Saturday, June 27, 2015

गुटखा

गुटखा
जन्हा मेंछा का पिका फूटा ,,,कि साला ढंग ढंग का हार्मोन ऎसा खेल खेलता है कि बोचकता हाफ पेंट ,,पतलून हो जाता है ,,,माने हुआ छोकरा जवा रे,,,,मन कूदने लगता है की कुछ नया करू और इसी दूराहे पे हमारे मोहल्ले के युवा दो टीम बाँट लिए,,एक थी जिंदगी को धुवें में उड़ाने वाली पलायन वादी धूम्रपानी कौम औ दूसरी सब कुछ को चबा जाने वाले दृढ इरादों से लबरेज गुटखेरी कौम ,,,जन्हा धूम्रपानी कौम,,,गोला बीड़ी परम्परा के गौरव को समेटे ब्रिस्टल औ विल्स की दण्डी लिए कोई  कोलकी खोजती थी दुबक कर  नेट प्रेक्टिस करने वास्ते,,वही दूसरी कौम को सार्वजनिक मंच के बीचो बिच अपनी जवानी की उदघोसना का हथियार मिल गया था ,,,गुटखा,,,
                पान चबाने की ऐतिहासिक कला के छेत्र में गुटखा वो क्रांति थी,,,जो अस्सी के दशक में सर्वप्रथम टेलीविजन में जलाल आगा से उद्घोषित हुई ,,,,बरातियों का स्वागत पान पराग से कीजिये,,,, और सभी पान ठेले पुकार उट्ठे ,,,अरे आप भी पान पराग के शौकीन है,, तो ये लीजिये पान पराग,,,,
                इस क्रांतिकारी दौर में गुटखा चबाते हुए व्यक्ति को देख कर ऐसा लगता जैसे उसे परम् ब्रह्म प्राप्त हो गए ,,,पान पराग ,,भूंजी सुपारी ठंडाई इलायची और बाबा 120,,, अहाहा हा,,,,जैसे ही कागज की पुड़िया खुलती पुरे माहौल निर्वाण भाव से भर जाता,,,और कई मुफ्तखोर हाँथ पुड़िया की ओर लपलपा जाते,,,कचरंग क्चरनग चगलाते  गुटखे से भरे मुख पीक  प्रकछेपन के लांचिंग पेड़ बन गए  ,,,पिच्च ,,,पिच्च ,,,एक पतली सी भूरी गुलाबी धार जो शहर के हर कोने में आपके अस्तित्व के हस्ताकच्छर करते चलती,,  लेकिन यह समाजवाद  भी जल्द ही पूंजीवादी विषमता का शिकार हुआ,,,और कई नए ब्रांड उभर आये,,जन्म हुआ लटकती हुई पाउच संस्कृति का ,,,ऊँचे लोग ऊँची पसंद जैसी उदघोसना करती मानिकचन्द खाने वाले रईस और यामू के पचास पैसे के पाउच को चगलते सर्वहारा गरीब,,,, इस विभाजन ने एकता में वो दरार डाली की ,,,,धीरे धीरे नई पीढ़ी को गुटखा गुड़ाखू सा बिलो स्टेंडर्ड प्रतीत होने लगा,,,,आखिरी चोट सरकार ने की जिसे दूसरी सहस्त्राब्दि में जाकर ज्ञात हुआ कि इसके चबाने से कर्क रोग होता है,,,और हर टाकीज में पान पराग के राग की जगह भयंकर रोग विज्ञापनों ने ले ली,,उधर मोहल्ले के उस पीढ़ी का युवापन भी अब प्रौढ़ता की बढ़ चला ,,,अब जवानी की उगली पीक के दाग अखरने लगे तो कवायद शुरू हुई गुटखा मुक्ति की,,आज वो पूरी टीम एक दूसरे को निकोटेक्स से लेकर अजवाइन सौंप के फार्मूले आदान प्रदान कर रही है फेर जवानी का पहला प्यार कन्हा आसानी से भूलता है,,,,,
अनुभव

             
                 

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