पहली जनवरी की गुनगुनाती दुपहरी,,, ऊबता ,,उखड़ा हुआ जूना रास्ता,,गावँ पीछे छोड़ एक बाँधा तक गया,,,किनारे खेत पर बेफिक्र पीली सरसों खड़ी थी,कतार में,,और,बगुले दूर तक घोंघे खाते डकार भर रहे थे,,,उथले पानी मे प्रवासी भूरी बत्तख का झुंड,,,पर कम्बख़्त कैमरा,,,,धोखा दे गया,,,खैर भाजी तोड़ती उस महिला से पूछा,,,का भाजी हरे,,,,, चन्दौरी भाजी,,,फेर तू मन नई खावव येला,,,, मैं बोला,,,खाये के है तो काबर नई खाबो,,,उसने समस्या गिना दी,,,,बने सुधारे पड़हि,,,पताल संग बनाबे तब मिठाहि,,, सब्जी और रेसिपी दोनों साथ लेकर दुपहरी से विदाई ली,,,,नए वर्ष में नवा सुवाद के साथ
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