Thursday, October 9, 2014

महेश गुरूजी

कोन हंसा रे ..महेश गुरूजी
पुराना टाइम में आदमी का गिना चुना नाम प्रचलित रहा..उही रमेश महेश सोहन मोहन..सो उपनाम पहिचान के लिए बड़ा जरुरी था ..जैसे रेचका मुन्ना ..कोंदा मुन्ना ..बडा मुन्ना  ..यंही ले कामेडी आफ एरर जनमता था...
             हमारे नगरपालिका स्कुल में दो महेश एक ही किलास में विराजते थे एक था एकदम अंतिम कोने के अंधियार में गुम हो जाने वाला करिया महेश औ दूसरा पूरी कक्छा का एक चौथाई जगह घेरता हुआ कोंहड़ा जैसे मुड़ी वाला बोड्डा महेश...पहला श्वान गुणों से भरपूर पूरी किलास को चिमट्ता खजुवाता दो दूसरा गाय कस लथर कर केवल मक्खी भगाता बैठा रहता.. ,एक दारी सम्भल लाल गुरूजी दुनो गोड को टेबल में चेप के.. मार गोल्लर कस खर्राटा मार रहे थे..येतका में बाजू के चरोटा भांटा ले बस्साता लू का थपेड़ा कमरा में प्रवेश मारा औ दीवार पे लटका महापुरुष का फोटू हिलना शुरू...कक्छा के  अधियार में बत्तीस दांत चिमक गया..वाहा दे नेहरु जी नाचत हे ..करिया महेश हंस पड़ा..इहिहिहिहीहीहीही...सत्ताईस किसम की बिचित्र हंसी..फेर करिया महेश के हंसी के तारत्व से गुरूजी की तन्द्रा भंग हो गयी...
        कोन हान्सिस बे ...पूरा किलास से एक स्वर उभरा...महेश...ढीला पड़ा नाडा को कसते हुए..गुरूजी पहले महेश तक पहुच गये ...और उसके झुठहा चुंदी की जड़ों को छरिया छरिया के पीठ पे मुठ्का प्रहार शुरू कर दिए...जब पूरा गुस्सा उतर गया तब ही गुरूजी उपर उठे...लेकिन तभी एक कर्ण भेदी भोंगरा आवाज ले पूरा स्कूल गूंज गया...ऒऒऒऒऒऒऒऒऒन..महेश टोटा फाड़ रहा था...क्या हुआ बे चूतिया ..पहिले तो खूब हंस रहा था...महेश अपने बोहाते नाक और सिसकी पे काबू करते हुए बोला...मै कन्हा हंसा गुरूजी ..मै तो बोड्डा महेश हूँ ...करिया महेश हंसा रहा...लेकिन तब तक गुरूजी का हाथ मुह ललिया गया था..सांस थामते हुए बोले ..साला पहिले काबर नही बोला...चल कोई बात नही चुप हो जा...
             ऐसे ही प्रति दिन करिया महेश की प्रत्येक गलती पे पूरा किलास चील्लाता ...महेश किया..औ बोड्डा महेश पिट जाता..अन्ततह बोड्डा महेश ने इस रोज की प्रतारणा के अंत की तरकीब सोंची...परीक्छा के पेपर में गुरूजी के साल भर के मुटका के बदले ...छांट कर एक लोकप्रिय गाली ..उत्तर पुस्तिका में लिख दी . बोड्डा फेल हो गया ..और करीया महेश चीट शास्त्र में पारंगत होने के कारण पास...बोड्डा अब ख़ुश था..लेकिन ये ख़ुशी भी साली फुर्र हो गयी जब फिर से किलास चौंथी में बैठे हुए उसे जानकारी हुई की एक और महेश उसी के कक्छा में एडमिशन लिया है ...खेखड़ी महेश...कोन चिल्लाया रे ...महेश गुरूजी..भद भद
अनुभव

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