Friday, February 24, 2023

सुरेश मामा नही रहे,,,

ये वाक्य बड़ा अधूरा सा है वो,,मुस्कुराहट अब नही रही ,,तिरछी सी अधरों से गुब्बारों में पल प्रति पल फूटती ,,कमाल ये था कि शब्द पूरे नही पड़ते पर अर्थ कंही गहरे गोते लगाते,,,,,,मुझे एक दिन पूछा तुम मुछ कैसे उगा लिए,,मैंने कहा मामा जी थोड़ा मेंच्योड लगूंगा इस खातिर,,बोले फिर दाढ़ी भी गहरी होनी चाहिए गम्भीरता गहन हो जाएगी,,खैर मैंने सब कुछ मुड़वा दिया,, मामा जी उपमा ,,उत्प्रेक्छा के बड़े खिलाड़ी रहे,,,सहजता बड़ी खालिस वस्तु है,,जिसे देख कर लेना सहज लगता है पर सम्भालना बड़ा जटिल ,अनल मामा जी मे  ये सहजता उतनी ही स्वाभाविक थी जितनी हरिशंकर परसाई में चुटीली तीव्रता,,या फिर सचिन तेंदुलकर में स्ट्रेट ड्राइव की कला,,,आज हमने एक खाँटी बाह्मन पारा का वो आदिम शख्श खो दिया जो पिछले मुलाकात में पूछ रहा था,,भांचा  दुरुग में हो या दुर्ग में

No comments:

Post a Comment