Sunday, September 14, 2014

दलीप कका खखारत हे

दलीप कका खखारत हे...
..आआन्न्न्न्न्न्न्न्न्न्न्न्न्न्न्न्नखाखाकथूऊऊऊऊऊऊऊऊऊऊऊ!
.दलीप कका खखारत हे. ..बा ऊऊऊऊऊ.. परोस के नान नान लईका नीद ले जाग के टोटा फाड़ के रोना शुरू ....अस का बीडी पी के खखाराई हे ओ ..लईका तो लईका सियान आदमी तको झकना जथे ... लेकिन दलीप कका के खाखरने के बाद ही पूरा गाव का कुकरा बांग देता है.. कका का गुड मार्निग ..
             औ फिर लोटा धरे ,खेत कोती वाला मार्निग वाक़.हफर हफर... झुका हुआ शरीर तेजी से मंजिल की ओर.. हाथ में सकेलाया मटमैला धोती ..लाल गमछा  ,,, मुहु में अन्टिना कस घुमता  दातुन ....लकर लकर....ये कका ...सुन तो सोखवा तोर बियाज लौठाहू कहत हे ..ये दे ....पास के पाटा से आवाज आई ...हओ रे तोर महतारी तीर धरा दे आ के झोखथो ..बुजा के ...हफर हफर..पूरा पाटा खलखला गया . हे हे हे...
                   अपनेच खार में मुक्त होते है कका ,, भले ही दू कोस भागे ल पड़े ...काहे.की .एक पन्थ कई काज. कका क असूल .. बीहिनया ही स्नान ध्यान तक खेत खार निरिछ्न और फिर बनिहार लोगो को निर्देश कप्लिट ... फिर नों बजे तक कका पाटा में चार छह झन का बीडी कट्टा महफिल सज जाता ...देशबन्धु  का पन्ना पन्ना सभी बन्धुओ के बीच बटता..और बटती धुन्ग्याती गोला बीडी .. पास ही पड़ी  वो भूरिया  गाँधीडायरी..सट से खुल जाती..गली से आते जाते हर मनखे  पर  ...किसे रे सोखवा !!तोर  तीन हजार होगे हे ...बीडी ले धुन्गीया छोड़ते ही खांसी की अनवरत श्रिंखला ..और कका के अंदर का साहूकार चिल्लाता..बीयाज नई देता तो दूधे पेयुष ल अमरा देता .गाय जनमे हे के नही..
          ले न कका कतका ल अक्केल्ला खाबे.. जा न शहर तोर लईका सोज...जाए के बेरा तो सेवा जतन करवाबे...कका की खांसी रुक गयी .पूरा वसूली कर के जान्हू बाबू रे ऐसे थोड़ी... गाव भर के कर्जदार इसी आस में थे की किसी आखिरी खखार के साथ ही उनको इस ब्याज चक्र से छुटकारा मिल जाएगा ..फेर कब ...एक दिन शहर ले कका के बेटा बहु का मया ठ्ठाया ..कार में आये ..चलो बाबूजी अकेले यंहा क्यों पड़े है..सब मुझे कहते है बाप को अकेले छोड़ दिए हो..गाव भर का मनखे झूम गया ...कका की विदाई...कार में बैठते हुए कका अपने कर्जदारो के चेहरा को पढ़ रहे थे ......सब गाव वाला कार के उड़ाते धुर्रा में खांस रहे है ..चल दिस डोकरा ..

         फेर शहर में बहु बेटा वो भयंकर खखार नही झेल पाए ..बाबूजी ये बीडी बंद करो टी वी जैसे लक्छ्न है आपको . दो दिन से बीडी बंद...फेर क्या ,,कका खटिया धर दिए...रामकृष्ण अस्पताल में बीस दिन ले भरती . ... घुर के कांडी हो गे हे गा....नै बांचे ..कका अपने लडके से बोले बाबू अस्पताल में मरहू ..ओकर ले गाव में छोड़ दे मोला ... आई सी यु के बढ़ते बिल को देखते हुए ये आकर्षक सुझाव था ..सो कका खटिया में ही गाव लौटे ....आखिरी बार मिलेने सब गाव वाला पहुचे...गंगा जल है के लाओ ..भुइंया में लेटा दो..बछरू पूंछी ...कका बोले ..मरत तो हो जी ..एक बीडी तो पीवा..एक बीड़ी के धुन्गिया में जो खखार  की आजू बाजू झानही का खपरा गिर जाए.. कट्टा सिराते कका टिंग ले खड़ा           गाव वाले एक दुसरे को बखान रहे ..डोकरा ल बीडी पिला के टंच कर देव ..अब देबे बियाज...
                  कका बोले ..बीडी तो बहाना हे गा . उन्हा..साला खाखरे पादे का स्वतन्त्रता नही ...आदमी बाचही...इन्हा आ के तुम्हार संग गोठिया के ...टोटा खुल गया ...सोखवा दूध ला तो भेज बुजा के ....कतका होय हे तोर हिसाब...कई दिनों बाद फिर से बिहिनिया ले कुकरा बांग दिया ..दलीप कका खखारत हे....
अनुभव
(वधानिक चेतावनी- बीडी सिगरेट पीना स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है)

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