Tuesday, August 25, 2015

जाति जाती नही ,,माथे पे दर्ज है
पितृ कर्ज का चुकारा ,,मेरा फर्ज है

Saturday, July 25, 2015

वैसे ही

वैसे ही ,,,,,
उस रोज वो डरा हुआ था कल की मीटिंग के आंकड़े पूरे नही थे ,,,इस लिए अपने दफ्तर में , बचे हुए काम देर रात खत्म कर रहा था ,,अचानक फिर बुरी तरह डर गया,,वो ,,,उसने उस कर्मचारी को देखा था ,,जो कुछ अरसे पहले ही मर चूका था,,,,बन्धी हुई  घिग्घी को तोड कर उसने पूछ  ही लिया ,,,बड़ी अजीब बात है कि तुम तो मर चुके हो,, शायद,,, मैंने सुना भी था ,,
             मरा हुआ आदमी मुस्कुराया ,,,बोला ,,हाँ मरा हुआ ही था,,,पर अब तो जिन्दा हु लगता है,,,,, उसकी घिग्घी कुछ और घुल गई  ,,मरने के बाद भी ,,ऐसा क्यू लगता है ,,,उसे परेशान देख कर मरा हुआ आदमी आगे बढ़ा ,,,देखो मैं जब जिन्दा था तब भी  मेरा परिवार खाना खाता था ,,आज भी खा ही लेता है वैसे ही ,,मेरे दोस्त आज भी महफिले सजा रहे है ,, और तुम आज भी मेरी मेज पर वैसे ही फाइले निपटा रहे हो ,वैसे ही,,सब कुछ वैसा ही तो है जैसे मैं जिन्दा था  ,,हाँ,कुछ चीजे जरूर बदल भी गई है पर फिर ये बदलाव भी एक दिन बदल ही जायेगा,,,वैसे ही,,
                      लेकिन फिर भी तुम तो नही हो न,,, वो बोला,,,,मरा हुआ आदमी परेशान सा दिखा,,,,हा नही  हु ,,,पर अब लगता है मैं तब भी कन्हा था,,,या फिर था भी तो जैसे आज हु ,,,,या फिर जैसे तुम हो,,,,आज मैं मर कर कुछ कर नही पाता ,,तुम भी ???  ,,,चीजे तो वैसे ही होती जाती है ,,,,,ये कहते हुए मरा हुआ आदमी मुस्कुराया ,,,,,उसने भी अब माथे का पसीना पोंछ लिया ,,,और फिर से एक नई फ़ाइल उठा ली,,,जैसे कह रहा हो  ठीक है,,,लेकिन मैं तो अभी जिन्दा ही हु,,,, भले ,,, वैसे ही
अनुभव ,,,,

Wednesday, July 22, 2015

डार्विन

डार्विन की थ्योरी सर्वाइवल आफ द फिटेस्ट ,,भी न्यूटन के तीसरे नियम पे ख़तम होती है ,,क्रिया के बदले प्रतिक्रिया,,, हर एक श्रेस्ठ प्रजाति जो इस धरती पे राज करती है अपने अधिकतम विस्तार के पश्चाद् नष्ट हो जाती है डायनोसारस की भाँती ,,और फिर सबसे कमजोर जीव फैलते है बन्दरो से विकसित आज के मानव की तरह ,,,विकास को ही लें,,,अफ्रीका में बन्दर से मेधावी बन्दर होमोसेपीएन्स विकसित हुए ,,विकास का स्रोत अफ्रीका आज सबसे पिछड़ा छेत्र है ,,

