अब युद्ध ही निराकरण है,,नारा भारतीय प्रायद्वीप के उत्तर पश्चिम सीमा के लिये 2400 वर्ष् से गूंज रहा है,,,, उत्तर पश्चिमी सीमा के प्रांत मौर्य राष्ट्रवाद के लिये भी उतने ही अराजक थे जितना आज का कश्मीर,,एक संगठित राष्ट्र के रूप में जब जब भारत खड़ा हुआ,,अपनी भौगोलिक स्थिति और भिन्न सांस्कृतिक कलेवर में,,,हमेशा से ही ये हिस्सा हमारी विदेश नीति के लिये बड़ी चुनौती खड़ा करता रहा
अशोक मोर्य के दौर में प्रारम्भ हुए सीमावर्ती विद्रोह विशाल मौर्य साम्राज्य को ध्वस्त कर् गये,,,गुप्त शासक चन्द्रगुप्त विक्रमादित्य की उत्तरपश्चिमी गड़तंत्रो के खिलाफ युद्ध और विजय की नीति भी गुप्तों के पतन को नही रोक पाई,,,, राजपूत शासक पृथ्वीराज की पराजय किसी प्रेमकथा की बजाय अव्यवस्थित विदेश नीति की परिणीति थी,,,वंही आगे चल कर मुगलों को भी अपने कांधार अभियान की आक्रमक युद्ध नीति का ख़ास फायदा नही मिल पाया
Wednesday, September 21, 2016
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