Saturday, October 16, 2021

सतपुड़ा के सागौन पतझड़ी वन ,,,और वेनगंगा नदी घाटी जंहा गुलजार के लफ्जों में कभी चड्डी पहने कोई फूल खिला था,,किपलिंग की जंगल बुक का रंगमंच,,,पेंच राष्ट्रीय उद्यान,,, यंहा मोगली के दुश्मन शेर खां,, और दोस्त बघीरा की ब्लड लाइन आज भी मौजूद है,,
सुनहरे चीतल मृगों के झुंड सौफ मैदानों में उन दन्तकथाओं की  जुगाली करते मिले,,मुस्कुराती लोमड़ी जानती थी आगे कौन है,,तभी औचक कुबड़े हनुमान लँगूर ने वार्निग दी,,, साम्भर हिरण के आगे के खुर माटी खटखटाने लगे,,,औ,,औ ,औ,,,मानो पूरा जंगल जाग गया हो ,,इक रौबदार पीली बिल्ली की अगुवाई में बाघिन,,,जिसके साथ था रियासत का राजकुमार,,,, ऊपर कगार से शैतान लाल जंगली कुते की जोड़ी बस झांक कर भाग गई,,,1831 में इसी भूभाग के एक आलिकटा गांव के पास से जनरल स्लीमन ने एक भेड़ियाँ बालक को पकड़ा था,,जिसने अपने भेड़ियाँ साथियों के संग शेर का भी शिकार कर लिया था,,बालक कुछ दिन लखनऊ में जिंदा भी रहा ,,उसी कथा को किपलिंग ने एक गाथा में बदल दिया,,,इस प्रदेश की जैव विविधता भारतीय वनों का खाद्य पिरामिड पूर्ण करती है,,,तृणभक्छी,,सरीसृप,कुतरने वाले जीव और,परिंदों की भिन्न भिन्न प्रजातियां,, और उनके द्वारा संकलित प्रोटीन की ताक में बैठे श्वान कुल के भेड़िये,,सोनकुत्ते,,, लोमड़ियां,,और बड़ी बिल्लियां,,,टुरिया वन छेत्र में बघीरा का उत्तराधिकारी ब्लेक पेंथर यदा कदा दिख जाता है,,,लेकिन बाघों की बढ़ती संख्या ने यंहा के तेंदुओं को दुबकने को मजबूर कर रखा है,,,किंगफिशर नामक नर बाघ जिसे अपने पक्षी प्रिंट की वजह से यह नाम मिला है,,, रुखड़ रेंज के घने कगारों पे राज करता है,,यदि इन पहाड़ी पगडंडियों में अगर आमना सामना हो जाये तो ये महाराज आपको लम्बी दूरी तक साथ साथ चलने को मजबूर ही कर देंगे,,,वन वैभव में भी पेंच के वन कान्हा के साल वृन्दो से भिन्न सैगोन की हरितमा से ढंके है,, जिसकी चर्चा आईने अकबरी में अबुल फजल ने की है,,मानसून के ठीक बाद रंग बिरंगी तिलतलियाँ ,,पंख लगे फूलों की तरह हर ओर मंडराती रहती है,,वन्ही उत्तरी गोलार्ध के जाड़े से बचकर  आई बतखों और सुरीली धुन गुनगुनाते परिंदों से ये पूरा जंगल गुलजार हो जाता है ,वन रेजिनों से महकते इस प्रदेश में आदिम नैसर्गिकता को आप अपने भीतर भी महसूस कर सकते है इतना ,आकर्षक है पेंच ,,,जंहा की फ़िजा में आज भी मौजूद है मोगली,,,,