Friday, July 17, 2015

नक्शे

नक्शे  खजाने के हुआ करते थे सुना था,, राजश्व विभाग में खेतों के मिले,, पर किसी छुपे खजाने से कम नही,, वैसे ही रोचक,,,ध्यान देने पर पता चला की सभी नक्शे त्रुटि नामक रोग के शिकार है,,खसरों में बटी इनकी सीमा घुचकती चलती है पटवारीयो और आर आई की खिची रेखाओं से और हमारे दस्तखत से,, खसरे मुद्रा की तरह निस्तारी भूमि के बैंक से निकल कर काश्तकारों के खातों में कब बिखर जाते है पता ही नही चलता,,,ये खसरे जब चुनाव पूर्व बिगरते है तो पट्टा के सम्मान पाते है और उसके बाद अतिक्रमण का आरोप ,,खैर अगले चुनाव तक ये आरोप ही पुरुस्कार का रूप धर लेते हैं,,,सो ट्रेज़र हन्टर इसी जुगत में लगे होते हैं कि कैसे इन पट्टो से होते हुए निस्तार भूमि के खजाने तक पहुचा जाये,, और एक दिन सरकारी नक्शो की घांस जमीन इन भूमाफियाओं के ऋण पुस्तिकाओं में खास जमीन की तरह चमकने लगती है

Monday, June 29, 2015

सोती हुई वो पांच बहने

सोती हुई वो पांच बहने,,

मानसून की पहली झड़ी से पके काले जामुन यूँ बरसे, कि सेन्ट फ्रांसिस चर्च का बैकयार्ड अब जामुनी हो चला था,, सिली मिट्टी पे भटकते रोवैंदार भुंसे के कीड़ों के बीच शुर्ख मलमल कीट भटक रही थी,, जब बादलों से  रिसती फीकी धूप जर्मन सिस्टर ब्रिथेट की बूढी नीली आँखों के कोनो पे चमकी ,,,और फिर  खुदाई,,,शुरू हो गई; कब्रो में सोती उन पांच सिस्टर्स  को जगाने के लिए ,,,
          ,,, ये सिस्टर्स ईश्वर का सन्देश लेकर यंहा कभी आई थी इस वन्य प्रदेश में,,अब केवल बूढी ब्रिथेड ही बची थी ,,जो उस रोज  बारिश से उफनती हुई जोंक नदी में कूदी ,,उन बहती सिस्टर्स को बचाने,,उन्मादी झाग छोड़ते भंवर के बीच आखिरी चींख गूंजी फिर वो छटपटाते हाथ खिंच गए भीतर  ,  ,,जब पानी उतरा तब फूला हुआ शरीर किनारे लगा ,, यंही चर्च के पीछे वो संस्कार हुआ जब सभी मुरझाये चेहरे अंतिम प्रार्थना बुदबुदाते रहे  और सिस्टर्स के क्राउन पे सजा मलमल का लाल गुलाब ही खिला हुआ था ,,,, मोक्छ के उस दिन के इन्तजार में जब सभी रूहें फिर निकलेंगी अपनी कब्रो से ,,
                 पर  विकास का राजमार्ग यंहा पहिले पहुंच गया,,और अब ये कब्रे ;जो रस्ते पर थी खुद रही थी ,,,,,,,चर्च के दूसरे अनुयाई भी अब यंहा इक्कठे थे फुस्फुसाने लगे ,,हमारे पूर्वजों का मोक्छ ,,,उनकी कच्ची कबरें भी यंही बैकयार्ड में कंही थी,,,,पर कन्हा,,प्रशासन पूरी जमीन तो नही खोद सकता,,,पीटर की रात की शराब सांसों के साथ भभकी जब उसने पूछा ,,,साहब मेरा बाबा घलो इंही गड़ा रहा,,मोक्छ न पाये सन्ही,,,फेर मुवावजा तो हमारा भी तय हो,,,आखिर,,,ब्रिथेड फिर सुबकने लगी,,,,,इन सिस्टर्स के साथ उसने जो मोक्छ का रस्ता यंहा कभी दिखाया था,,,,भटक गया ,,,खुदाई रुक गई,,,कब्र के भीतर रखे ताबूत को तो जामुन की फैली जड़ों ने जाने कब से बेध दिया पर उस क्राउन का जूना मलमली गुलाब वैसे ही खिला हुआ था,,,,
अनुभव
               
