Saturday, April 5, 2014

फेर फर जा रे महुआ

फेर फरही महुआ.....
फागुन लगे में महुहारी जाड ....टप्प टप्प गिरता है महुआ झाड़ से फल ..बिहिनिया बिहिनिया.. .चक पिउंरा..अउ रसा भरे गुल्ला...चलो रे...पूरा गाव जंगल में सकला गया...टोकनी थैला लिए...दूर तक फैली मदमस्त सुगंध...
                   सूंघता हुआ लम्बी थूथन वाला काला भालू भी उतरता है पहाड़ी से मचकते मचकते....आखिर उसका भी हिस्सा है इस खजाने में..तो जन्हा हिस्सेदारी है वंहा झगरा लड़ाई भी..पर साल सोखवा को महुआ झाड़ पास भलुवा भेटा गया...सोखवा का तेंदू लौठी नींग दिया .. भागा सोखुवा फेर भलुवा को  पायेगा .. दुनो पैर बिच टांग चेप भकरस ले मुड़ भसरा गिरा दिया  .. जो ककोमाँ ..ता सारा ..पूरा चुंदी मुड़ी झूल गे....लहूलुहान...आज भी घाव ले लहू बोहाता है...फेर वाह रे महुआ .... पहिला कुनकुना धार मारो ..दरद पीरा सब फुर्र्र..
                       गावं भर में जियादा सेन्तु बैगा बिनता है महुआ ..काहे ... बघवा के परसादी ले.. जंहा गावं वाला घुसा जंगल भीतरी वन्ही ...झारी के पाछू दहाड़ा बघवा..भागो रे  ..बड़े जान बघवा ..कोन देखिस रे..रेचका हर ..आवाजे भर सुने हों फेर पोटा कांप गे ददा....ये हर बस ककोमे नही.. टोटा ल धर के खिंच दिही ...पूरा गावं भीतरिया गया...खार में बघवा आ गे हे.....फेर सेन्तु बैगा के  अंगना में टोकना टोकना महुआ...गावं वाले जानते है...सेन्तु बघवा ल ऐसन फूक मारथे के बघवा डिगे नहीं बांध देथे ...जतका बिनना है बिन .पूरा गावं वाला बैगा से गोहार लगईस...तब जा के डोंगरी खार को बांधा सेन्तु बैगा....मजाल फेर बघवा के जो आये...बिनो रे खतरा टल गे हे..
            त्रिलोचन गुप्ता के किराना दूकान में मार महुआ गोंजाय हे ..बोरा बोरा ..सुखा महुआ पांच रूपया किलो..ताजा तीन रूपया...सेन्तु के अंगना जैसे दस अंगना भर सूखता हुआ महुआ...पूरा गावं भर का कर्जा उधारी छोटाता है ईही टाइम..सोखवा पर साल इलाज पानी के लिए दस हजार कर्जा लिया ब्याज किये अठारह हुआ...गुप्ता सेठ गुसिया गया है... ये दारी का पैसा टप्प टप्प उठा रहा है ..पुराना कोंन चुकाएगा रे..भालुवा बघवा से डर्रायेगा तो कैसे छुटेगा करजा...सोखवा अपने घाव पे हाथ फेरते बोला...छोंट दूंगा...सोखवा सोचता है...भालुवा बघवा का घाव तो भरा भी जाए..सेठ का करजा कैसे भारयेगा....फेर फर जा रे महुआ
अनुभव

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