Sunday, April 27, 2014

लुट गया खजाना

लुट गया खजाना
भेंखू कहता है राजा तरिया में हंडिया है ..खजाना गडियाया था राजा ने हडिया में....पूरा गाव जानता है ..बात पूरानी है .जब फुलझर राज के राजा ने गाव में खुदवाया था ये बड़ा तरिया ...आल ओउलद नहीं था सो यग्य हवन किया और सारा  खजाना गडिया दिया ..दू आदमी का बलि दिया था वो समय ...तो आज भी  हर साल दू आदमी को खीँच देता है खजाना वाला हडिया..
          रात को गुम्म्म्म्म्म्म्म्म गुम्म्म्म्म्म्म सांकल बाजता है तरिया में ...गाव वाला जानता है संझकेरा बाद नई उतरना है पानी में ...लेकिन जो पौ फटा.. तो ये घाट से वो तरी तक जान दे .. गाव भर का मनखे गुड़ाखू मंजन घिसते मारे सकला जाता है.खेती किसानी से लेकर राजनीती तक का चर्चा होता है इन्हा .नंगरा लईका मन का रेला ..पचरी से कूदता है हरियर पानी में .फचाक ..नोनी दाई लोग पोलका छाती में बांधे  डुबकी  मारते है और कल  के डुबकी कढ़ी का सुवाद  गोठियाते है .जो अब नल ट्यूब बेल आ गया तो ठीक...नयी तो ईही पानी पीओ.. इहि पानी धोवो...
                          आधा पचरी के बाद ओ किनारा तक ताड़ बबूल का भारी झाड़ी झंखार है ..तरिया किनारे किनारे ..कांटा कुंटी के मारे गाय गरवा भी नई जाता ओ सोझ...कमल कमुदनी और कुम्भी लटाया है पानी में ..ओउ अजब गजब परेवा पंछी ..काला सफ़ेद ऐरी..बत्तख ..पनडुब्बी .कोकडा.मच्छरंगा....झुण्ड का झुण्ड डुबकी मारते .. पंखा सुखाते...बिहनिया से संझकेरा तक . ढंग ढंग का आवाज ..टीही टीही टिटुक ...गाव के सियानं कहते है ये परेवा पंछी सैनिक है .खजाना के रखवार ..मारना मना है इनको ..जाड में लाल मुड़ी वाला बत्तक्ख भी तो आता है .साल भर का हिसाब किताब लेने ..राजा का खबरी .. फेर आज कल के गावं का लईका मन का बिचार अलग है जो खजाना है तो बौरो ...साला दू ट्यूब वेल डाल के पानी पलो दो खेत कोति..  हडिया अपनेच आप उफल जायेगा .... फेर क्या ..सब लाल..निस्तारी के लिए दू तालाब और तो है
                             बात लग गया ...गरमी के धान में जो पानी पलोया के सब ट्यूब वेल फेल...राजा तरिया का भी पानी सोखा रहा है तली का चिकना माटी दिखता है ..ये बड़ा बड़ा दरार...वो किनारा माँ होहि सरपंच ..जतका बांचे पानी है बोहा दो..और आखिर तरिया ख़ाली हो गया ....फेर  हंडिया.. हडिया नहीं उफला..गावं वाला कहते है खजाना था सरपंच अकेल्ला लूट दिया ...देख ले ललिया गया है नवा हौंडा असप्लेंडर बिसाया है...उधर सुक्खा उजाड़ तरिया में धुर्रा उड़ रहा है..पचरी सुन्ना...कोई हे बक बक नही..पंछी परेवा सब उड़िया गिया ..सच तो है लुट गया खजाना ..
अनुभव
               