               

Saturday, June 27, 2015

गुटखा

गुटखा
जन्हा मेंछा का पिका फूटा ,,,कि साला ढंग ढंग का हार्मोन ऎसा खेल खेलता है कि बोचकता हाफ पेंट ,,पतलून हो जाता है ,,,माने हुआ छोकरा जवा रे,,,,मन कूदने लगता है की कुछ नया करू और इसी दूराहे पे हमारे मोहल्ले के युवा दो टीम बाँट लिए,,एक थी जिंदगी को धुवें में उड़ाने वाली पलायन वादी धूम्रपानी कौम औ दूसरी सब कुछ को चबा जाने वाले दृढ इरादों से लबरेज गुटखेरी कौम ,,,जन्हा धूम्रपानी कौम,,,गोला बीड़ी परम्परा के गौरव को समेटे ब्रिस्टल औ विल्स की दण्डी लिए कोई  कोलकी खोजती थी दुबक कर  नेट प्रेक्टिस करने वास्ते,,वही दूसरी कौम को सार्वजनिक मंच के बीचो बिच अपनी जवानी की उदघोसना का हथियार मिल गया था ,,,गुटखा,,,
                पान चबाने की ऐतिहासिक कला के छेत्र में गुटखा वो क्रांति थी,,,जो अस्सी के दशक में सर्वप्रथम टेलीविजन में जलाल आगा से उद्घोषित हुई ,,,,बरातियों का स्वागत पान पराग से कीजिये,,,, और सभी पान ठेले पुकार उट्ठे ,,,अरे आप भी पान पराग के शौकीन है,, तो ये लीजिये पान पराग,,,,
                इस क्रांतिकारी दौर में गुटखा चबाते हुए व्यक्ति को देख कर ऐसा लगता जैसे उसे परम् ब्रह्म प्राप्त हो गए ,,,पान पराग ,,भूंजी सुपारी ठंडाई इलायची और बाबा 120,,, अहाहा हा,,,,जैसे ही कागज की पुड़िया खुलती पुरे माहौल निर्वाण भाव से भर जाता,,,और कई मुफ्तखोर हाँथ पुड़िया की ओर लपलपा जाते,,,कचरंग क्चरनग चगलाते  गुटखे से भरे मुख पीक  प्रकछेपन के लांचिंग पेड़ बन गए  ,,,पिच्च ,,,पिच्च ,,,एक पतली सी भूरी गुलाबी धार जो शहर के हर कोने में आपके अस्तित्व के हस्ताकच्छर करते चलती,,  लेकिन यह समाजवाद  भी जल्द ही पूंजीवादी विषमता का शिकार हुआ,,,और कई नए ब्रांड उभर आये,,जन्म हुआ लटकती हुई पाउच संस्कृति का ,,,ऊँचे लोग ऊँची पसंद जैसी उदघोसना करती मानिकचन्द खाने वाले रईस और यामू के पचास पैसे के पाउच को चगलते सर्वहारा गरीब,,,, इस विभाजन ने एकता में वो दरार डाली की ,,,,धीरे धीरे नई पीढ़ी को गुटखा गुड़ाखू सा बिलो स्टेंडर्ड प्रतीत होने लगा,,,,आखिरी चोट सरकार ने की जिसे दूसरी सहस्त्राब्दि में जाकर ज्ञात हुआ कि इसके चबाने से कर्क रोग होता है,,,और हर टाकीज में पान पराग के राग की जगह भयंकर रोग विज्ञापनों ने ले ली,,उधर मोहल्ले के उस पीढ़ी का युवापन भी अब प्रौढ़ता की बढ़ चला ,,,अब जवानी की उगली पीक के दाग अखरने लगे तो कवायद शुरू हुई गुटखा मुक्ति की,,आज वो पूरी टीम एक दूसरे को निकोटेक्स से लेकर अजवाइन सौंप के फार्मूले आदान प्रदान कर रही है फेर जवानी का पहला प्यार कन्हा आसानी से भूलता है,,,,,
अनुभव

