Friday, June 11, 2021

हिन्द महासागर से चल कर दक्खिनी मानसून,,,यकायक छत छप्परा से रदरदाने लगा ,,,मोरियों में गुनगुनाने लगा,, चंहु ओर गीला गीला पानी,,,चटकती माटी में रेंगते रोएंदार भूंसा कीरा,,,हरियाते चरोटे की भाजी और,,,भूरे गुलाबी चिखला के गड्ढे,,,,येला किथे,,झरी करत हे,,,,,, तो फिर करे क्या,,,काम काज सब ठप्प है,, ,,,,,,खाली बैठे मनखे की जिह्वा साँप जैसे लपलपा रही है,, 
      मिजाजे मौसम आखिर कह क्या रहा है ,,,गरम चाह,,,मिर्चा भजिया,,, आलू चाप,,, आंय,, का कहे!!!! भाई साहेब ,,खालिस भासा में कहूं तो इसे चखना कहते है,,,स्पोर्टिंग कास्ट,,,दिल की बात बताए,,,लाखों का सावन न जाये,,,,
फिर  खोल बोतल,,,,,,ये विस्की का मौसम है ,,,,,जब तलक दिन ढल कर रात न हो जाये,,,जाम खाली न जाये,,वाला जस्बा,,,
किसी भांटा मैदान में ,,नदिया नरवा किनारे,,,महफ़िल की बानगी देखें,,,, डिस्पोजल में चमचमाती सुनहरे द्रव्य ,,में छर छराती,,,पानी पाउच की धार,,,और गुरमुटाए अखबार में फैले,,फल्ली के दाने ,,आलू भजिये ,,प्याज ,,नमक मिर्चा,,,,ओहो हो हो हो,,,, कृष्ण सुदामा का प्रेम फैल है,, पैग दर पैग ,,,प्रेम ,,,हंसी ,,किस्से कहानी,,,,हर एक पैग खुद के भीतर एक सीढ़ी बना देती है,,,सीढ़ी बढ़ाते जाए,,और अपने भीतर उतरते जाए,,,,,जब तलक ,,लाज के अवरोध फूट न पड़े,,,पीड़ा और थकान निचुड़ जाए,,सिर्फ ,,आनंद ,,आनंद ,,,,,और आंखों की पलकों में घिरते काले बादल,,,,,,विस्की के खुमार में झूमते मानुख ही किसी मोर के भांति ,,ही मानसून का सच्चा अभिवादन करते है,,, ज्यों कह रहे हों
 बरसात के आते ही तौबा न रही बाक़ी
बादल जो नजर आए  हलक भीगते गया

अनुभव
            
 
         
          

              


No comments:

Post a Comment