पोरा तिहार के सजे बाज़ार से माटी के बैल जोडे और चुकिया बिसा लाये,,,,,इन मृण्मूर्तियों से आज सभ्यता की कहानी शुरू हुई ,,,कहानी उस दौर की है जब जंगल की एक घांस को हमने खेतों में उगाना सीखा,, बैलों के संग हल से खेत जोत कर पहले पहल ,,माटी के भीतर से सभ्यता की कथा शुरू हुई,,,त त त त,,,राजस्थान के कालीबंगा में हल से जुते खेत के साक्छ यू तो 5000 वर्ष पुराने है,,पर लोहे के फाल वाले हलों ने बुद्ध के दौर में नगरीय क्रांति ही खड़ी कर दी,,,चमचमाती कारों के दौर से पहले इन्ही बैल गाड़ियों से राहें गुलजार रहती थी,,जिसकी बानगी राजकपूर की रेणु कथा पे आधारित फ़िल्म तीसरी कसम में देखिए,,इस कर के,,प्रेमचन्द ने अपनी कथा में हीरा मोती बैलों को नायक चुना,,,जो बैलो का साथ न होता ,,तो क्या होता,,
आज इतिहास का कालक्रम मृदभांडों पे आधारित है,, हर सभ्यता की पहचान उस दौर के विशेष मृदभांडों से होती है,,काले लाल ,,सैन्धव सभ्यता,, उत्तरीय ब्लेक एन्ड पॉलिश्ड पोटरी बुद्ध के काल के ,,लाल कुषाण कालीन मृदभांड,,,इस कुम्हार कला का ही सम्मान है पोरा तिहार,,,चुकिया,,चक्की की पूजा,,इन खिलौनों के साथ हमारी ग्रामीण संस्कार बचपन को दिक्छित करते है,,,,, इस त्योहार का जायका भी जुदा है ,,,कुर मुरी ठेठरी और खस खसी ,,खुर्मी ,,,,देशी सुवाद से लबरेज,, कूट रूंग कूट रूंग खाइये,,,,,हमारी किसानी तहज़ीब के इस तिहार पोरा की सभी को हार्दिक बधाईया,,
अनुभव
Read latest newslatest newslatest newslatest newslatest news latest news latest news This
ReplyDelete