             
                 

Friday, June 26, 2015

बाबा

बाबा नाम दादागिरी की दुनिया में वही महत्व रखता है जैसे इतिहास में विक्रमादित्य की उपाधि ,बाह्मण पारा के पहले बाबा चन्द्रहास दुबे जी के भयंकर मर्दाना किस्सों ने ऐसे उच्च मानक स्थापित किये कि,,आई पी सी की धारा 302 या 307 में डुबकी लगाने से  हुई जेल यात्रा  के बाद ही यह विशेषण किसी के उपनाम के रूप में पुकारा जाता   ,, तँहु आज ले बाबा होगेस,,,टाइप,,,,प्रथम बाबा की तरेरी आँखे और खरखराती आवाज की छबि तो मानो गॉड फादर के अल्पचिनो से लेकर अग्निपथ के बच्चन तक बिगर गई,,आतिश फ़िल्म  में सञ्जयदत्त के नामकरण ने इसे औ पॉपुलर कर दिया , मोहल्ले वासी आज भी कई विधयकों और मंत्रियो को गेंदा माला पहिनाते हुए याद कर उठते है की कैसे उन दिनों फलाना चौक में यही महानुभाव बाबा दादा के लिए फेब्रेट मुगल मोनार्क विस्की के पैग बनाते थे या सिगरेट बारते थे ,,,
              बाद के बाबाओ ने उपाधि अनुरूप बिहनिया से अपना पैग तो सजा लिया फेर उन महान साहसिक घटनाओ की पुनरावृति न कर पाये ,,,सो शहर से चौक और चौक से गल्ली तक बाबागिरी सिमट गई ,, आई पी सी की भारी धाराओ को छोड़ 151 के डबरे में ही डुबकी लगने लगी ,,,,ऐसे ही कुछ आखिरी बाबाओ में सुंदर नगर के बाबा डान ने तो पुरानी बस्ती थाना में जांघिये में बैठ कर पुलिस के पड़ते पट्टे के साथ उपाधि की गरिमा को भी तार तार कर दिया,,,,और आज बाबा उपाधि दादागिरी के शिखर से उत्तर कर योग और धर्म के गढ्डे में गोता लगा लिया है ओ हा तो बाबा रामदेव हो गे हे टाइप,,,, और आखिरी विक्रमदित्यो की तरह इस प्रसिद्ध उपाधि के धारक भी टुच्चेपने की धार में बोहा गए,,,,

