Monday, December 22, 2014

करिया धुरवा

कौण्डिया .,एक कोती  खेत और दूसर कोती दूर तक फैला हुआ डोंगरी ,,औ दुनो बीच पे पिचकाय गाँव कौड़िया,, ,मिटटी के बिखरा हुआ झोपड़ा मन को बरगद नीम लील रहा है, गाव का एक ओर चौहद्दी में फैला है बलुआ पथरा का किला बन्दी,, दूसर कोती बाघ नाला और चारो मुड़ा बिखरा हुआ है खण्डहर जो अपना नायक राजा करिया धुरवा की कहानी ख़ुसफुसाता  है,,ओ राजा रे राजा धुरवा,,,,ओ ओ ओ ओ!!!
           सौ युद्ध का अपराजित  गोंड नायक .....यन्ही कोडिया मे  हजार भर की सेना चारो ओर ले घेर दिया..औ करिया कर केवल दस मनखे..फेर करिया डिगा नही कौण्डिया छोड़ा नही ,,..दे..खेंचा धनुस,, औ निकलता तीर..सांय सांय ,,,,तो दू कोष तक ले जान दे ... एक तीर से पांच मनखे बेध देता रहा...एक पहर में पूरा चौरङ्गी सेना साफ़....ऐसे बनी बारह गढ़ वाली कौण्डिया जमीदारी ओ उसका वेभव,,,,
        फेर समय तो घुचकता ही है...हमार दादा  के आत ले पूरा राज पाट सिरा गया ,,,,गोपाल साय महुआ के झोंक में हाथ फैला के बोले,,,कभू येह सारा खेत हमारा रहा,,,और अब,,,तो फिर जान दो,,,,जुन्ना तीर तलवार सब बेंच गया,,,बांच गया है ये कबर राजा का ,,,,,,,पर करिया धुरवा के इस वारिस राजा का कबर भी कोई खोद दिया,,,गोपाल साय का कहना है,,, हमारा दादा खुदे कबर खोद के निकल गया,,,जगनाथ पूरी जाय बर,,अपना वंसज मन का दुर्दशा नही देख पाया,,पैर का चीन्हा मिला था उही दिशा में,,,,पर गाँव वाले तो कुछ औ कहानी कहते है,,,,यही मन एक रात खान दिन गा ,,,हीरा पन्ना जेवरात पाये बर ,,औ का,,,,,,,,सौ युद्ध का बिजेता का सम्मान अपन वंसज मन ले हार  गया ,,,,,,फेर सिराया नही,,आज भी कौण्डिया खुसफुसा रहा है,,ओ राजा धुरवा,,ओ ओ ओ ,,,

अनुभव
        

Saturday, December 20, 2014

माल

एति मॉल ओति माल
जिन्हा जाबे तेती माल
जम्मो शहर हा माले माल हो गे
ऐला बिसा फेर ओला बिसा
येला खवा अऊ ओला खवा
साले कमैया के जी के काल होगे

अनुभव

Friday, December 19, 2014

चुनाव होता तो है लोकतंत्र का महा उतस्व ..फेर मोहल्ला का पार्षद चुनाव...मने समुद्र मंथन ...इस पंच वर्षीय प्रक्रिया में खालहे में बैठा सबो किसम का खादा उफ्ला जाता है ...भाँती भाँती के जमीनी नेता अंकुरित हो जाता है .. बल्लू के टिकिस पक्का हे ...सीधा दिल्ली ले....कौन बल्लू रे ...काका अपना टेटका बल्लू ...शराबी ...काका ये दारी तोर आखिरी मतदान हे

