Saturday, July 23, 2022

बांटी और जुगनू दादा की दन्त कथा

बांटी और जुगनू दादा की दन्तकथा,,

सत्ती बाज़ार में ख़ंजर बाजी,,,दो युवक गम्भीर,,,,मेकाहारा में आजु बाजू हथकड़ी लगाए एडमिट है,,और अपने हालत से बेखबर एक दूसरे के पारिवारिक रिश्तों को विशेषणों से नवाज रहें है,,तेरी ,,,,
        इस ऐतिहासिक बैर भाव के अंकुर स्कूल के तीसरी दर्जे से ही फूट पड़े थे,,जब जुगनू ने इंक पेन की नीडल से ,,,बांटी के हाथों में गोदना गोदा,,,बांटी की कलबलाहट,,, नेल कटर से निकली अल्पवयस्क छुरी  से व्यक्त हुई,,,जो उसने प्रतिद्वंदी के कूल्हों में चुभो दी,,, एक महान युद्ध का शंखनाद हो चुका था,,,
               जुगनू दो पसलियों के भरोसे मुशिकल से 5 फिट की काया कायम कर पाया,,,बोचकते बैगी पैंट और ढीली कमीज के पीछे ,,जुगजुगाती अग्नि ,,,वन्ही बिरबिट काले बांटी की बहती नाक ,,सफेद मूछों सी गालों तक  खिंची रहती,,,शरीर सैष्ठव में वो इक्कीस ही था,,, उसके घूंसे जुगनू दादा को कई बार नल्ली में घोलड़ने का मौका दे चुके थे,,स्वाभाविक था कद काठी की इस कमतरी की पूर्ति  ,,मुनासिब बटन चाकू और गुफ़्ती के भरोसे ही कि जा सकती थी,,पर प्रहार से पहले ही जुगनू का हथियार पुरानी बस्ती थाना के पांडे हवलदार के हत्थे चढ़ जाता,,,,,,अंधा कानून,,,
            मुहब्बत इस रक्तिम रंजिश को नए आयामों तक ले गई,,,सरताज पुस्तक भंडार,,,की एकमात्र पुत्री  जब छत में भाग्यश्री सी कबूतर जा जा जा गुनगुनाने लगी,,, उसके ठीक सामने का पाटा पुनः इन दो किरदारों के प्रथम प्रेम का गवाह बना,,,दोनो के लहू से लिखे बेहूदा प्रेम पत्र उसी अनजान शायर की पारले बिस्कुट टाइप पंक्तियों में समाप्त हुए,, फूल है गुलाब का ,,गेंदा न समझना,,,
        पत्रों का हश्र  ये रहा कि तिल्दा नेवरा से आई बरात का स्वागत  दोनो ने जेवनासा में किया,,,भाग्य श्री किसी सलमान के साथ कबूतर सी उड़ चली ,,अब इस विरह पीड़ा में भी दोनो गोल्लर भिड़  चुके थे,,,जुगनू दादा भट्टी की गर्मी में मदमस्त और बांटी अंटा दबा कर पस्त,,, निर्णायक जंग गणेश झांकी की रात लड़ी गई ,,, पहले दोनों एक दूसरे पर खूंखार  कुकुर से गुर्राए,,,फिर मुट्का युध्द में छर्री दर्री हो लिए,,आखिरकार ,,,अपने अपने छुरों से आपस का उदर खोल दिया,,,और लुड़ख लिए,,, ,,
      मेकाहारा में मृत्यु शैया पे ये दोनों योद्धा ,,,एक दूसरे के सामने गर्व भाव से विदा लिए,,, दादागिरी की दंत कथाओ में अमर होकर,,,,,ये ऐसा युध्द था,,जिसकी शुरुवात बेवजह हुई और अंत भी उतना ही अकारण,,, मारवाड़ी श्मशान के गंजेड़ी बताते है कि रात गए आज भी दो परेत एक दूसरे को कुदाते रहते हैं,,तोर,,,
        
        

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