डाइस के उस पार ,,प्रजा है
तंत्र बना मैं औचक सा
भू संहिता से फूटी धारा
,,संग बहा मैं भौचक सा
खसरों को उगते देखा
रिश्तों संग बटते देखा
अंगूठे की नीली निशानी में
माँ का दूध फटते देखा
आँशु भीगे आवेदन देखे
मुस्कुराते प्रतिवेदन देखे
नक्शों में नवभविष्य गढ़ते
दिल चीरते सीमांकन देखे
घांस जमीन अब घांसी की
जंगल जमीन जब बाँकी थी
पट्टो में गावँ बाट गया
खादी का खेल भी रोचक सा
डाइस के उस पार प्रजा है
इस पार खड़ा मैं औचक सा
अनुभव
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