Friday, June 26, 2015

बाबा

बाबा नाम दादागिरी की दुनिया में वही महत्व रखता है जैसे इतिहास में विक्रमादित्य की उपाधि ,बाह्मण पारा के पहले बाबा चन्द्रहास दुबे जी के भयंकर मर्दाना किस्सों ने ऐसे उच्च मानक स्थापित किये कि,,आई पी सी की धारा 302 या 307 में डुबकी लगाने से  हुई जेल यात्रा  के बाद ही यह विशेषण किसी के उपनाम के रूप में पुकारा जाता   ,, तँहु आज ले बाबा होगेस,,,टाइप,,,,प्रथम बाबा की तरेरी आँखे और खरखराती आवाज की छबि तो मानो गॉड फादर के अल्पचिनो से लेकर अग्निपथ के बच्चन तक बिगर गई,,आतिश फ़िल्म  में सञ्जयदत्त के नामकरण ने इसे औ पॉपुलर कर दिया , मोहल्ले वासी आज भी कई विधयकों और मंत्रियो को गेंदा माला पहिनाते हुए याद कर उठते है की कैसे उन दिनों फलाना चौक में यही महानुभाव बाबा दादा के लिए फेब्रेट मुगल मोनार्क विस्की के पैग बनाते थे या सिगरेट बारते थे ,,,
              बाद के बाबाओ ने उपाधि अनुरूप बिहनिया से अपना पैग तो सजा लिया फेर उन महान साहसिक घटनाओ की पुनरावृति न कर पाये ,,,सो शहर से चौक और चौक से गल्ली तक बाबागिरी सिमट गई ,, आई पी सी की भारी धाराओ को छोड़ 151 के डबरे में ही डुबकी लगने लगी ,,,,ऐसे ही कुछ आखिरी बाबाओ में सुंदर नगर के बाबा डान ने तो पुरानी बस्ती थाना में जांघिये में बैठ कर पुलिस के पड़ते पट्टे के साथ उपाधि की गरिमा को भी तार तार कर दिया,,,,और आज बाबा उपाधि दादागिरी के शिखर से उत्तर कर योग और धर्म के गढ्डे में गोता लगा लिया है ओ हा तो बाबा रामदेव हो गे हे टाइप,,,, और आखिरी विक्रमदित्यो की तरह इस प्रसिद्ध उपाधि के धारक भी टुच्चेपने की धार में बोहा गए,,,,

अनुभव

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