अनुभव

Thursday, June 11, 2015

मुर्दे

मुर्दे मरे हुए भाषा के प्रेत जैसे
डराते है डकारो नही ऐसे

Tuesday, May 19, 2015

गणित

अत्याचारी गनित,,,
गनित जैसा अत्याचारी बिषय कोई है,,लाभ हानि ले प्रतिशत तक ,,,ढंग ढंग का टेडगा पिचका समीकरण  ,,,साला एक को समझो तो दूसरा विचित्र सवाल,,,औ सबो का उत्तर अलग अलग ,,,,यही धोखेबाजी पिल्लू भाई को कभी नही पोसाया ,,,सबो को एक आँखि से देखने का उनका अपना गणित  था,,,
             अब ये  बात उन्होंने बिषय बिशेषज्ञ डिस्टिक्सन धारी बिनोद को भी समझाने की ठानी,,,गनित तय हुआ की लाइब्रेरी में नवा गन्ध से ममहाति उपकार की  विषरामरत गाइड का थप्पी टॉप कर दूसरा स्कूल का पढ़ाकू छात्र प्रजाति को विक्रय किया जावे,,,औ प्राप्त लाभ  का लुत्फ़ लिया जावे,,,बिनोद की स्वच्छ छबि के कारण किताब उड़ाने का सहांसी कार्य उसके हिस्से और बिक्रय का जनसम्परकीय कार्य पिल्लू भैया के हवाले ,,पिल्लू भैया ने बिनोद को गणित की भाषा में ही समझाया,,लाभ का फिफ्टी परशेंट तुम्हारा बाँकी हमारा,,,तय समीकरण के अनुसार कुल ढाई सौ रूपया प्राप्त हुए ,,,लेकिन इन्हा दुनो पक्छ गड़बड़ा गया
                   पिल्लू भैया ने पचास रूपया का नोट बिनोद को दिया,,ये रहा तुम्हारा हिस्सा,,बिनोद बोले ,,अबे बात तो फिफ्टी परशेंट का हुआ था,,ठीक बात,,फेर ढाई सौ का फिफ्टी परशेंट कितना हुआ,,,पिल्लू भैया बोले ,,पचास रूपया,,,जो तेरे को लहुटा दिया,, बिनोद खिसया गया बोले भाई फिफ्टी परशेंट तो सवा सौ होता है ,,पिल्लू भाई गुस्सा गए ,,देख मोला गनित में कमजोर समझ के चुतिया झन बना,,,परशेंट माने सौ ,,,सौ में पचास का बात हुआ था ,,,,बाँकी बांचा हमारा,,,अबे लेकिन फिफ्टी परशेंट तो 125 होता है किसी से भी पूछ ले ,,,बिनोद कंझाया ,,,मोला तो इतना समझ आता है की प्रतिशत माने सौ औ सौ में पचास का बात हुआ था ,,बाँकी किसी से क्यों गुरूजी से पूछाना है तो पूछा,,,पिल्लू भाई तन गए ,,औ घण्टो बिनोद कागज में जबकि जमा जमा के उनको प्रतिशत समझता रहा,,,लेकिन भाई का गनित डगमग नही हुआ ,,,
              आज तक बेचारा बिनोद गुरूजी अपना  बिद्यार्थियो को प्रतिशत कंझा कंझा के पढाते है औ पिल्लू भाई मोहल्ला के पार्षद बन गए है ,,अत्याचारी गनित
 
अनुभव               

                     
                    

Thursday, April 23, 2015

आंकड़ा

निर्देश और समीक्छा
के दांतो के बीच
प्रशासन की जीभ
निगलेगी क्या आंकड़े
उगलेगी क्या आंकड़े
बदलेगी क्या आंकड़े
सहेजेगी क्या आंकड़े
हर शख्श है एक आंकड़ा ,,
निराकृत है या शेष
फ़ाइल में सोता रहे
जागे जब निर्देश
अनुभव

