Tuesday, July 3, 2012

कार नहीं का का का ,,,,,,,,र ,,,नहीं तो बेकार 

आदमी की पहचान आज कल उस गाड़ी से जानी जाती है ,,वह जिसमे घूम रहा है ,,,सफारी ,,स्कार्पिओ या पजेरो जैसी एस यु वी में घूमने वाले भले ही रायपुर की ट्रेफिक के लिए सिरदर्द हो ,,लेकिन उनके भरी भरकम राजनितिक व्यक्तित्व का बोझ ऐसी ही बड़ी गाड़ी ढो सकती है ,,मर्सडीज ,बी ऍम डब्लू या ओडी जैसी लम्बी गाडियों में घूमने वाले अपने व्यापारिक व्यस्तता की थकान ,,और अपनी फैलती दुकान,, का भार इन विदेशी कम्पनियों के हवाले कर सुखी होते है ,,,, सेंट्रो ,,मारुती में घुमते माध्यम वर्गी तो ,,अपनी गाड़ी के पे लगे एक स्क्रेच को याद कर सपने में भी कराह उठते है ,,,बचे पुरानी फिअट वाले तो उनकी औकात यह है की उन्हें रिक्शावाले भी साइड देना पसंद नहीं करते ,,,,अगर वाहनों के महत्व की तुलना पौराणिक हिन्दू देवताओ से करे तो कुछ ऐसी ही तस्वीर दिखाई पड़ती है ,,,,,,,,,
देवताओ में सबसे भारी एवं गज शीशधारी गणेश जी का वाहन चूहे को चुना गया ,,,यह तो अद्भुत व्यंग है ,,,वन्ही धन और समृधि की देवी श्री लक्ष्मी के स्वामी विष्णु भगवान का वाहन गरुड़ गति और पिक अप में तो बेहतर है लेकिन स्टाइल और डिज़ाइन में नारायण के स्टेटस का नहीं लगता ,,और माइलेज के हिसाब से मुर्दाखोर होने के कारण थोडा मिडिल क्लास लगता है ,,,इस मामले में भगवान शिव का वाहन नंदी जरुर लेण्ड क्रुसर वाला एस यु वी प्रभाव रखता है ,,जो उनके निवास स्थान पहाड़ो के लिए उपयुक्त भी,,इन्द्र का वाहन हाथी भी उनकी राजा वाली हैसियत के अनुरूप जरुर है लेकिन संसार के सभी तपो को भंग करने वाले उनके काम के लायक गति की अपेक्षा इससे नहीं की जा सकती ,,,,,जो भी हो देवताओ के लिए चुने गए वाहनों में तो और भी अधिक विरोधाभास दिखाई पड़ता है ,,,,खैर जो भी हो यह तो तय है ,,की वाहन का चयन ,आजकल ,काम की जगह पहचान से ज्यादा प्रभावित होता है ,,,,तभी तो २१ वी सदी में भारत के नेताओ ने भी अपनी ग्लोबल पहचान दिखाने के लिए अम्बेसडर को छोड़ कर महगी कारो के काफिले को चुना है ,,आखिर वही तो बढ़ते भारत की पहचान है

अनुभव

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