Saturday, April 12, 2014

सुख दुःख की रंगीन टोकरी

सुख दुःख की रंगीन टोकनी
..स्कुल की दीवार से लगकर थी रेवा दाई की बैठक...उस कोने को कभी खाली ही नही देखा था..सुबह पाली की प्रार्थना से पहल्रे ही छाते के नीचे टोकरी जो सज जाती तो फिर शाम की घंटी बजने तक  अनवरत जारी ...उस जादू की टोकरी में एक पूरा खट्टा मीठा संसार बसता था..पिटे हुए विद्यार्थियों के लिए ठंडी हरी सत की गोली..या तीखा  काला चूरन...चटखारी लडकियों के लिए कच्ची इमली और खड़ा नमक..उबाऊ क्क्छाओ के बीच राहत देंने वाली बोइर कूट की डंडी ..या फिर उंगलियों में फ़सने वाला गर्बीला नड्डा ..जो मुह से लग कर तो गरजता था फिर यु घुल जाता की जैसे कुछ खाया भी की नहीं.गजब की विविधता.सुख दुःख के स्वादो को समेटती एक रंगीन दुनिया...दोपहर की बड़ी रिशेस में रेवा बाइ के गिर्द एक घेरा बन जाता..पांच पैसे से लेकर एक रूपये तक का लम्बा व्यापार..फिर भी पाई पाई का ऐसा पक्का हिसाब की खरीदी के पहले ही ग्राहक का अकाउंट स्टेटमेंट निकल आता..तोर कल के पचास पैसा बाचे हे..कलिंदर के चानी नयी खाए रहेस..इंकार की कोई गुंजाईश ही नही.स्कुल में तो फिर चल भी जाये..यंहा तो हाजरी देनी ही होगी..गुरूजी से ज्यादा रोब था रेवा का..सो हर विद्यार्थी का केरेक्टर सर्टिफिकेट यंहा से भी जारी होता था..तै महराज के लईका ओकर संग झन खेले कर...बदमाश हे वो टूरा ह..हेडमास्टर का चेहरा तो अब कुछ धुंधला भी गया पर रेवा का वो बड़ा लाल टीका और गोदने से भरा चेहरा आज भी याद है
                              यूँही एक बार थोडा झिझकते हुए गाड़ी उस किनारे रोक ली..बूढी रेवा वैसे ही जमी हुई...पर आज भी  उतनी ही तेज याददाश्त ...उसने पूरा बचपन उलद दिया ..आज के साहब बनने की नीव खोद रही थी..तैं ता शुरू ले होशियार रहेस..व्यापार पे भी चर्चा जरूरी थी सो बोली..अब नई रह गे महराज ..सामने दुकान खुले ले पहिली जैसन कंहा रिहि..समोसा बर्गर के सामने खस्ता नड्डा ध्वस्त हो गए थे...चमकीली रेपर वाली चाकलेटो के सामने पीपी गोलियों के रंग फीके पड गए..काफी कुछ बदल गया था... पर अर्थव्यवस्था के चढ़ाव का इतना ही असर उस रगीन टोकने में हुआ था की चवन्नी अट्ठनी की सीमा  अब रूपये से पांच रूपये तक पहुच गयी थी..लेकिन जो नहीं बदला था वो था रेवा का मिजाज..बोइर कूट हाथ में धरते हुए बोली ..तोर   लईका मन बर हे महराज..अभी पैसा झन दे ..उधारी में रीही ..फेर आबे

अनुभव

Saturday, April 5, 2014

फेर फर जा रे महुआ

फेर फरही महुआ.....
फागुन लगे में महुहारी जाड ....टप्प टप्प गिरता है महुआ झाड़ से फल ..बिहिनिया बिहिनिया.. .चक पिउंरा..अउ रसा भरे गुल्ला...चलो रे...पूरा गाव जंगल में सकला गया...टोकनी थैला लिए...दूर तक फैली मदमस्त सुगंध...
                   सूंघता हुआ लम्बी थूथन वाला काला भालू भी उतरता है पहाड़ी से मचकते मचकते....आखिर उसका भी हिस्सा है इस खजाने में..तो जन्हा हिस्सेदारी है वंहा झगरा लड़ाई भी..पर साल सोखवा को महुआ झाड़ पास भलुवा भेटा गया...सोखवा का तेंदू लौठी नींग दिया .. भागा सोखुवा फेर भलुवा को  पायेगा .. दुनो पैर बिच टांग चेप भकरस ले मुड़ भसरा गिरा दिया  .. जो ककोमाँ ..ता सारा ..पूरा चुंदी मुड़ी झूल गे....लहूलुहान...आज भी घाव ले लहू बोहाता है...फेर वाह रे महुआ .... पहिला कुनकुना धार मारो ..दरद पीरा सब फुर्र्र..
                       गावं भर में जियादा सेन्तु बैगा बिनता है महुआ ..काहे ... बघवा के परसादी ले.. जंहा गावं वाला घुसा जंगल भीतरी वन्ही ...झारी के पाछू दहाड़ा बघवा..भागो रे  ..बड़े जान बघवा ..कोन देखिस रे..रेचका हर ..आवाजे भर सुने हों फेर पोटा कांप गे ददा....ये हर बस ककोमे नही.. टोटा ल धर के खिंच दिही ...पूरा गावं भीतरिया गया...खार में बघवा आ गे हे.....फेर सेन्तु बैगा के  अंगना में टोकना टोकना महुआ...गावं वाले जानते है...सेन्तु बघवा ल ऐसन फूक मारथे के बघवा डिगे नहीं बांध देथे ...जतका बिनना है बिन .पूरा गावं वाला बैगा से गोहार लगईस...तब जा के डोंगरी खार को बांधा सेन्तु बैगा....मजाल फेर बघवा के जो आये...बिनो रे खतरा टल गे हे..
            त्रिलोचन गुप्ता के किराना दूकान में मार महुआ गोंजाय हे ..बोरा बोरा ..सुखा महुआ पांच रूपया किलो..ताजा तीन रूपया...सेन्तु के अंगना जैसे दस अंगना भर सूखता हुआ महुआ...पूरा गावं भर का कर्जा उधारी छोटाता है ईही टाइम..सोखवा पर साल इलाज पानी के लिए दस हजार कर्जा लिया ब्याज किये अठारह हुआ...गुप्ता सेठ गुसिया गया है... ये दारी का पैसा टप्प टप्प उठा रहा है ..पुराना कोंन चुकाएगा रे..भालुवा बघवा से डर्रायेगा तो कैसे छुटेगा करजा...सोखवा अपने घाव पे हाथ फेरते बोला...छोंट दूंगा...सोखवा सोचता है...भालुवा बघवा का घाव तो भरा भी जाए..सेठ का करजा कैसे भारयेगा....फेर फर जा रे महुआ
अनुभव