Sunday, November 23, 2025

बरहा औ जेपरा

घों–घों : जेपरा और बरहा 

खड़े धान खेत के मेड़           बीहीनियाँ के बेरा

जेपरा झाड़ी के पांतर काम करत रिहिस —
अचानक धकर–लकर झाड़ ऊपर चाघे 
औ झाड़ कौन? बमरी
जंगली सूरा घों घों करत कूदाइस,,

जेपरा कांटा–कुंटी ले खोर्राये
लुंगी एके झटका में बोचक गे 
नीचे रहिगे हरियर चड्डा अउ लटकत नाड़ा।

कैसे उतरतीस—
बरहा नीचे छेक के धऊक–धऊक करत बइठे रिहिस,
घों–घों, घों–घों…

जेपरा के हाथ–गोड़ खोर्रा गे,
लहू बोहात रिहिस —
ऊपर आसमान साफ, बीच में लटके हाथ गोड लाल ,,नीचे हरियात खेत में करिया बरहा घों घों,,

सारा बेटा बीच खेत में चार पांच पीला दे  रहे —
“अब कर ले लुवाठ, खेती–किसानी!”
पीरा में मरो, कानून में भी।

दू दिन बाद
जेपरा आवेदन धरे किंजरत रिहिस —
ये दफ्तर ले ऊ दफ्तर,
ये कुर्सी ले ऊ कुर्सी।

तहसीलदार —
“जंगली जीव है तो बनविभाग जाव।”

ऐति रेंजर साहब —
“आधा मुआवजा त तब मिलथे जब हाथ–गोड़ टूट जाव।
खोरचाये–हपटाये के तो कऊनो हिसाब नई।”

बोले — “गार्ड भेज के खेदवा देबो।”

दू हप्ता बीत गे।
ना गार्ड, ना खबर।
बरहा फेर रोजे दौड़ाथ हे —ये ददा,,का करबे
धान में, मेड़ में, सपनाए में। सारा बेटा

 दुख भरे दिमाग में
सरपंच के समाधान ,,नया आइडिया 
“सुतली बम में गहूं  आटा लपेट के रात में खेत भीतर फेक दे…
बस – सूरा खतम।

फेर एक बिहिनिया
खार में सूरा छर्री–दर्री परे मिलिस —
जबड़ा फाट गए रहे
अब काय करबो? सरपंच
जवाब सब्बो के मन के —
“भून के खा लेओ… पंचायत भर, फेर सोखा देओ।”
बिककट मिठाय रिहिस,भुने बरहा के मांस ,,ढोल ढोल तरी,,मिर्चा के फोरन ,,तेल  नई लागय,,,चर्बी में डबक जाहि,, पोटा कलेजी सब सपाट
जेन नई चखिस — कल्लाबे करही,,शिकायत

हफ्ता भर बाद
सब अधिकारी एके दिन धावा मारिन —
सोखड़ी मास पर्रा भर के के,जेपरा के छान्ही  में ,,बयान, मौका जांच, पंचनामा।
चार्ज बन पशु मारा है। ख़ाने खातिर।

रेंजर साहेब धार्मिक टाइप —
“तूमन बराहा अवतार मार दिए रे…हरामखोरो
गम्भीर धारा लगेगा!”

गाँव भर हँसा —
फेर रेंजर गंभीर।

जेपरा उखरू बैठ के सोचत रिहिस —
“मोला होदरत रिहिस त ओखर ऊपर कोनो धारा नई।
मय खाये तो मुआमला,, जम्मो  गांव चखा हरे साहब
हे… भगवान।”

एकतरफा कानून के पाटा में जेपरा दो तरफा पिसात।

सरपंच फारेस्ट गार्ड ले फुसफुसात हरे —
“समाधान निकलही साहब, सब्बो का भला हो।”

और फेर का हवा  पानी बदल गए
गरुवा डॉक्टर पोस्टमार्टम कर दीस —
“देवार डेरा का देशी सूरा था
जंगली पशु अधिनियम में नइ आवे।”

बस —
केस साफ।
जेपरा की बांच गे,,सरपंच के बुद्धि
औ मुआवजा?
एक गाड़ा धान का  बेचके
ऊपर से नीचे तक पूरा चुक्ता।बाबू आबू सब सेट,,रेंजर साहब बोलिस पूजा पाठ करवा लेबे,, बराह अवतार

धान खेत में आज भी रात–बिरात,,बरहा किंजरता है

“घों–घों… घों–घों…”

पर जेपरा अब नई भागथे।
बोलथे —
“कानून खुदे कहे हवय —
देशी सूरा है।
जंगली वाला नई।”

और खेत खार  हँसत  हरे।