Wednesday, July 24, 2019

कत्थई केचुआ जब  गीली मिट्टी को भेद कर निकला तो वही पास लाल चीटियों के पंख निकल आये थे ,,मैदान के चारो ओर फैली हरी दूबी  के बीच छोटे गड्ढो में सोए मेढक जाग चुके थे और,,प्राचीन ओपेरा प्रारम्भ हो गया ,,,पीले फूलो से काली पीली तितली ,,ने रस पिया तब चुपके से ,,उनके पराग माथे पर चिपक लिए,,अब वो कंही दूर जाकर नए रंगों में खिलेंगे,,, पिट पिटी सांप ने मुह खोल कर छोटे केकड़ों को निगलना शुरू किया,,,कि ऊपर डंगाल पे बैठे नील कण्ठ की टी टर्राहट ने उसे दुबकने को मजबूर कर दिया,,,,बादल काले होकर जब सफेद बगुलों के पास से उड़ने लगे,,तो  चिरई जाम के झाड़ के नीचे की जमीन जामुनी हो गई,,,और कुकुरमुत्ते ने छाता तान लिया,,,बारिश झरने लगी,,,,,या फिर जिंदगी ,,,पतली भूरी नालियों से होकर मैदान में पसर गई,,,कनखजूरे के बिल में पानी भर गया,, और खुशी भी जिससे ,,,भूरी मैना तो गीली होकर,,,फूल गई,,,ये नीले समुन्दर से उठी ,,उन बूंदों का कमाल ही तो था ,,जो छन कर आसमान से बहते आई ,,और फिर  चमकते हुए,,,नीचे बरसी ,,,ये फिर उड़ जाएंगी ,,पर इंद्रधनुषीय रंगों को बिखेर कर,,,

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