Wednesday, April 1, 2015

प्रशासनिक कथा

सत्य प्रशासनिक कथा
विधायक का आदेश  पत्र  तो  स्वाभविक है ,,,पर अब की बार तो एक भावुक अपील से भरा हुआ पत्र ,,,पत्रवाहक की बेटी जो सोरम गाँव में ब्याही है कुछ दिन गए विधवा हो गई  ,,,अब ससुराल वाले मायके ही नही आने दे रहे उसकी सहायता कीजिये,,, अधेड़ रइदास थाने की बेंच में सिमटा हुआ था,,, खरखराते गले पे काबू कर बोला ,,,इंसुरन्स के पीसा बर लुकलुकाये हे साहब ,,,ओकर सास ससुर ,,,ते पई के मोर बेटी ल नई आन देत हें,अपन गावँ,,,,,,आंसूओ के साथ बाप का  जमा दर्द ट्घलने लगा  ,,,,
                    आज अतरिया में शनिचर बाजार है वँहा का एक चक्कर लगता ही है ,,, वन्ही पहुचो ,,,सोरम भी हो आएंगे ,,,थानेदारी उन दिनों बुलेट में होती थी ,,पीछे की सीट पे एक पुराना घाघ हवलदार ,,,और नई नई थानेदारी की रौब से इस्त्री हुई वर्दी में सजे सितारे ,बस इतना ही काफी था गश्त के लिए उन दिनो ,,कोष भर दूर  गूंजी फट फ़टी ,,,फट् फट् फट् ,,,सोरम गाँव के सभी गनमान्य बाशिंदे चौपाल में जुट गए,,,साहब आसनस्थ हुए और चाय पानी की औपचारिकता खतम होते तक ,,,,,,,पंचायत सज गई थी
                   ग्राम पटेल ने मुद्दे की सधी शुरुवात की ,,,किसे आना होइस साहेब,,,,,जंघोरा के रई दास यंहा से किसके घर  बहू आई है ,,,,पटेल अचकचाते हुए बोला ,,,मोरे बहू हे साहब ,,इतने में साईकिल टरते रई दास भी पहुंच गया और कुछ  समय का अंतराल आत्मीय समधी भेंट के लिए,,,चर्चा आघे बढ़ी ,,,कैसे पटेल इसकी बेटी को मायके क्यों नही जाने देते,,,थानेदारी राग फूटा,,,,इसे कोई बात नही हे साहब,,,जब चाहे जाए,,,,काबर रोकबो,,,और अचानक एक महिला अपने दो छोटे बच्चों और झोले के साथ अवतरित हुई और साहब के पैरो में गिर गई,,,,,मोला बचा ले साहेब नी तो मोर प्रान दे दुहु,,,,रई दास बेटी को सम्भालने में जुट गया,,,,,
                 अब तक समान्य चर्चा ने गम्भीर मोड़ ले लिया,,,पटेल बोला ,,हमला नइ पता रिहिस ये हर अतका परेशान हे साहब ,,अपन घर जाये बर,,जेन बततिस ता काबर रोकतेन,,,ले समधी आज आये हस तो ले जा,,फैसला हो गया था,,बेटी नाती रईं दास की साईकिल में चघ कर विदा हुए ,,,कुर्सी फिर सजी ही थी,,,कि एक संघर्ष भरी आवाज ने महफ़िल को मोड़ दिया,,,,ये कन्हा के नियाय हे साहब ,,,घर के बेटी बहु के बिदाई तको पुलिस वाला करन्हि,,गलत बात इसे नी होये,,,ध्वनि बढ़ने और फैलने भी लगी ,,अब तक के तमाशबीन फूटने लगे,,,भीड़ जाग गई थी,,,,थानेदार के चारो ओर घेरा बढ़ने लगा,,,,एक आदमी  को चुप कराते तो कई लोग मोर्चा सम्भाल लेते,,,,बढ़ती गहमा गहमी को चीरता एक पत्थर भी मंच पे टपक गया,,,,माहोल के इस बदलाव को थानेदारी छटी इंद्री भांप गई,,,जोर की पुलिसिया आवाज फूटी ,,,ठीक है अगर ऐसी बात है तो उनको वापस बुला लेते है,,,बुलेट चालु करो,,बरसते पत्थरो के बीच पलायन शुरू हुआ,,फट् फट् फट्
       अगले दिन दोपहर तक सोरम गावँ के सभी क्रान्ति वीर थाने में ऊखरु बैठे  लाँठियो के अपने निशान सहला रहे थे,,एक स्वर में बोलते ,,,ये पटेल के करे तमाशा हे माई बाप घर के मामला ल गाव बीच ला के  हम मन ल बोज दिस,,नी तो पुलिस ऊपर हमला सपनाये तको नई सकन,,,पटेल घिघयाया,,मैं तो साहब का बात पतिया गया था तुही मन करे हो चिलवास,,,,,इतन में रॅईदास बेटी के साथ थाने की सीढियाँ चढ़ गया,, रिपोट सिपोट रहइन दे साहब महिला बोली ,,कल के उही गाव घर जाना हे ,,सास ससुर माँ बाप बरोबर,,फेर इंसरेन्स के पीसा ल घलो दुंहु कहे हे,,,,,इतने में रईदास ने एक और चिठ्ठी थानेदार के सामने रख दी जिसका मजमून कुछ बदला सा था,,,घरेलू मामला है ,,,हमारे विधानसभा के ही गाँव वाले है ,,सम्वेदना पूर्वक कार्यवाही हो,,,,,,आदेशित
अनुभव

