Sunday, June 3, 2018

दाम चुकाना पड़ेगा

दुनिया मे दाम ,,,तो चुकाना ही पड़ता है,,औऱ फिर वो खेल का बचा  दाम हो तो ,,गडूला,,, मौसम आधारित एक भयंकर तकनीकी खेल था,,पहली मानसूनी फुहार से भीगी माटी पर लोहे की छोटी छड़ गड़ाते ,,चलते चलो,,जिसकी छड़ गिरी ,,वो दूसरे की छड़ जंहा तक जाती वँहा से दाम देता,,दाम भी क्या,,ईईईईईईईई चिल्लाते,,, एक टांग की लँगड़ी,,,
          दीपू मुहल्ले में आया नया मुर्गा था,,गडुला की दुनिया मे भी न्यू कमर ,,सो फंस गया,,सुंदर नगर की गली को छेदते खेल की छड़ महादेव घाट के खेतों की ओर बढ़ने लगी,, दीपू पराजित होकर विजेता की छड़ गिरने का इंतजार करता रहा,,पर  जैसे सचिन तेंदुलकर के जैसे माहिर खिलाड़ी ,,पिच के मिजाज को देख कर बल्ला घुमाते है वैसे ही ,,,,पिंचू  की छड़ गीली माटी खोजती गई ,,धसती गई ,,पीछे मोहल्ले के चिढ़ाती औऱ हर्सोल्लास से भरी बच्चों की फौज,,,,,अबे दीपू ,,पूरा दाम दे ल पड़ही,,,,,पिंचू नई,,,छोड़े,,
               दीपू का धैर्य आखिर टूट गया,,,भाई शाम हो गई है,,मेरी मम्मी मारेगी ,,बस,,,पिचू पलटा,, वैसे तो मैं खारुन नदी भी पार करा दुहुँ,, फेर तै नवा हस,,तो चल यही ले दाम छूट दे,,ये तात्कालिक विकट परिस्थितियों में एक बड़ी राहत की खबर थी,,,,दीपू ने लँगड़ी जमाई औऱ फिर ईईईईईईईई, ईईईईईईईई,,,पीछे दौड़ती रेफरियों की फौज,,,बेइज्जती की भयंकर नुमाइश के बीच सूरज ढल गया,,,औऱ दीपू को अगले दिन शाम तक की मोहलत मिली ,,बचे दाम चुकाने को,,
            वो दिन था,,जब दीपू औऱ उसके घर वाले भी गडुला के भयंकर प्रभाव को समझ गए,,बचा दाम देने वास्ते,, दीपू घर से फिर बाहर नही निकला,,,पिंचू के कर्ज के ख़ौफ़ में,,दिन बीते दीपू का परिवार दूसरे मुहल्ले बस गया,,फिर सुना दीपू डाक्टर भी बन गया,,था,,,,एक रोज उसकी क्लिनिक में बीमार पिंचू पहुचा,,भाई पहचान गया तू मेरे को,,,,पिचू खुश था,,डाक्टर,साहब भी,,गडुला की उस छड़ के पुराने हिसाब के बदले वो पिंचू को इंजेक्शन घोप रहे थे,,,और फिर जब बात आई फीस की तो डॉक्टर दीपू बोले,,,भाई अब जा के कट पिट हो गया,, पुराना दाम चूक गया था,,,,
                      
अनुभव

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