सत्य प्रशासनिक कथा
विधायक का आदेश पत्र तो स्वाभविक है ,,,पर अब की बार तो एक भावुक अपील से भरा हुआ पत्र ,,,पत्रवाहक की बेटी जो सोरम गाँव में ब्याही है कुछ दिन गए विधवा हो गई ,,,अब ससुराल वाले मायके ही नही आने दे रहे उसकी सहायता कीजिये,,, अधेड़ रइदास थाने की बेंच में सिमटा हुआ था,,, खरखराते गले पे काबू कर बोला ,,,इंसुरन्स के पीसा बर लुकलुकाये हे साहब ,,,ओकर सास ससुर ,,,ते पई के मोर बेटी ल नई आन देत हें,अपन गावँ,,,,,,आंसूओ के साथ बाप का जमा दर्द ट्घलने लगा ,,,,
आज अतरिया में शनिचर बाजार है वँहा का एक चक्कर लगता ही है ,,, वन्ही पहुचो ,,,सोरम भी हो आएंगे ,,,थानेदारी उन दिनों बुलेट में होती थी ,,पीछे की सीट पे एक पुराना घाघ हवलदार ,,,और नई नई थानेदारी की रौब से इस्त्री हुई वर्दी में सजे सितारे ,बस इतना ही काफी था गश्त के लिए उन दिनो ,,कोष भर दूर गूंजी फट फ़टी ,,,फट् फट् फट् ,,,सोरम गाँव के सभी गनमान्य बाशिंदे चौपाल में जुट गए,,,साहब आसनस्थ हुए और चाय पानी की औपचारिकता खतम होते तक ,,,,,,,पंचायत सज गई थी
ग्राम पटेल ने मुद्दे की सधी शुरुवात की ,,,किसे आना होइस साहेब,,,,,जंघोरा के रई दास यंहा से किसके घर बहू आई है ,,,,पटेल अचकचाते हुए बोला ,,,मोरे बहू हे साहब ,,इतने में साईकिल टरते रई दास भी पहुंच गया और कुछ समय का अंतराल आत्मीय समधी भेंट के लिए,,,चर्चा आघे बढ़ी ,,,कैसे पटेल इसकी बेटी को मायके क्यों नही जाने देते,,,थानेदारी राग फूटा,,,,इसे कोई बात नही हे साहब,,,जब चाहे जाए,,,,काबर रोकबो,,,और अचानक एक महिला अपने दो छोटे बच्चों और झोले के साथ अवतरित हुई और साहब के पैरो में गिर गई,,,,,मोला बचा ले साहेब नी तो मोर प्रान दे दुहु,,,,रई दास बेटी को सम्भालने में जुट गया,,,,,
अब तक समान्य चर्चा ने गम्भीर मोड़ ले लिया,,,पटेल बोला ,,हमला नइ पता रिहिस ये हर अतका परेशान हे साहब ,,अपन घर जाये बर,,जेन बततिस ता काबर रोकतेन,,,ले समधी आज आये हस तो ले जा,,फैसला हो गया था,,बेटी नाती रईं दास की साईकिल में चघ कर विदा हुए ,,,कुर्सी फिर सजी ही थी,,,कि एक संघर्ष भरी आवाज ने महफ़िल को मोड़ दिया,,,,ये कन्हा के नियाय हे साहब ,,,घर के बेटी बहु के बिदाई तको पुलिस वाला करन्हि,,गलत बात इसे नी होये,,,ध्वनि बढ़ने और फैलने भी लगी ,,अब तक के तमाशबीन फूटने लगे,,,भीड़ जाग गई थी,,,,थानेदार के चारो ओर घेरा बढ़ने लगा,,,,एक आदमी को चुप कराते तो कई लोग मोर्चा सम्भाल लेते,,,,बढ़ती गहमा गहमी को चीरता एक पत्थर भी मंच पे टपक गया,,,,माहोल के इस बदलाव को थानेदारी छटी इंद्री भांप गई,,,जोर की पुलिसिया आवाज फूटी ,,,ठीक है अगर ऐसी बात है तो उनको वापस बुला लेते है,,,बुलेट चालु करो,,बरसते पत्थरो के बीच पलायन शुरू हुआ,,फट् फट् फट्
अगले दिन दोपहर तक सोरम गावँ के सभी क्रान्ति वीर थाने में ऊखरु बैठे लाँठियो के अपने निशान सहला रहे थे,,एक स्वर में बोलते ,,,ये पटेल के करे तमाशा हे माई बाप घर के मामला ल गाव बीच ला के हम मन ल बोज दिस,,नी तो पुलिस ऊपर हमला सपनाये तको नई सकन,,,पटेल घिघयाया,,मैं तो साहब का बात पतिया गया था तुही मन करे हो चिलवास,,,,,इतन में रॅईदास बेटी के साथ थाने की सीढियाँ चढ़ गया,, रिपोट सिपोट रहइन दे साहब महिला बोली ,,कल के उही गाव घर जाना हे ,,सास ससुर माँ बाप बरोबर,,फेर इंसरेन्स के पीसा ल घलो दुंहु कहे हे,,,,,इतने में रईदास ने एक और चिठ्ठी थानेदार के सामने रख दी जिसका मजमून कुछ बदला सा था,,,घरेलू मामला है ,,,हमारे विधानसभा के ही गाँव वाले है ,,सम्वेदना पूर्वक कार्यवाही हो,,,,,,आदेशित
अनुभव
Wednesday, April 1, 2015
प्रशासनिक कथा
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