खुशामद खोरी एक आर्ट है ,,,जिसका हाथ इसमें जम गया ,वह बिना पसीना बहाए ही ,,केवल यस सर ,,यस सर करके सफलता का मक्खन खाता है ,, महान लोग भी इन मक्खन बाजो से मुक्त नहीं रह पाए ,,, क्योंकि भक्त और चमचे में फर्क करना आसान नहीं है,, लेकिन सटीक मक्खन बाजी वही है ,,जब मक्खन लगवाने वाला भी इस भोरहा में ही रहे की मेरा प्रशंसक है ,,,और देखने वाले भी चमचागिरी का ठप्पा न लगा पाए ,,इसे कहते है सर उठा कर मक्खन बाजी करना ,,,बाकि रहे वो जो इस आर्ट में ढीले है ,,,वो अपने स्वाभिमान का भजिया तलते,,,इन चमचो को घोडा ,,गधा सब बेच कर बखानते रहते है ,,,और सफल खुशामद खोर ,,कुत्ते की तरह पूंछ हिलाता साहब के घर और दिल दोनों में जगह बना लेता है ,,,
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