Thursday, October 9, 2014

महेश गुरूजी

कोन हंसा रे ..महेश गुरूजी
पुराना टाइम में आदमी का गिना चुना नाम प्रचलित रहा..उही रमेश महेश सोहन मोहन..सो उपनाम पहिचान के लिए बड़ा जरुरी था ..जैसे रेचका मुन्ना ..कोंदा मुन्ना ..बडा मुन्ना  ..यंही ले कामेडी आफ एरर जनमता था...
             हमारे नगरपालिका स्कुल में दो महेश एक ही किलास में विराजते थे एक था एकदम अंतिम कोने के अंधियार में गुम हो जाने वाला करिया महेश औ दूसरा पूरी कक्छा का एक चौथाई जगह घेरता हुआ कोंहड़ा जैसे मुड़ी वाला बोड्डा महेश...पहला श्वान गुणों से भरपूर पूरी किलास को चिमट्ता खजुवाता दो दूसरा गाय कस लथर कर केवल मक्खी भगाता बैठा रहता.. ,एक दारी सम्भल लाल गुरूजी दुनो गोड को टेबल में चेप के.. मार गोल्लर कस खर्राटा मार रहे थे..येतका में बाजू के चरोटा भांटा ले बस्साता लू का थपेड़ा कमरा में प्रवेश मारा औ दीवार पे लटका महापुरुष का फोटू हिलना शुरू...कक्छा के  अधियार में बत्तीस दांत चिमक गया..वाहा दे नेहरु जी नाचत हे ..करिया महेश हंस पड़ा..इहिहिहिहीहीहीही...सत्ताईस किसम की बिचित्र हंसी..फेर करिया महेश के हंसी के तारत्व से गुरूजी की तन्द्रा भंग हो गयी...
        कोन हान्सिस बे ...पूरा किलास से एक स्वर उभरा...महेश...ढीला पड़ा नाडा को कसते हुए..गुरूजी पहले महेश तक पहुच गये ...और उसके झुठहा चुंदी की जड़ों को छरिया छरिया के पीठ पे मुठ्का प्रहार शुरू कर दिए...जब पूरा गुस्सा उतर गया तब ही गुरूजी उपर उठे...लेकिन तभी एक कर्ण भेदी भोंगरा आवाज ले पूरा स्कूल गूंज गया...ऒऒऒऒऒऒऒऒऒन..महेश टोटा फाड़ रहा था...क्या हुआ बे चूतिया ..पहिले तो खूब हंस रहा था...महेश अपने बोहाते नाक और सिसकी पे काबू करते हुए बोला...मै कन्हा हंसा गुरूजी ..मै तो बोड्डा महेश हूँ ...करिया महेश हंसा रहा...लेकिन तब तक गुरूजी का हाथ मुह ललिया गया था..सांस थामते हुए बोले ..साला पहिले काबर नही बोला...चल कोई बात नही चुप हो जा...
             ऐसे ही प्रति दिन करिया महेश की प्रत्येक गलती पे पूरा किलास चील्लाता ...महेश किया..औ बोड्डा महेश पिट जाता..अन्ततह बोड्डा महेश ने इस रोज की प्रतारणा के अंत की तरकीब सोंची...परीक्छा के पेपर में गुरूजी के साल भर के मुटका के बदले ...छांट कर एक लोकप्रिय गाली ..उत्तर पुस्तिका में लिख दी . बोड्डा फेल हो गया ..और करीया महेश चीट शास्त्र में पारंगत होने के कारण पास...बोड्डा अब ख़ुश था..लेकिन ये ख़ुशी भी साली फुर्र हो गयी जब फिर से किलास चौंथी में बैठे हुए उसे जानकारी हुई की एक और महेश उसी के कक्छा में एडमिशन लिया है ...खेखड़ी महेश...कोन चिल्लाया रे ...महेश गुरूजी..भद भद
अनुभव

Saturday, October 4, 2014

शेर सिंग

शेर सिंग
                 बर झाड के झुरमुट ले नाम परा बार... नौ गोंड परिवार वाला' गाव' नवापारा ..औ ये दुनो जुड़वाँ गाव को चारो ओर ले घेरे....बारनवापारा अभ्यारण्य  ..फेर लोग कहते है लुवाठ जंगल ....बिना शेर के सुक्खा जंगल ...मोर बेंदरा औ हरिन देखने कोई जाता है जंगल...?  लेकिन गावं वाला ये बात नही मनाता... कोन कहता है शेर नही है देवपुर घाट में बाघ पंजा का छापा फोकट में मिला था ...
          
