कौण्डिया .,एक कोती खेत और दूसर कोती दूर तक फैला हुआ डोंगरी ,,औ दुनो बीच पे पिचकाय गाँव कौड़िया,, ,मिटटी के बिखरा हुआ झोपड़ा मन को बरगद नीम लील रहा है, गाव का एक ओर चौहद्दी में फैला है बलुआ पथरा का किला बन्दी,, दूसर कोती बाघ नाला और चारो मुड़ा बिखरा हुआ है खण्डहर जो अपना नायक राजा करिया धुरवा की कहानी ख़ुसफुसाता है,,ओ राजा रे राजा धुरवा,,,,ओ ओ ओ ओ!!!
सौ युद्ध का अपराजित गोंड नायक .....यन्ही कोडिया मे हजार भर की सेना चारो ओर ले घेर दिया..औ करिया कर केवल दस मनखे..फेर करिया डिगा नही कौण्डिया छोड़ा नही ,,..दे..खेंचा धनुस,, औ निकलता तीर..सांय सांय ,,,,तो दू कोष तक ले जान दे ... एक तीर से पांच मनखे बेध देता रहा...एक पहर में पूरा चौरङ्गी सेना साफ़....ऐसे बनी बारह गढ़ वाली कौण्डिया जमीदारी ओ उसका वेभव,,,,
फेर समय तो घुचकता ही है...हमार दादा के आत ले पूरा राज पाट सिरा गया ,,,,गोपाल साय महुआ के झोंक में हाथ फैला के बोले,,,कभू येह सारा खेत हमारा रहा,,,और अब,,,तो फिर जान दो,,,,जुन्ना तीर तलवार सब बेंच गया,,,बांच गया है ये कबर राजा का ,,,,,,,पर करिया धुरवा के इस वारिस राजा का कबर भी कोई खोद दिया,,,गोपाल साय का कहना है,,, हमारा दादा खुदे कबर खोद के निकल गया,,,जगनाथ पूरी जाय बर,,अपना वंसज मन का दुर्दशा नही देख पाया,,पैर का चीन्हा मिला था उही दिशा में,,,,पर गाँव वाले तो कुछ औ कहानी कहते है,,,,यही मन एक रात खान दिन गा ,,,हीरा पन्ना जेवरात पाये बर ,,औ का,,,,,,,,सौ युद्ध का बिजेता का सम्मान अपन वंसज मन ले हार गया ,,,,,,फेर सिराया नही,,आज भी कौण्डिया खुसफुसा रहा है,,ओ राजा धुरवा,,ओ ओ ओ ,,,
अनुभव
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