Tuesday, January 20, 2015

दोराहे भूख के

दोराहे भूख के,,,,,
रात के दू बजा रिहा ,,,पत्ता मन के आवाज ले झकना के नींद उमचा ,,,जंगली हांथी ,,,दन्तेल ,,,,कच्ची ईंटा के दिवार को भरभरा के गिरा दिया,,,औ मेरा बाई का गोड़ झिक के उठा दिया ओल्लर ,,,ओकर सफ़ेद दांत दिखता रहा अंधियार में,,,,,,मैं अपना बेटी को धर के गाँव कोती भाग गया,,,,पाछू मेरा बाई को पटकने का आवाज आया ,,,औ चिंघाड़ ,,,,पागल हांथी का,,,,मैं चीखा ,,,तोला नै बचा पांहु ओ में हा लइका ल देखत हों,,,,,
                        अमरित जाति गोंड  उमर इक्कीस साल ,,निवासी छोटे लोरम ,,,कन्हिया में अपना तीन साल का बेटी पूनम को पाये हुए एक बार फिर सुबकने लगा  रात की घटना को याद कर ,,जो उसकी बेटी की आँखों में बरफ के जैसी जम गयी थी,,,पूनम बोली मेरा झोपड़ा को फोड़ दिया ,,हांथी,,,वो अभी भी नही जान रही थी की उस पागल दंतैल ने ,,उस रात उसकी माँ को पटक पटक कर ऐसी भयवाह मौत दी की आस पास के मैदान में चारो और उस ओरत के  चीथड़े बिगरे हुए थे,,, मृत शरीर के नाम पर था मांस का एक लोथड़ा,,,,
मद मस्त हांथी पहले भी लोगो को मारते रहे है पर इतनी वीभत्सता से,,मानो किसी बाघ ने शिकार को चीर डाला हो,,   गाव वालो का गुस्सा तो शासकीय मुवावजे की राशि से  कुछ ठंडा सा गया  ,,पर अब उस गजराज का भय  लोगो को थरथरा रहा था,,, पागल जंगली हांथी
             खेत से लगा जंगल और फिर चारो ओर से घेरती हुई पहाड़ी ,,उस पार ओडिसा ,,,,हांथी इस रस्ते से हमेशा से ही गुजरते है ,,, जुने जंगली रास्ते ,,अब कटने लगे है ,,,क्यूँ कर के,,,,,,हांथी मद में पागल हो कर पूरा जंगल उजाड़ते गुजरते है पर उस रात तो किसी भी झाड़ की डंग़ालि नही टूटी थी,,, ये जरूर था की  साजा के कटे हुए कुछ पेड़ उस खाली नए बने खेत में कटे हुए पड़े थे ,,जन्हा उस रात अमरित का परिवार सोया था ,,नए बने खेतो के बीच,,,गाव वाले कहते है वन पट्टा मिला था,,,हांथी के पास कोई शासकीय पट्टा तो नही होगा ,,थी तो बस,,, भूख ,,और उससे जुड़ा वो जूना रस्ता,,,,जिस पर अमरित को पट्टा मिल गया था,,,अपने परिवार की भूख मिटाने वो जो खेत बना रहा था,,,और उस रस्ते से हांथी की भी भूख गुजरती थी ,,,,हजारो हजारो सालो से भूख मिटाते रस्ते  ,,,इस भूख के दोराहे पे ही उस रात पागलपन बरसा ,,,
अनुभव