                      सही बात तो है कि कभी ये  गाव शेर के दहाड़ ले कपकपाता रहा..फिर वो रात जब शिकारी आया तो पूरा गाव तीमारदारी में जुट गया.. पेड़ उप्पर मचान बंधा...ओउ खाल्हे में बंधा भैंसा पडवा ...माँआआअमाँ ......पडवा नरियाता ..ओ दुरिया ले सुक्खा पत्ता मन चरचराता  ..मम्हाता बिसरैन गंध  .. अंधियार में चिमकता दू आंखी  ..बग्ग ले....आन दे और आन दे..फेर बीस हाँथ दूर ले गूंजता गया डबल बेरल  ...धान्य धान्य...औ सुतता ऊँघाता साल सेगोन को जैसे कोई झकना के जगा दिया हो..हिल गया पूरा जंगल...पोटा कम्पाता हुआ ओ दहाड़ ले..
                       बिहिनिया गये गाव में खटिया सजा ... रात भर के शिकार बाघ मन का कतार लग गया..पूरा गाव इकट्टा होके ताक रहा है ..ये हे बन्ड़ा  .. परसा पाली तीर मोर बछिया ल उठाया रहा ..ओ उसका पिला होगा....खटिया में बैठे शुकुल जी अपना दू नाली साफ़ करते .हुए.. ठाकुर ले पूछते है ,,ये आदमी काहे भाग रहा है रे ..एकर लरका हुआ है भैया आजेच...नरवा काटे खातिर औजार ले बर जाता है ..ऐसा... बोलो इसको अपने बेटा का नाम शेर सिंग ही रखे....लकी फेलो ...एक रात में बारह शेर मारे.....शुकुल जी ने नामकरण कर दिया
                     ....पूरा गाव कहता है ये कहानी... मुख्य मंत्री का बेटा धरा है इसका नाम ..शेर सिंग ...और आज का शेर सिंग साठ साल का डोकरा.है...गावं के लईका लोगो को ये कहानी बार बार सुनाता है ...कहता है...जेन दिन ये  शेर सिंग जनमा..ओ दिन ले जंगल में शेर नही दिखा... शेर होगा जरुर ...फेर अब दिखेगा काहे...डर्राता होगा कंही फेर,,, कोई किसी लइका का नाम शेर सिंग झन धर दे...

अनुभव
  

Friday, September 26, 2014

फ़िस्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स

......फ़िस्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स..

