Saturday, June 21, 2014

झीरम में खेलते बच्चे

झीरम में खेलते बच्चे
लाल आँखों वाला सफ़ेद बाज हवा में तैर रहा था...निचे घांस में घूरता एकटक ...इनही झाड़ियो में घसीटते हुए वो भी नीचे घाटी की ओर सरकता गया .. बांस के झुरमुट में..उसे अपनी चितकबरी वर्दी की बांयी ओर एक जख्म महसूस हुआ..हाफते हुए वो टिक गया एक दीमक की बाम्बी की आड़ से..और ध्यान से उन आवाजो को सुनने लगा ..जो उपर की सड़क से आ रही थी..हवा में बसीयाती बारूद की गंध और गोलियों की आवाज ...गोड़ी भासा के नारे...और हंसी
                    उसने घाव से रिसते खून पे हथेली धर दी लगा शायद अब खून बहना कुछ रुक गया हो .पर दर्द का अहसास अब तक नही था ..था तो केवल वो भयानक भय ..जो झींगुरो की तरह चारो और से उसे घेरे था ..झुन्न्न्न्न्न्न्न्न्न्न..मौत ऐसी ही खामोसी से धीरे धीरे उसकी सांसो में गूंज रही थी ..उसने अपनी आंखे मुंद ली....घर का आंगन .. अपनी माँ के साथ खेलते बच्चे ... ...बच्चे जो जिद्द कर रहे हो पापा आज मेला जायेंगे...बच्चो के गुलाबी गाल ..जिसे उसने युही हाथ बढ़ा कर छूने की कोशिश की .और...खून फिर बहने लगा था ..बिलकुल लाल ..काला गरम् ...उसने अपनी आँखों को फिर बंद कर लिया ...  बच्चे  अब भी खेल रहे थे ...मेला जाने को तैयार ..कलफ वाली नीली साड़ी में महकती बीवी ...और फिर वो खुद बचपन में पहुच गया ...अपनी माँ की गोद में ...माँ की मसालों से भीगी उंगलियों की खुसबू ..... बारूद की गंध ने उसे फिर जगा दिया...
               उपर सड़क से आवाजे निचे उतर रही थी...उसकी सांसे बढने लगी ...उसने कभी मौत को लेकर अब तक सोंचा ही नही था ..खुबसूरत जिन्दगी से दूर ले जाते इस न होने के अहसास के बारे में..जिन सांसो पे कभी ध्यान ही नही दिया वो सिमट रही थी .. अजीब सी सिहरन ..
          लगा इन उतरती आवाजो के पहुचने के पहले ही अपनी बंदूक से ये डर   खत्म कर दू ..आखिर अब तो उसे ढूंढ़ ही लिया जायेगा ..पर फिर  इस विचार को झिडक दिया.कुछ घड़ी ही सही ..अपने उस आंगन को और उस जिन्दगी को ... एक बार फिर देख तो लू ... संगी साथीयो के साथ..उन गलियो में दौड़ते हुए...सामूहिक हंसी  ...सब कुछ कितना मोहक  ..और अब ये भय इन सब से दूर होने का ..अकेले होने का ..फिर उसे लगा जैसे उपर से उतरते ये लोग जल्द ही उस तक आ जाये ..वो इस अकेले पन में जाने से पहले किसी का साथ चाहता था ..अपने दुश्मन का ही सही....आवाज अब बहुत करीब आ गयी थी ..उसने अपनी डबडबायी आंखे खोल ली..... ठीक सामने उसकी जैसी ही वर्दी में कुछ लोग खड़े थे ....तनी हुई बंदूक के सामने ...अब की बार उसने आंखे नही मुंदी ...अपनी आती हुई मौत को देखने के लिए वो अब अकेला नही था...तभी लाल  आँखों वाले बाज ने नीचे अचानक गोता लगाया उड़ गया...चोंच में कुछ सपने दबाय...

अनुभव