गणित का माफिया राज,,
हमारे स्कूली पढ़ाई के दौर में एक विषय ,,का माफिया राज था,, इज्जत और ख़ौफ़ का दूसरा नाम ,,गणित,,गधे और होनहार का फर्क वही तय करता,,गुरुजी की छड़ी की गूंज से उस पहाड़ की चढ़ाई शुरू होती ,,तभी तो उसे कहते थे पहाड़ा ?? क्लास दर क्लास ये चढ़ाई बेहद दुर्गम होती जाती,,,अंकगणित, बीजगणित
के पथरीले रास्ते से,,त्रिकोणमिति,,छेत्रमिति,,समुच्चय,,जैसी अभेद्य चोटियां,, ये माफिया भविष्य के होने वाले कई कला ,,भाषा प्रेमियों की गर्दन प्राथमिक शाला में ही मुरकेट देता,,और आधे बच्चे पहली बोर्ड परीक्छा तक पढ़ाई से पलायन कर लेते,,
गणित माफिया की सांकेतिक भाषा भी थी,,जबकि जमाएं,,,माना कि,,तो ,,,इसलिए,,,ले दे के विद्यार्थी एक्स ,,वाई से जूझता हुआ,,,उत्तर तक हलाकान परेशान पहुच भी गया,,तो इति सिद्धम गड़बड़ा जाता,,,लेफ्ट हेंड साइड ( Lhs) कभी राइट हेंड साइड (Rhs) से मिल नही पाता,, भूसी दक्छिना में एकमात्र राहत थी,,प्रोसीजर में भी अंक मिलते है,,,ये भाषा आगे जाकर जब अल्फा ,,बीटा की बदतमीजी में उतरती तब तक रसायन और भौतिकी के मैदान में भी गणित के गुर्गे न्यूमेरिकल बन कर उतर जाते,,शुरुवात में तो लाभ हानि,,प्रतिशत जैसे मामले दुनिया से जुड़े लगते भी है,,,पर धीरे धीरे इंटीग्रेशन ,,डिफ्रेंसिअशन की अंकीय कलाबाजियां आती जिसका सीधी जिंदगी से कोई सम्बन्ध नही होता,,,इतिहास भूगोल यँहा तक जीव विज्ञान वाले भी,,,अपने ज्ञान को इस दुनिया से जोड़ लेते,,पर इस गणित के अंडर वल्ड का सारा काम दुनिया से छुप कर हट कर चलता,,, हर माता पिता इस अंडर वल्ड का सम्मान करते,,,गणित पढ़ा तो इंजीनयर बनोगे,,मेडिकल में सीट कम होती है,,,इतिहास पढ़ के क्लर्क बनना है क्या,,टाइप,,,इस ख़ौफ़ में कई अन्य विषयों के प्रेमियो की बलि चढ़ा दी जाती,,थोड़ी राहत कामर्स लेकर भविष्य में सी ए बनने का स्वप्न देखने वालों को जरूर मिली,,पर इज्जत का ठेका तो गणित के पास ही था,,,सोंचता हु सही समय पे प्राइवेट
इंजीनियरिंग कॉलेज खुल गए,,नही तो गणित प्रभावित इन पीड़ितों का पुनर्वास कन्हा होता,,,ये बात तो तय है कि गणित के राज में आज का भारत सॉफ्टवेयर उद्योग में ठीक ठाक कर रहा है,,परन्तु मुझे पूरा विश्वास है कि शायद इस माफिया राज का इतना दबाव नही होता,,तो इस देश मे कम से कम दस पन्द्रह रवीन्द्रनाथ टैगोर,जैसे साहित्य नोबल पुरस्कार विजेता और हुवे होते,,जिनकी प्रतिभा की हत्या प्राथमिक शाला में हो गई थी
अनुभव
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