करक का सूरज मुड़ी उपर दे भभका मार रहा है...टप्प टप्प .टप्प..निथरता... पसीना  ..फीरंता सांवरा का ..माथा में बंधे साफा ले बोहा बोहा के नदिया नारा कस पूरा शरीर भर फ़ैल गया....फ़िस्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स...बीला भीतरी ले मार  फुफकारा ..... करिया डोमी .. फन छाता कस तान दिया..धूप में चमकता छाता फन ....फ़िस्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स...फिरंता दुनो डाहर ले हाथ को घुमा रहा है .डोमी का करिया आंखी बोक बोक घूरता है..ओऊ ओती डोमी घुमा  की.... सट ले फन को दबोचा ..फिरंता......डोरी कस घूमता पूंछी को दूसरा कोती  ले धर के झोला में भीतराया ही था ..के ....फ़िस्स्स्स्स...झोला के कपड़ा में सांप का दंस ...सुनहरा बुन्द हाथ उपर छटका गया ...पसीना उपर चिमकता...अमरित....
             अमरित ही तो है ...बुढा देव ...भोला बाबा का अशीष....सांप का पेट भरता है सो फिरंता का ..ऐसे ही पूरा सांवरा डेरा का भी...इहि अमरित....सपेरा जाति सांवरा मनखे के झोपड़ा में ,मनखे कम ,सांप जियादा....किसम किसम का सांप ...अहिराज ..घोरा किरैत...मुसलेंडी....ओउ राजा डोमी........ डेरा भर का मनखे ...कंधा में कांवर बोहे ...दुनो कोती चार चार  पिटारा टाँगे...किन्जरता है ...ये गाँव ले वोओ गाँव ...धायं रीयपुर धायं दुरुग ....
                  चौक ठेला देख के जम गिया पिटारा....अचरज ले बोकाय आंखी का घेरा...वो वाला दिखाओ जी..इसका जिहर नै निकाला है साहेब ..बस्तर के जंगल से तीन दिन पाछू पकड़ा.. करंच नाग ...जय हो नाग देवता..जागो ..ढकना हटा ही ..के फिस्स ले फिरंता के हाथ में डस दिया डोमी... ये दे मार दिया...न...फिरंता हाथ घुमाता है लाल लाल दू निशान..झट ले लाल पुडिया खोला ...भीतर में सफेद फिरोजी रंग का गरूर बूटी ले के घाव में चेपक दिया ओउ मारा मन्तर.....बूटी टिपक गया...ओ उतर गया जिहर....अचूक इलाज....वा... वा. टीन्न्न्न्न ले पच्चीस ..पच्चास पैसा सिक्का उछल उछल के सांप के देन्हे में पड़ता है...गुलाल इगरबत्ति...दुध...नरियर का चढावा..ओउ.पांच सौ रूपया गरूर बूटी...जिहर का अचूक दवा....ले सौ दे दे महराज..तोर बर....
            आस पास गाव बेडा ले मनखे यंही आता है ..सावरा बेडा....जिल्ला अस्पताल छोड़ के.....प्राण बचने का गरंटी....कोई सांप काटे...बस उही ठंडा देन्हे वापिस जाता है जिसका डेरा चौहद्दी तक सांस बांकी न रहे...नै तो ...संवरा के फुके पूरा दिन ले चढ़ा जिहर भी उतर जाए.....पर आज फिरंता सायकिल में बिठा के अपना छोटे लईका को जिल्ला इस्पताल लाया है....डाक्टर साहेब डोमी डस दिया है ...जल्दी इंजेक्शन लगा दो.....साहब....जल्दी कर न साहब..आंखी तेड्गात हे ..जिहर चघ रहा है..
              डाक्टर पूछा ...क्यों रे सारा जमाँना भर को सावरा बस्ती मन्तर मारता है ...इसका भी जहर उत्तार लेते...काहे याद आया बे अब इंजेक्शन ....फिरंता के आंखी में पानी उतर गया....अब.का कंहू साहब सब पेट का खेल है... ...सबो सांप  जहरीला इहि मान के आता है मनखे ... जो फूंक के उतरता है ....  वो है मन का डर...फेर जिहर .....नाग के जहर दांत तोड़ दे ..तो औ बात  ....जिहर तो भोला बाबा के अमरित हे .अचूक...  जो कभू लहू में चढ़ गिया तो सांस ही लील देता है....सब जन्तर मन्तर फेल....पर का करबे साहब बेडा भर का रसोई चलाता है ये जिहर का डर.. अब एके लइका है  कई के बेडा भर से लड़ के ले आया हु बचाना है तो बचा लो ...फेर ये मन्तर किसी पे झन खोलना...साहेब

अनुभव

Sunday, September 14, 2014

दलीप कका खखारत हे

दलीप कका खखारत हे...
..आआन्न्न्न्न्न्न्न्न्न्न्न्न्न्न्न्नखाखाकथूऊऊऊऊऊऊऊऊऊऊऊ!
.दलीप कका खखारत हे. ..बा ऊऊऊऊऊ.. परोस के नान नान लईका नीद ले जाग के टोटा फाड़ के रोना शुरू ....अस का बीडी पी के खखाराई हे ओ ..लईका तो लईका सियान आदमी तको झकना जथे ... लेकिन दलीप कका के खाखरने के बाद ही पूरा गाव का कुकरा बांग देता है.. कका का गुड मार्निग ..
             औ फिर लोटा धरे ,खेत कोती वाला मार्निग वाक़.हफर हफर... झुका हुआ शरीर तेजी से मंजिल की ओर.. हाथ में सकेलाया मटमैला धोती ..लाल गमछा  ,,, मुहु में अन्टिना कस घुमता  दातुन ....लकर लकर....ये कका ...सुन तो सोखवा तोर बियाज लौठाहू कहत हे ..ये दे ....पास के पाटा से आवाज आई ...हओ रे तोर महतारी तीर धरा दे आ के झोखथो ..बुजा के ...हफर हफर..पूरा पाटा खलखला गया . हे हे हे...
                   अपनेच खार में मुक्त होते है कका ,, भले ही दू कोस भागे ल पड़े ...काहे.की .एक पन्थ कई काज. कका क असूल .. बीहिनया ही स्नान ध्यान तक खेत खार निरिछ्न और फिर बनिहार लोगो को निर्देश कप्लिट ... फिर नों बजे तक कका पाटा में चार छह झन का बीडी कट्टा महफिल सज जाता ...देशबन्धु  का पन्ना पन्ना सभी बन्धुओ के बीच बटता..और बटती धुन्ग्याती गोला बीडी .. पास ही पड़ी  वो भूरिया  गाँधीडायरी..सट से खुल जाती..गली से आते जाते हर मनखे  पर  ...किसे रे सोखवा !!तोर  तीन हजार होगे हे ...बीडी ले धुन्गीया छोड़ते ही खांसी की अनवरत श्रिंखला ..और कका के अंदर का साहूकार चिल्लाता..बीयाज नई देता तो दूधे पेयुष ल अमरा देता .गाय जनमे हे के नही..
          ले न कका कतका ल अक्केल्ला खाबे.. जा न शहर तोर लईका सोज...जाए के बेरा तो सेवा जतन करवाबे...कका की खांसी रुक गयी .पूरा वसूली कर के जान्हू बाबू रे ऐसे थोड़ी... गाव भर के कर्जदार इसी आस में थे की किसी आखिरी खखार के साथ ही उनको इस ब्याज चक्र से छुटकारा मिल जाएगा ..फेर कब ...एक दिन शहर ले कका के बेटा बहु का मया ठ्ठाया ..कार में आये ..चलो बाबूजी अकेले यंहा क्यों पड़े है..सब मुझे कहते है बाप को अकेले छोड़ दिए हो..गाव भर का मनखे झूम गया ...कका की विदाई...कार में बैठते हुए कका अपने कर्जदारो के चेहरा को पढ़ रहे थे ......सब गाव वाला कार के उड़ाते धुर्रा में खांस रहे है ..चल दिस डोकरा ..

