने गए वाहनों में तो और भी अधिक विरोधाभास दिखाई पड़ता है ,,,,खैर जो भी हो यह तो तय है ,,की वाहन का चयन ,आजकल ,काम की जगह पहचान से ज्यादा प्रभावित होता है ,,,,तभी तो २१ वी सदी में भारत के नेताओ ने भी अपनी ग्लोबल पहचान दिखाने के लिए अम्बेसडर को छोड़ कर महगी कारो के काफिले को चुना है ,,आखिर वही तो बढ़ते भारत की पहचान है

अनुभव

Saturday, May 26, 2012


आइ पी एल का तमाशा या  फिर  ग्लेडीएटर का खुनी युद्ध

हजारो वर्ष पहले  रोमन शासक ,,अपनी प्रजा का ध्यान मूल समस्याओ से भटकाने के लिए ,,बड़े बड़े कोलेसियम में ग्लेडीएटर का खुनी युद्ध आयोजित करते थे ,,,,जनता से इकठ्ठा टैक्स से मुट्टी भर आमिर वर्ग वैभव शाली जीवन जीता था और आम जनता अपने कष्ट  भूल कर इन खुनी तमाशो में खो जाती थी ,,,आज का आइ पी एल भी एक ऐसा ही तमाशा है ,,जिस नाटक का हर अंक तय है ,,,और आज भी जनता अपने कष्ट भूल कर ,,इस झूठे खेल पे ताली पीट रही है ,,,वाकई इतिहास अपने को दोहराता है ,,,रोम की एक और प्रसिद्ध उक्ति है ,,जब रोम जल रहा था ,,नीरो बंसी बजा रहा था ,,,आज हमारा रोम जल रहा है ,,, मनमोहन जी बंशी तो नहीं बजा रहे ,,क्योंकि उन्हें शायद बंशी बजानी भी नहीं आती ,,,,,,,,,,

अनुभव

Monday, May 14, 2012

खुशामद खोरी एक आर्ट है ,,,जिसका हाथ इसमें जम गया ,वह बिना पसीना बहाए ही ,,केवल यस सर ,,यस सर करके सफलता का मक्खन खाता है ,, महान लोग भी इन मक्खन बाजो से मुक्त नहीं रह पाए ,,, क्योंकि भक्त और चमचे में फर्क करना आसान नहीं है,, लेकिन सटीक मक्खन बाजी वही है ,,जब मक्खन लगवाने वाला भी इस भोरहा में ही रहे की मेरा प्रशंसक है ,,,और देखने वाले भी चमचागिरी का ठप्पा न लगा पाए ,,इसे कहते है सर उठा कर मक्खन बाजी करना ,,,बाकि रहे वो जो इस आर्ट में ढीले है ,,,वो अपने स्वाभिमान का भजिया तलते,,,इन चमचो को घोडा ,,गधा सब बेच कर बखानते रहते है ,,,और सफल खुशामद खोर ,,कुत्ते की तरह पूंछ हिलाता साहब के घर और दिल दोनों में जगह बना लेता है ,,,

