Sunday, March 2, 2014

मुंडू ठेठवार का परेत

मुंडू ठेठवार का परेत
मुंडू ठेठवार पर चार हजार की उधारी थी बट्टू गोउठिया रोज पेराहि देते थे..मुंडू ने सिलयारी भट्टी में दो बोतल मसाला ठर्रा चढ़ाया..रात दस ग्यारह बजे रहे होंगे अगार खार के तरिया उपर वाले अमली पेड़ के नीचे टुनकी में लेट लिया ...फेर सुबह दुकलहा लोटा लिए जा रहा था ..देखता क्या है मुंडू का आंखी कान तिरिया गया है मुहु से फ़ेना मारा है...मुंडू निपट लिया..करजा बाड़ी के साथ...वो दिन है और आज.. अमली झाड़ के आस पास जो भी गए रात फटका ..मुंडू ठेठवार का परेत उसको धरता च है ...सोखवा ऊपर दल्लू साहू का दो गाडा धान अधिया का वसूली बाकी था...सायकिल टेरते आता रहा की भसरंग से मुंडु केरियर में कूदा ...और चपक दिया दुनो हाथ से...साँस लटक गयी ..छाती फूल गयी...अगले दिन से सोकवा आंखी तरेरे सारे गाव गली झूमता रहता.. दल्लू साहू को बखानता..तोर.. दल्लू नै छोड़व रे..मै हो रे मुंडू ..तोर ...दल्लू ...कोइ पास फटका की चप्प ले धरा...बैगा के पास दस आदमी ठोंस के ले गए...मिरचा का धुन्गिया मार ...नीम का सांटी से जो सोंटा जो पीठ में लाल रोला उपक गया..फेर मुंडू है की जाए नहीं...तोर दल्लू ...दो मुर्गा कांट ..दो बोतल मसाला चघा..फेर मुंडू नै डिगा..आखिर बैगा बोला दल्लू को बुलावो...देख रे दल्लू ये मुंडू का परेत है ..उधारी पानी छोड़े बिना नै जायेगा...छोड़ नै तो अभी बखानता है कल को एकात बार अकेले में चेप दिया तो तेरा टोटा च मसकेगा....दल्लू पसीना पसीना..बोला छोड़ दे रे सोकवा को मुंडू...उधारी छोड़ रहा हु..लबारी मारू तो मेरे को लोकवा मारे...अचानक सोकवा जोर जोर से हिल्लोरा मारा ..मुहु से दे फेना..और एक तरफ लुढ़क गया..मुंडू परेत उतर गिया..तीन दिन गए सोकवा एकदम ठीक ..फिर दल्लू घूर के देखे जरुर पर कभी उधारी का जिकर नै किया...तब से गाव में कोई उधारी नै देता....साला सभी कर्जा दार को मुंडू ठेठवार धर देता है..बोल के भी मांगे तो भी नै देना..नै धरेगा दाऊ मेरेको नै धरेगा..लौटा दूंगा ..दे दे पर कौन भरोसा भुत परेत का ..स्टाम्प लिखा पढ़ी सब फेल..गाव वाला कापरेटिव बैंक मनेजर बदली का अरजी दिया है..रिपोट में लिखा गाव में मुडू परेत है सो लोन नै बाट सकते
अनुभव

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