         फेर शहर में बहु बेटा वो भयंकर खखार नही झेल पाए ..बाबूजी ये बीडी बंद करो टी वी जैसे लक्छ्न है आपको . दो दिन से बीडी बंद...फेर क्या ,,कका खटिया धर दिए...रामकृष्ण अस्पताल में बीस दिन ले भरती . ... घुर के कांडी हो गे हे गा....नै बांचे ..कका अपने लडके से बोले बाबू अस्पताल में मरहू ..ओकर ले गाव में छोड़ दे मोला ... आई सी यु के बढ़ते बिल को देखते हुए ये आकर्षक सुझाव था ..सो कका खटिया में ही गाव लौटे ....आखिरी बार मिलेने सब गाव वाला पहुचे...गंगा जल है के लाओ ..भुइंया में लेटा दो..बछरू पूंछी ...कका बोले ..मरत तो हो जी ..एक बीडी तो पीवा..एक बीड़ी के धुन्गिया में जो खखार  की आजू बाजू झानही का खपरा गिर जाए.. कट्टा सिराते कका टिंग ले खड़ा           गाव वाले एक दुसरे को बखान रहे ..डोकरा ल बीडी पिला के टंच कर देव ..अब देबे बियाज...
                  कका बोले ..बीडी तो बहाना हे गा . उन्हा..साला खाखरे पादे का स्वतन्त्रता नही ...आदमी बाचही...इन्हा आ के तुम्हार संग गोठिया के ...टोटा खुल गया ...सोखवा दूध ला तो भेज बुजा के ....कतका होय हे तोर हिसाब...कई दिनों बाद फिर से बिहिनिया ले कुकरा बांग दिया ..दलीप कका खखारत हे....
अनुभव
(वधानिक चेतावनी- बीडी सिगरेट पीना स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है)

