Sunday, January 29, 2012


पागल तापस ,,,,,,रायपुर के इतिहास का  दस्तावेज ,,,,,

रायपुर   शहर में वैसे  तो पागलो  की कमी  नहीं  है फिर  भी  एक युगातित   पागल इन सबो में खास है ,,,उसका जनप्रचलित नाम है तापस ,,,दीवारों पर चिपके गुप्त एवं चिकित्सीय    किस्म के विज्ञापनों की चलती फिरती छबी ,,,,,गए तीस वर्षो से तो मै उसे इसी तरह देख रहा हु ,,,पुराने शहर की सीमा आप तापस के विचरण छेत्र से जान सकते है ,,रामसागर पारा से कोतवाली ,,,लाखेनगर से लेकर बूढ़ा पारा ,,,,तापस इस त्रिकोण पर मानो घडी की सुई  की तरह हजारो वर्षो से तेजी से चक्कर काट रहा है ,,, और मुक्तिबोध जी की कविता के  ब्रह्मराक्छ्स की तरह कोई मंत्र बुदबुदाते चलता है ,,,,इतने दिनों में रायपुर में काफी कुछ बदल गया ,,राजधानी बनी ,,,लाल और पीली बत्ती की गाडियों से शहर की सड़के पट गयी ,,,,लघुशंका एवं जुए के अड्डो के रूप में प्रचलित  खंडहरों पे भी काम्प्लेक्स एवं मॉल तन गए ,,,,लेकिन तापस मानो चलते  फिरते  प्रेत  की तरह आज तक नहीं बदला ,,,,उसने बाजारवाद के प्रभाव में कभी बाबा या चमत्कारिक पुरुस बनने की कोशिस नहीं की ,,तब जबकि उसमे ये सभी संभावनाए निहित है और दौर भी ऐसे लोगो का है ,,,या फिर उसे कोई ऐसा व्यावसायिक सोंच वाला प्रमोटर नहीं मिला जो उसकी नग्नता और पागलपन भरी हरकतों में से कोई चमत्कारी शक्ति खोज सके ,,,,,तापस ने छत्तीसगढ़ को बनते देखा ,,बढ़ते देखा ,,,यंहा के संसाधनों के अंधाधुन्द उपयोग से ,, स्पंज आयरन एवं कोल मायनिग से बरसते धन से ,,,घरो को बंगलो में ,,फिएट को बी ऍम डब्लू  जैसी कारो पे बदलते देखा ,,,,लेकिन वो कल  भी नंगा था आज भी नंगा है ,,,एक आम  छत्तीसगढ़इया की जिन्दगी की तरह जो अपने संसाधनों को लुटते तो देख रहा है ,,लेकिन उसकी जिन्दगी आज भी उस लाभ से वंचित है ,,,जो उसका वाजिब हक़ है ,,,,,,
                                 तापस रायपुर के इतिहास का वो दस्तावेज है जो राजनितिक व्यवस्था को इस नग्न सत्य का दर्शन कराता है की दो रूपया चावल योजना से पहले भी यह धरती उसका पेट भर देती थी ,,लेकिन इस माटी के संसाधन लुटाये जा रहे है तो फिर बदलाव हर मट्टी के घर  तक दिखना चाहिए ,,,,

अनुभव

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