Friday, May 4, 2012

नुपुर तलवार की जमानत अब अगर हो भी गयी ,,तो इतने दिनों के बाद वो कौन से साक्ष्य बदल देगी यह समझ से परे है ,,लेकिन कानून के घर देर है ,,अंधेर ,,ह्म्म्म ???? चलो ठीक  है ,,अंधेर नहीं है मान लेते है ,,,पर यह समझ ही नहीं आता ,,की दस बीस से अधिक अपराध करने वाले व्यावसायिक अपराधी गुंडों को पेरोल ,,या जमानत कैसे मिल जाती है ,,,हो सकता है की वह अभी दोषी साबित नहीं हुआ है इसलिए ,,,या फिर अदालत उन्हें अपनी योग्यता बढाने का मौका देती है ,,,,,लेकिन फिर भी जिसने कई वर्षो से अपनी आपराधिक प्रतिभा दिखाई हो ,,उसे पेरोल ??? भई कमाल है ,,,देश की न्याय प्रणाली भासा पर आधारित है ,,,और वकील भाषाशास्त्री ,,,जो वकील  जितनी भारी भाषा जनता  है वो उतना काबिल ,,,वकीलों की दूसरी खूबी है सेटिंग ,,वाह रे सेटिंग ,,लोअर कोर्ट नहीं तो हाई कोर्ट ,,,आखिर नोट और कोर्ट शब्द भाई भाई ही है ,,,,सजा का असली मजा तो गरीबो की ही किस्मत में है ,,जिनके लिए जेल के अन्दर बाहर में कोई ज्यादा फर्क नहीं होता ,,,,,,,,,,,,,,,

Wednesday, May 2, 2012

कृष्ण फिर बोले 

सत्ता का अश्वमेध यज्ञ प्रारंभ हो चूका है ,,,राजनीती की वेदी में और कई बलि चढ़ेगी ,,,समझौता ,अपरहण ,चर्चा ,,मध्यस्थ ,,,कर्मकांडों की तरह इस यज्ञ का हिस्सा है ,,,,एक अश्व पकड़ा गया ,,फिर बिना युद्ध के छोड़ दिया गया ,,यह
आधुनिक लोकतान्त्रिक तरीका है ,,,किन्तु रक्त फिर भी बहेगा ,,,धरती के नीचे से ,,जो तुच्छ है वो कुचले जावेंगे ,,,आखिर सिहासन और सत्ता का रूप बदल सकता है ,,स्वरुप नहीं ,,हजारो वर्षो में भी नहीं ,,

Saturday, March 10, 2012


गोबर्धन के ब्यारी माँ इमली के झार,,
तेमा रिथे परेत ,,नाम मुंडू ठेठवार ,,
काली संझकेरहा दुकल्हा ला धर  दिस ,,
डर्राये दुक्लाहा हा धोती माँ चिरक दिस ,,
आंखी कान टेडगा गा गे ,,
अपन डौकी लेईका ला भुला गे ,,
चैतु  बैगा हा खराटा झारू ले ठठाईस ,,
लाल मिर्चा के धुन्गिया माँ दू घंटा झुपायिस,,
फेर नै उतरिस परेत ,,,दुक्ल्हा नै सोझयाईस,,

Thursday, March 1, 2012


छत्तीसगढ़ के कई गाव माँ ,,
भारी दिखथे सीन
मरिया थापत छेना हे ,,
औउ डेविस कांदी लुवत हे ,,,
जोहन ,,,माछी  मारत हे ,,
ता ,,,सांद्रा कुकरी पूजत  हे ,,

Friday, February 10, 2012

जन गन मन अधिनायक जय हो,, भारत के अब भाग्य विधाता ,,

बटाला हॉउस माँ रोगहा पुलिस ,,बना दिस शमशान 
धर्म निरपेक्छ्ता काला कैथे ,,,सन्न पड़े सविधान ,,

इक दू ठन एक ४७ बर ,,,अतका टोटा फाडिस
देश भक्त लईका मन ला ,,दौड़ा दौड़ा के मारिस ,,

उत्तर प्रदेश चुनाव के बेरा,,सब्बो के सुरता आथे,,
अल्पसंख्यक आंशु पोंछे बर ,,जेन जेन भी जाथे,,

जोन देश के लाज बेच के ,,,ऐसे गद्दी पाता
तेकर जन गन मन अधिनायक जय हो,, भारत के अब भाग्य विधाता ,,