Tuesday, September 9, 2014

निश्चिन्त मृत्यु का कथन

निश्चिन्त मृत्यु का कथन
झुलसे हुए शरीर में केवल वो दो आंखे  ही तो थी जो अब भी पानीदार थी ... और बाते कर रही थी ...बर्न यूनिट के उस बिस्तर पे ढकी.. दर्द से ऐंठती.. उस बैचन रूह को अभी भी . कुछ आखिरी शब्द कहने थे .एक बिधिक दस्तावेज को भरने वाले ...आखिरी शब्द ...शीर्षक था ..मृत्यु पूर्व कथन ..
                       रविवार .की.अघोसित छुट्टी में पुलिस के सिपाही या फिर उस डाक्टर या उस मजिस्ट्रेट के कुछ बहुमूल्य घंटों में से आज जो दो कोरे कागज भरे जायेंगे ..वही है एक झुलसी हुई जिन्दगी का सार ..हर एक पीड़ा की कहानी जो फफोलो के रूप में जो आज उभर आइ थी ..या उन आँखों से  लुढ्कती  कुछ नमकीन खुशिया..
                        वो खुशिया परदे के उस पार से अपनी माँ को बड़े ही संकोच से झांक रही थी ... काले पडे उस शरीर में अपनी माँ को खोजते ... उन तीखे प्रश्नो के बीच
                आग कैसे लगी ...क्या तुम्हे किसी ने जलाया... उस झुलसे शरीर ने अपनी पूरी ताकत से जुड़े हुए होंठो को हिलाने की कोशिस की ..सिफर ..फिर तेज होती सांसो के बीच उस माँ की नजरो ने परदे के उस पार से ही अपने बच्चो को पा  लिया ...जिनमें  संजोये भविष्य के सपने अब  बह रहे थे ..उन आँखों ने उसके बाद क्या क्या देखा..  सोंचा ..पता नही ...लेकिन अब वो कुछ निश्चिन्त थी ...प्रश्न फिर दोहराए गए ...क्या तुम्हे किसी ने जलाया ....अब वो चेहरा हिल रहा था ...नही ..यही तो मतलब था उसका ..नहीं ......परदे के उस पार भी उन बच्चो को सँभाले ठहरी सांसे भी शायद अब निश्चिन्त होंगी ..
अनुभव

Sunday, July 20, 2014

बजरहिन गाय...

बजरहिन गाय...

वो निचट भूरी बजरहिन गाय थी .... सब्जी मण्डी में किनजरते हुए ही  उदन्त बछिया से आठ दंत गाय हुई थी...कभी लाल भाजी की जूरी पे मुह मार दिया तो कभी कुढोये फूल गोभी पे ... सब्जी वाली की नजर चुकी नही की ... सर्पीली जीभ लपक पड़ी  ...  मुह में सब्जी ठुंसे ... लेकिन बाजार का हिसाब  वो अच्छे से समझती थीं सो झट अपनी पीठ आघे कर देती ..ले तन्हु अपन हिस्सा ले ले.. सब्जी के भाव के हिसाब से सब्जी वाली की सोंटी पडती ..सट... रोगही बजरहिन नि तो...ऐसे ही लौठी पुरे दिन  गूंजती  ..और वो एक ठेले से दुसरे युही भीड़ से अपनी पीठ घिसते मौके लपकती..फिर रात गये किसी सेड के निचे ..भिनभिनाती मख्यियो और बस्साते गोबर से लिपटी पूंछ को हिलाते ..जुगाली होती.. दिन भर की मेहनत  का सुवाद और साथ ही कुछ पुरानी धुंधली अपने पन भरी मीठी यादें
                            ..एक अंधियार भरा  कोठा ...एक फैला हुआ मैदान...ठेठवार की पगड़ी और हा अपनी माँ के थन..कभी लगता उस अपनेपन की ओर दौड़ के चले जाऊ..और अब तो वो  खुद गाभिन थी . ...
             ऐसे ही एक सुबह अचानक   वही ठेठवार की पगड़ी  फिर दिखी ... और उसे एक गाड़ी में खीच कर चढ़ाया गया.. फिर क्या वो बाजार पीछे छुटता गया....सामने था खपरे वाला वही अंधियार भरा कोठा ...अपने जैसे काली भूरी कई गायों के बीच वो असमंजस से एक कोने में बैठ गयी ...उसे ये सुगंध मतवाली कर रही थी...उन गायों के बीच वो उनके थन को घुर रही थी..लेकिन पहचान नही पाई...सुबह ठेठवार के साथ पूरी बरदी टनटनाते हुए आघे बढ़ रही थी ...भूरी लाल धूल ...उसे याद आ गया वो हरा मैदान भी ..गाड़ी की आवाज सुन कर भी उसने सड़क नही छोड़ी ..और ठेठवार ने धीमी से सोंटी उसके पीठ पे धर दी ...च्ल्ल्ल्ल...
               सोंटी की धीमी मार ने उसे जगा सा दिया अपनी यादों से जिनमे अब वो मीठा पन नही था ..वो बैचैन हो गयी...अब खली भूंसा सब बेस्वाद...वो खोमचे ठेले सब घूम रहे थे उसके सामने....ठेठवार गुस्सा रहा है ..आठ दिन ले लांघन हस ..कैसे जनमबे...मुह लप्कई के आदत हे ...परोसे कन्हा मिठाही ....अगले दिन वो फिर उसी गाड़ी में धकेल दी गयी ...जब कोठा पीछे छूट रहा था तो उसे लगा गायों की आंखे घुर रही हो ...जैसे कुछ पहचान गयी हों .. पर अपके उसने मुह.झटक लिया मानो कुछ भूलना चाहती हो...गाड़ी उसी  बाजार में जा रुकी ..ठेठवार सामने बैठी सब्जी वाली से कह रहा था . मर जातिस  काकी लाँघन पारे रिहिस..ले अब जा किंजर...
वो सीधे उसी सब्जी वाली के सामने जा पहुची...सब्जी वाली हैरान थी ...फेर आगेस ओ....उसने हलके से सर हिलाया..और झट से जीभ गोभी की ओर लपक गयी ...हट रे बज रहीन नि तो..सब्जी वाली सोंटी टटोल रही थी!!!!उसने अपनी पीठ ख़ुशी से आघे कर दी

