पर्यटन को निकली बूंदे,, नीले सागर से उठकर कारे बादर चढी फिर मेरे आँगन ,,टिप टिप बरस पड़ी स्वागत है चिर अतिथि,,अपनी महक बिखरा दो जल भून गई भूरी माटी,, शुष्क हृदय हरिया दो!!!
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