अनुभव

Thursday, February 9, 2012

भारत का रास्ट्रीय पर्व ,,,वेलेनटाइन डे,,,,,

श्री राम ने हजारो वर्षो पहले लंका विजय की थी ,,,लेकिन आज भी दक्छिन भारत तक दीपावली की रौशनी नहीं पहुच पाई है ,,,होली के रंग भी केवल मध्य भारत तक ही बिखरते है ,,,लेकिन एक त्यौहार जो नब्बे के दशक में पहले पहल भारत में आयातित हुआ ,,, केवल कुछ ही सालो में भारत वर्ष के हर एक कोने में उसकी धूम देखते ही बनती है ,,,सात समुन्दर पार से विश्व की सबसे प्राचीन संस्कृति को संत वेलेनटाइन का प्रेम भरा आशीर्वाद ,,,वेलेनटाइन डे
आवश्यकता अविष्कार की जननी है ,,,यह फलसफा इस पर्व पे सटीक बैठता है ,,विदेशी अतिक्रमण की दुहाई देने वाले ,,यह नहीं देख पाते की मदर्स डे ,, बदर डे या फिर ,,फादर डे जैसे दुसरे विदेशी पर्व ,,भारत में फ्लॉप रहे ,,स्वाभाविक है ,,हमारी संस्कृति पिता ,भाई या माँ के सम्मान के लिए कम मौके नहीं देती ,,,लेकिन प्रेम के प्रति हमारी दुहरी सोंच ने ही एक विदेशी त्यौहार को यह मौका दिया की ,,,वो गोपियों और कृष्ण की मुक्त प्रेम लीलाओं को पूजने वाले देश में ,,अपनी पैठ बना सके ,,,,,,खुलेपन के इस दौर के प्रेमी से यह अपेक्षा करना की वो छुप छुप के अपनी प्रेमिका की एक झलक पा कर केवल आन्हे भरे या फिर किसी ऐसे मौके की तलाश में रहे ,,जब उसकी प्रेयशी सबकी नजरो से दूर ,,अकेले में उसे प्रणय निवेदन के लिए मिले तो ,,,यह बात केवल ,,सांस्कृतिक ठेकेदारों को खुश कर सकती है ,चाहे हम चांहे या न चाहे युवा पीढ़ी ने साल का एक दिन अपने प्रेम के मुक्त प्रदर्शन के लिए चुन लिया है ,,,,या अपनी संस्कृति में ऐसे मौके पैदा करे जो प्रेम को अभिव्यक्त होने का मौका दे ,,या फिर अपने घर के बगीचे से भी गुलाब के फुल गायब होने का इंतजार कीजिये ,,,,
हैप्पी वेलेनटाइन डे ,,,,,,,,अनुभव

Tuesday, January 31, 2012

एक जाम ब्रिटिश प्रधान मंत्री के नाम ,,,,,टेन डाउनिंग स्ट्रीट 

एक समय था जब रायपुर के कोफ़ी होंउस की एक प्याली काफी ,,,देश के राजनितिक ,सांस्कृतिक मिजाज का स्वाद बता देती थी ,,,,रायपुर के काफी हॉउस में उन दिनों समाजवादी बूढों,,नव उत्साही पत्रकार ,,ऍम आर और युवा जोड़ो के संस्कृतिक मंथन का साम्भर बनता था ,,,समय बिता आज के वातानुकूलित काफी हॉउस में छटे हुए डोसा इडली प्रेमी केवल सस्ती और अच्छी पेट पूजा के निम्मित जमे मिलते है ,, वो विचार केंद्र वाली बात वैश्वीकरण के साथ ही हवा हो गयी ,,
आज शहर की सांस्कृतिक नब्ज मेग्नेटो माल के तीसरे माले में ,,टेन डाउनिंग स्ट्रीट में धड़कती और थिरकती है ,,,ब्रिटिश प्रधानमंत्री के निवास के नाम पे करारा व्यंग करते युवा जोड़े ,,स्काट लैंड की बारह साल पुरानी स्काच हलक से उतार कर ,,,किसी राक संगीत की धुन पे झूमते एल्विस प्रिअशले का भारत की पुण्य धरती पर पुनर्जन्म सा आभास देते हैं ,,,महिला सशक्ति करण का नारा यंहा नाचती हर शिला मुन्नी और जलेबी बाई की ठुमको से और सशक्त होता है ,,,,जाहिर है ग्लोबलाइसड्ड युवा पीढ़ी को इस वैश्विक मनोरंजन तरीके से जुदा नहीं रखा जा सकता ,,,,फिर चाहे कितने ही भगवा रंग रंगे स्पीड ब्रेकर रस्ते में डालो ,,,शहर का युवा जान गया है की ,,जिन्दगी मिलेगी न दुबारा