अनुभव
          

Saturday, June 21, 2014

झीरम में खेलते बच्चे

झीरम में खेलते बच्चे
लाल आँखों वाला सफ़ेद बाज हवा में तैर रहा था...निचे घांस में घूरता एकटक ...इनही झाड़ियो में घसीटते हुए वो भी नीचे घाटी की ओर सरकता गया .. बांस के झुरमुट में..उसे अपनी चितकबरी वर्दी की बांयी ओर एक जख्म महसूस हुआ..हाफते हुए वो टिक गया एक दीमक की बाम्बी की आड़ से..और ध्यान से उन आवाजो को सुनने लगा ..जो उपर की सड़क से आ रही थी..हवा में बसीयाती बारूद की गंध और गोलियों की आवाज ...गोड़ी भासा के नारे...और हंसी
                    उसने घाव से रिसते खून पे हथेली धर दी लगा शायद अब खून बहना कुछ रुक गया हो .पर दर्द का अहसास अब तक नही था ..था तो केवल वो भयानक भय ..जो झींगुरो की तरह चारो और से उसे घेरे था ..झुन्न्न्न्न्न्न्न्न्न्न..मौत ऐसी ही खामोसी से धीरे धीरे उसकी सांसो में गूंज रही थी ..उसने अपनी आंखे मुंद ली....घर का आंगन .. अपनी माँ के साथ खेलते बच्चे ... ...बच्चे जो जिद्द कर रहे हो पापा आज मेला जायेंगे...बच्चो के गुलाबी गाल ..जिसे उसने युही हाथ बढ़ा कर छूने की कोशिश की .और...खून फिर बहने लगा था ..बिलकुल लाल ..काला गरम् ...उसने अपनी आँखों को फिर बंद कर लिया ...  बच्चे  अब भी खेल रहे थे ...मेला जाने को तैयार ..कलफ वाली नीली साड़ी में महकती बीवी ...और फिर वो खुद बचपन में पहुच गया ...अपनी माँ की गोद में ...माँ की मसालों से भीगी उंगलियों की खुसबू ..... बारूद की गंध ने उसे फिर जगा दिया...
               उपर सड़क से आवाजे निचे उतर रही थी...उसकी सांसे बढने लगी ...उसने कभी मौत को लेकर अब तक सोंचा ही नही था ..खुबसूरत जिन्दगी से दूर ले जाते इस न होने के अहसास के बारे में..जिन सांसो पे कभी ध्यान ही नही दिया वो सिमट रही थी .. अजीब सी सिहरन ..
          लगा इन उतरती आवाजो के पहुचने के पहले ही अपनी बंदूक से ये डर   खत्म कर दू ..आखिर अब तो उसे ढूंढ़ ही लिया जायेगा ..पर फिर  इस विचार को झिडक दिया.कुछ घड़ी ही सही ..अपने उस आंगन को और उस जिन्दगी को ... एक बार फिर देख तो लू ... संगी साथीयो के साथ..उन गलियो में दौड़ते हुए...सामूहिक हंसी  ...सब कुछ कितना मोहक  ..और अब ये भय इन सब से दूर होने का ..अकेले होने का ..फिर उसे लगा जैसे उपर से उतरते ये लोग जल्द ही उस तक आ जाये ..वो इस अकेले पन में जाने से पहले किसी का साथ चाहता था ..अपने दुश्मन का ही सही....आवाज अब बहुत करीब आ गयी थी ..उसने अपनी डबडबायी आंखे खोल ली..... ठीक सामने उसकी जैसी ही वर्दी में कुछ लोग खड़े थे ....तनी हुई बंदूक के सामने ...अब की बार उसने आंखे नही मुंदी ...अपनी आती हुई मौत को देखने के लिए वो अब अकेला नही था...तभी लाल  आँखों वाले बाज ने नीचे अचानक गोता लगाया उड़ गया...चोंच में कुछ सपने दबाय...

