Sunday, July 20, 2014

बजरहिन गाय...

बजरहिन गाय...

वो निचट भूरी बजरहिन गाय थी .... सब्जी मण्डी में किनजरते हुए ही  उदन्त बछिया से आठ दंत गाय हुई थी...कभी लाल भाजी की जूरी पे मुह मार दिया तो कभी कुढोये फूल गोभी पे ... सब्जी वाली की नजर चुकी नही की ... सर्पीली जीभ लपक पड़ी  ...  मुह में सब्जी ठुंसे ... लेकिन बाजार का हिसाब  वो अच्छे से समझती थीं सो झट अपनी पीठ आघे कर देती ..ले तन्हु अपन हिस्सा ले ले.. सब्जी के भाव के हिसाब से सब्जी वाली की सोंटी पडती ..सट... रोगही बजरहिन नि तो...ऐसे ही लौठी पुरे दिन  गूंजती  ..और वो एक ठेले से दुसरे युही भीड़ से अपनी पीठ घिसते मौके लपकती..फिर रात गये किसी सेड के निचे ..भिनभिनाती मख्यियो और बस्साते गोबर से लिपटी पूंछ को हिलाते ..जुगाली होती.. दिन भर की मेहनत  का सुवाद और साथ ही कुछ पुरानी धुंधली अपने पन भरी मीठी यादें
                            ..एक अंधियार भरा  कोठा ...एक फैला हुआ मैदान...ठेठवार की पगड़ी और हा अपनी माँ के थन..कभी लगता उस अपनेपन की ओर दौड़ के चले जाऊ..और अब तो वो  खुद गाभिन थी . ...
             ऐसे ही एक सुबह अचानक   वही ठेठवार की पगड़ी  फिर दिखी ... और उसे एक गाड़ी में खीच कर चढ़ाया गया.. फिर क्या वो बाजार पीछे छुटता गया....सामने था खपरे वाला वही अंधियार भरा कोठा ...अपने जैसे काली भूरी कई गायों के बीच वो असमंजस से एक कोने में बैठ गयी ...उसे ये सुगंध मतवाली कर रही थी...उन गायों के बीच वो उनके थन को घुर रही थी..लेकिन पहचान नही पाई...सुबह ठेठवार के साथ पूरी बरदी टनटनाते हुए आघे बढ़ रही थी ...भूरी लाल धूल ...उसे याद आ गया वो हरा मैदान भी ..गाड़ी की आवाज सुन कर भी उसने सड़क नही छोड़ी ..और ठेठवार ने धीमी से सोंटी उसके पीठ पे धर दी ...च्ल्ल्ल्ल...
               सोंटी की धीमी मार ने उसे जगा सा दिया अपनी यादों से जिनमे अब वो मीठा पन नही था ..वो बैचैन हो गयी...अब खली भूंसा सब बेस्वाद...वो खोमचे ठेले सब घूम रहे थे उसके सामने....ठेठवार गुस्सा रहा है ..आठ दिन ले लांघन हस ..कैसे जनमबे...मुह लप्कई के आदत हे ...परोसे कन्हा मिठाही ....अगले दिन वो फिर उसी गाड़ी में धकेल दी गयी ...जब कोठा पीछे छूट रहा था तो उसे लगा गायों की आंखे घुर रही हो ...जैसे कुछ पहचान गयी हों .. पर अपके उसने मुह.झटक लिया मानो कुछ भूलना चाहती हो...गाड़ी उसी  बाजार में जा रुकी ..ठेठवार सामने बैठी सब्जी वाली से कह रहा था . मर जातिस  काकी लाँघन पारे रिहिस..ले अब जा किंजर...
वो सीधे उसी सब्जी वाली के सामने जा पहुची...सब्जी वाली हैरान थी ...फेर आगेस ओ....उसने हलके से सर हिलाया..और झट से जीभ गोभी की ओर लपक गयी ...हट रे बज रहीन नि तो..सब्जी वाली सोंटी टटोल रही थी!!!!उसने अपनी पीठ ख़ुशी से आघे कर दी

अनुभव
          

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