सोती हुई वो पांच बहने,,
मानसून की पहली झड़ी से पके काले जामुन यूँ बरसे, कि सेन्ट फ्रांसिस चर्च का बैकयार्ड अब जामुनी हो चला था,, सिली मिट्टी पे भटकते रोवैंदार भुंसे के कीड़ों के बीच शुर्ख मलमल कीट भटक रही थी,, जब बादलों से रिसती फीकी धूप जर्मन सिस्टर ब्रिथेट की बूढी नीली आँखों के कोनो पे चमकी ,,,और फिर खुदाई,,,शुरू हो गई; कब्रो में सोती उन पांच सिस्टर्स को जगाने के लिए ,,,
,,, ये सिस्टर्स ईश्वर का सन्देश लेकर यंहा कभी आई थी इस वन्य प्रदेश में,,अब केवल बूढी ब्रिथेड ही बची थी ,,जो उस रोज बारिश से उफनती हुई जोंक नदी में कूदी ,,उन बहती सिस्टर्स को बचाने,,उन्मादी झाग छोड़ते भंवर के बीच आखिरी चींख गूंजी फिर वो छटपटाते हाथ खिंच गए भीतर , ,,जब पानी उतरा तब फूला हुआ शरीर किनारे लगा ,, यंही चर्च के पीछे वो संस्कार हुआ जब सभी मुरझाये चेहरे अंतिम प्रार्थना बुदबुदाते रहे और सिस्टर्स के क्राउन पे सजा मलमल का लाल गुलाब ही खिला हुआ था ,,,, मोक्छ के उस दिन के इन्तजार में जब सभी रूहें फिर निकलेंगी अपनी कब्रो से ,,
पर विकास का राजमार्ग यंहा पहिले पहुंच गया,,और अब ये कब्रे ;जो रस्ते पर थी खुद रही थी ,,,,,,,चर्च के दूसरे अनुयाई भी अब यंहा इक्कठे थे फुस्फुसाने लगे ,,हमारे पूर्वजों का मोक्छ ,,,उनकी कच्ची कबरें भी यंही बैकयार्ड में कंही थी,,,,पर कन्हा,,प्रशासन पूरी जमीन तो नही खोद सकता,,,पीटर की रात की शराब सांसों के साथ भभकी जब उसने पूछा ,,,साहब मेरा बाबा घलो इंही गड़ा रहा,,मोक्छ न पाये सन्ही,,,फेर मुवावजा तो हमारा भी तय हो,,,आखिर,,,ब्रिथेड फिर सुबकने लगी,,,,,इन सिस्टर्स के साथ उसने जो मोक्छ का रस्ता यंहा कभी दिखाया था,,,,भटक गया ,,,खुदाई रुक गई,,,कब्र के भीतर रखे ताबूत को तो जामुन की फैली जड़ों ने जाने कब से बेध दिया पर उस क्राउन का जूना मलमली गुलाब वैसे ही खिला हुआ था,,,,
अनुभव
No comments:
Post a Comment