अनुभव

Wednesday, May 28, 2014

ममा बचा ले गा

ममाँ औ भांचा
राजिम में मामा औ भांचा के मंदिर ...ठाकुर पुजेरी कहानी कहता है .नदिया ये पार का जो मन्दिर नई है वो ममा है .औ कुलेश्वर महादेव भांचा.. जन्हा पूरा आया तो पैरी महानंदी का पानी मन्दिर उपर  चघना शुरू ..बीच में भांचा बुड़ाने लगता है फेर भांचा चिल्लाही ..बुडत हो ममा ..बचा ले गा ...ममा भांचा का गोहार सुन के सब पानी सोख देता है ..ममा के परसादी से भाचा बाँच गे औ राजिम बस्ती भी..
          राजिम में माघ पुन्नी का मेला भराया ..तो सब भांचा भतरा सकला जाते ... ममा घर जाबो कोरर बरा खाबो...ममा के सायकिल डंडी में बैठ बैठे वहा.दुरिया से महानदी पुलिया दीखता रहा...महानंदी के ठंडा नीला पानी में..ले  भांचा मार डुबकी  ...बुडुक बुडुक ...मामा डूब जाऊंगा न ..नई डुबस बे ..मै तो हो ..चला हाथ गोड ..खिर्रर्र से हंसी मामा की..तौरना सीखना हे के नहीं. ..स्नान ध्यान के बाद कुलेश्वर दर्शन पाछू राजीव लोचन.. इहि  केदार इहि बद्री धाम ...
             और  मेला मैदान ...खचा खच ...सब माल दू रुपिया....माला मुंदरी से लेकर बन्दुक बौन्सुरी तक ..सब माल दू रूपया ..वाह.. रचोली नई हवाई झुला चढ़ेंगे मामा ,,बड ऊँचा हे भांचा डर्रा जबे.. फेर झुला जो उपर चढ़ा तो राजिम नवापारा का पूरा लाईट बग्ग बग्ग करता ..अब मामा डर्रा गए ..रोको रोको ..भांचा हंस रहा है...रात गए  टूरिंग टाकिज का सिनेमा...नदिया के पार..रेती में चद्दर बिछा के मामा बीडी फूक रहे है..कौन दिशा में लेके चला रे बटोहिया..सो गेस का भांचा ..अच्छा कल हिम्मत वाला दिखाहू ..तोर ढिसुम ढिसुम ..पानी टपकत हे सिनेमा खतम चलो रे
                   अब तो कुम्भ का अमृत बरसता है राजिम में कुलेश्वर और राजिम लोचन जुड़ गए मुरमी रोड से ..और नदिया ..अब कुण्ड है ..शाही स्नान ..शाही पोस्टर .और शाही मेला...पानी भी हरिया गया है..ठाकुर पुजेरी कहता है .अब तो पूरा च नई आये महराज ..तो काला भांचा डूबय काला ममा बचाय...परेम सिरा गे हे ..ममा भांचा दुन्नो सज धज के अपन अपन ग्राहिकी देखथे मेला में...खिर्रर्र अजीब सी हंसी हँसा पुजेरी....इन दिनों राजिम वाले मामा जी भी बीमार है ...मिलने पर पता चला फेफड़े का संक्रमण है ...मामा रायपुर में दिखाईये ...मेरी छुट्टी नहीं है नही तो आपको साथ ही ले चलता  ....मामा जी हंस दिए ..खिरर्र......लगा कह रहे हों ..भांचा डूबत हो ..बचा ले
अनुभव