Thursday, January 7, 2016

डकार

मेरे हिस्से बहार नही आती
डाँट खा कर डकार नही आती

काम कमबख्त कर्ज से बढ़ते
दिन उंघते ,नीद रात भर नही आती

बेइज्जती का हिसाब न कर अनुभव
इज्जत इस शहर किसी घर नही आती

Friday, January 1, 2016

नववर्ष

जाने कितने दिनों के बाद,,,, नववर्ष की पहली दुपहरी बिलकुल खुल कर बिताई ,, दोस्तों के साथ ,,,हरी घांस  पर बिछी चटाई ,,, कई हाथों के बिखरे जायके,,और गुनगुनी धुप छानती झुरमुटों के नीचे जबरजस्त गपशप ,,,,नदी खुद मैली हो रखी थी नही तो ख़्वाहिस डुबकी लगाने की भी थी ,, खैर,, ग्राम सेमरा के बाड़े में रात की खिचड़ी दावत ,, और पुते लिपे कमरों की बिखरी आदिम महक में मोहा गए ,,वाकई गावँ की परछी से बड़ा और हैपनिंग बैंकवेट हॉल कोई हो नही सकता,, सभी दोस्तों को धन्यवाद वर्ष की इस खूबसूरत शुरुवात के लिए,,,