Thursday, July 23, 2020

लॉक डाउन के दौर में,,,,स्मृतियां,, वन्य वैभव की

क्या गजब घाटी है साल वेली ,, अमरकंटक पर्वत को घेरे सतपुड़ा के ऊंघते अनमने जंगल के बीच से फुर्ती के साथ किसी सर्प सी उतरती है,,,,,,मानसूनी बादल किसी कटी पतंग से हरियाते साल वृक्ष की डालियो में फस कर फड़फड़ाते है,,गरजते फिर बरस पड़ते है,,,और पूरी घाटी जल धाराओं की कल कल से गूंजने लगती है,,,,,इसी प्राकृतिक एपोरा के बीच आदिम बैगाओं ने अपनी खेतों की छोटी डोलियां,, और कच्ची भूरी खपरैल की छत तान ली है ,,,,जिनसे लग कर ,,,एक रिजॉर्ट भी इस पूरे सांस्क्रतिक कलेवर को समेटे आपका इंतजार करता है,,,,साल वेली रिसोर्ट,,, 
               शहर केवल प्रश्न देंते है तनाव से भरे थकान से चूर मष्तिष्क को बहुत सहज जवाबो की तलाश बनी रहती है,,किसी सुबह जब आप इस रिजॉर्ट के आंगन में पसरे आम्र कुंज के नीचे बैठ ले ,,तो पपीहे की पीहू पीहू और कोयल की कुहू कुहू,, मन मे सिमटे बोधिसत्व को जाग्रत क्यू न करे,,,, नमी में भीगी घांस हरियाती ही जा रही है,,,चारो ओर ,,,काई लगी सीढियो से सम्भल कर उतरते देखा नीचे लगे हुए खेत मे दो बैल जूते हुए है ,,त त त त ,,,,की बोली समझते ,,,हवा नर्म ओर कई वन रेजीनो की सुंगन्धो से भरी धीमे धीमे,,,बस बह रही है,,,मधुमक्खीयां ,,तितलियों संग फूलों के चयन में लगी है,,,,वहाँ जंहा डूमर को वन बेल ने ऐंठ कर कोई कलाकृति बना दी है ठीक उसके नीचे,,कनखुजुरा टहल रहा है,,,फिर बड़ी फीकी मुस्कान लिए एक दुपहरी सजने लगती है,,,गुनगुनी ,,,टूक टूक टूक की ये आवज जो कंही दूर से आरही है ना ,,वो कॉपर स्मिथ बारबेट की कलाकारी है,,,जनाब,,, ये वक्त है,,,जायके का,,तो फिर रेस्त्रां की रसोई से गहरी लहसुनी प्याज की गंध क्यू नही उड़ रही,,,ये महक है उस छौंक की जो किसी मसाले भरे पंजाबी ढाबे से जुदा,,, देशी व्यंजन परोसता है,,,कुरकुरे कोहड़ा फूल के भजिये हो या फिर,,,खट्टी कढ़ी के साथ खेक्सी आलू और आम अथान की कलियों,,, उदर भरकर आराम और कुर्सी में पसर गए,,,
                     आखिरकार शाम उतरने लगी ,,ओर चारो ओर कीट पतंगे,,भिनभिनाने लगते है,,कंही कोई तारा बादलों के बीच दिख गया तो लगता है अभी टपक जाएगा, ,,,,,ये थोड़ा सा वक्त ही आपको वो सामर्थ्य देगा,,जिससे जिंदगी फिर नई नई लगने लगे

Wednesday, July 8, 2020

अब तुम बड़ी हो रही हो ,,कुहू
उस रोज तो बिल्कुल छोटी थी
तब भी यूँही रिसते थे बादल
तुम कठिन छंद में रोती थी
तब से मैं पापा हु