पंचों ने लो हामी भर दी,,,अब पाउडर लाली चुपड़ के सड़क हो जाओ,,फिर क्या? सरपट कदमों से बढ़ती है पूरब की ओर,,,खड़खड़ाते एटलस सायकल के केरियर पे टिफ़िन के जरमनी डब्बे मुह लटकाए झूलते है साथ,,दूर धधकती चिमनियों की ओर,,, धुवें ने रंग अब कोलतारी कर दिया है जगह जगह इस यौवन की तेजी से स्पीड ब्रेकर उभर आये ,,तो फिर दाएं बांये का तकाजा करना ही होगा,, दुराहे अब चौराहे हो चले हैं,कतारों में धचकते ,,,पी पी करते थकान सी हो चली है अब,,ट्रक ट्रालों के संग जरा सांस तो ले लो ,,पंजाबी ढाबों की कड़क सिकी तंदूरी रोटी,,मक्खन में पिघलती हुई और गढियाती उड़द की काली दाल पे लहसुनी छौंक संग ,,खटिये में पसर क्या गए,,,किनारे होकर काले टायरों ने मुह फुला लिया,,,चलो भी अब बढ़ते है बत्तियों से जगमगाती शहरी तहजीब की ओर जंहा के सफेद पोश चौकीदार ,,,सीटियां मार कर रोक ही लेते है,,,लाल पीले होते,,,हरे साइनबोर्ड से झुक कर गुजरिए ,,,अब तो बिखरना हबस चारो गजबजाती नालियों संग बिखर जाती है गलियों मोहल्लों कालोनियों में,,,खम्बों की रोशनियां ,,,बिजली तारों के संग झूलते,,,,,कंही खोपचियों में सज कर बाजार हो जाती है कंही,,,तमक कर फ्लाई ओवर उतर कर मॉल हो जाती है,,,
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