Sunday, February 20, 2022

धरसा

मोर खेत के धरसा,,,
धुर्रा उड़ात
खड़ खड़ खड़ खड़ 
कन्हिया लचकात,,
सरपट सरपट भागत हे,,,

डामर पोते,,करिया होगे
डबरा नरवा,,तरिया होंगे
पुलिया ,चघिस त परिया होगे
 धुंगिया में खर्र खर्र खाँसत हे

खेड़हा,,करमत्ता,मुनगा,,मुरई
कुकरी ,,मछरी,,,औ दूध दही
रेजा मिस्त्री,,,संग नाउ बढई
सब्बो पटरी नहाकत हे

ट्राला रेती गिट्टी गोंजाय
बैला उल्ला,,,टेक्टर फन्दाय
करर्स करर्स,,हारन बजाय
सइकिल हौंडा ल तिरावत हे

धरसा हर हॉट !!बे होगे
कार ,टरक बस के होंगे
ज्महनी डेहरी येदे होगे
बत्ती बत्ती बिचकावत हे
अनुभव,,



















Tuesday, February 15, 2022

हर माल दू रुपिया

हर माल दू रुपिया,,,,,

बहुत बहुत पुरानी बात है,, तब मॉल वाल नही होते थे,,,पर एक गाँव मे एक गरीब ब्राहमन जरूर रहता था,,,खैर !! उन दिनों गरीबी की भी बात तो कुछ और ही थी,,,पैसा वाली पाकिट खनखती थी,,खन्न खन्न,नोट वाली गम्भीर बनी चुपचाप सरक लेती थी,,,चवन्नी अठन्नी ,,रुपैये की भाषा,,, बाजार में समझी जाती थी,,, चित और पट सबसे लोकप्रिय खेल था,,,
              

Tuesday, February 8, 2022

पगड़न्ड़ी

वो दुबली सी  गवांरन पगडण्डी,,, खिलखिलाती हुई हरियाते खेतों के मेड़ों से लगकर ,,गोधूलि भरे आँचल को बबूर और झरबेरी के झुरमुटों से झटकते ,,, गोबर सकेलती गुजरती है रानी तरिया के पार छोटे हनुमान मंदिर के किनारे ,,,गुड़ाखु घसते घाट पे केवटिन की चमकती तलपिया मछरी से भाव तौल पटाती,,घुस जाती है भूरे खपरैल छाँई बस्ती के बीच से ठुमकती हुई,,,और ठीक गौठान के सामने पहुच कर संजोर होकर फैल जाती है,,,,पीपल के चबूतरे के चारो ओर, पूरा गांव समेखे,, 
           पंचों ने लो हामी भर दी,,,अब पाउडर लाली  चुपड़ के सड़क हो जाओ,,फिर क्या?  सरपट कदमों से बढ़ती है पूरब की ओर,,,खड़खड़ाते एटलस सायकल के केरियर पे टिफ़िन के जरमनी डब्बे मुह लटकाए झूलते है साथ,,दूर धधकती चिमनियों की ओर,,, धुवें ने रंग अब कोलतारी कर दिया है जगह जगह इस यौवन की तेजी से स्पीड ब्रेकर उभर आये ,,तो फिर दाएं बांये का तकाजा करना ही होगा,, दुराहे अब चौराहे हो चले हैं,कतारों में धचकते ,,,पी पी करते थकान सी हो चली है अब,,ट्रक ट्रालों के संग जरा सांस तो ले लो ,,पंजाबी ढाबों की  कड़क सिकी तंदूरी रोटी,,मक्खन में पिघलती हुई और गढियाती उड़द की काली दाल पे लहसुनी छौंक संग ,,खटिये में पसर क्या गए,,,किनारे होकर काले टायरों ने मुह फुला लिया,,,चलो भी अब बढ़ते है बत्तियों से जगमगाती शहरी तहजीब की ओर जंहा के सफेद पोश चौकीदार ,,,सीटियां मार कर  रोक ही लेते है,,,लाल पीले होते,,,हरे साइनबोर्ड से झुक कर गुजरिए ,,,अब तो बिखरना हबस चारो  गजबजाती नालियों संग बिखर जाती है गलियों मोहल्लों कालोनियों में,,,खम्बों की रोशनियां ,,,बिजली तारों के संग झूलते,,,,,कंही खोपचियों में सज कर बाजार हो जाती है कंही,,,तमक कर फ्लाई ओवर उतर कर मॉल हो जाती है,,,