अनुभव

Sunday, January 29, 2012


पागल तापस ,,,,,,रायपुर के इतिहास का  दस्तावेज ,,,,,

रायपुर   शहर में वैसे  तो पागलो  की कमी  नहीं  है फिर  भी  एक युगातित   पागल इन सबो में खास है ,,,उसका जनप्रचलित नाम है तापस ,,,दीवारों पर चिपके गुप्त एवं चिकित्सीय    किस्म के विज्ञापनों की चलती फिरती छबी ,,,,,गए तीस वर्षो से तो मै उसे इसी तरह देख रहा हु ,,,पुराने शहर की सीमा आप तापस के विचरण छेत्र से जान सकते है ,,रामसागर पारा से कोतवाली ,,,लाखेनगर से लेकर बूढ़ा पारा ,,,,तापस इस त्रिकोण पर मानो घडी की सुई  की तरह हजारो वर्षो से तेजी से चक्कर काट रहा है ,,, और मुक्तिबोध जी की कविता के  ब्रह्मराक्छ्स की तरह कोई मंत्र बुदबुदाते चलता है ,,,,इतने दिनों में रायपुर में काफी कुछ बदल गया ,,राजधानी बनी ,,,लाल और पीली बत्ती की गाडियों से शहर की सड़के पट गयी ,,,,लघुशंका एवं जुए के अड्डो के रूप में प्रचलित  खंडहरों पे भी काम्प्लेक्स एवं मॉल तन गए ,,,,लेकिन तापस मानो चलते  फिरते  प्रेत  की तरह आज तक नहीं बदला ,,,,उसने बाजारवाद के प्रभाव में कभी बाबा या चमत्कारिक पुरुस बनने की कोशिस नहीं की ,,तब जबकि उसमे ये सभी संभावनाए निहित है और दौर भी ऐसे लोगो का है ,,,या फिर उसे कोई ऐसा व्यावसायिक सोंच वाला प्रमोटर नहीं मिला जो उसकी नग्नता और पागलपन भरी हरकतों में से कोई चमत्कारी शक्ति खोज सके ,,,,,तापस ने छत्तीसगढ़ को बनते देखा ,,बढ़ते देखा ,,,यंहा के संसाधनों के अंधाधुन्द उपयोग से ,, स्पंज आयरन एवं कोल मायनिग से बरसते धन से ,,,घरो को बंगलो में ,,फिएट को बी ऍम डब्लू  जैसी कारो पे बदलते देखा ,,,,लेकिन वो कल  भी नंगा था आज भी नंगा है ,,,एक आम  छत्तीसगढ़इया की जिन्दगी की तरह जो अपने संसाधनों को लुटते तो देख रहा है ,,लेकिन उसकी जिन्दगी आज भी उस लाभ से वंचित है ,,,जो उसका वाजिब हक़ है ,,,,,,
                                 तापस रायपुर के इतिहास का वो दस्तावेज है जो राजनितिक व्यवस्था को इस नग्न सत्य का दर्शन कराता है की दो रूपया चावल योजना से पहले भी यह धरती उसका पेट भर देती थी ,,लेकिन इस माटी के संसाधन लुटाये जा रहे है तो फिर बदलाव हर मट्टी के घर  तक दिखना चाहिए ,,,,

अनुभव