Saturday, July 25, 2015

वैसे ही

वैसे ही ,,,,,
उस रोज वो डरा हुआ था कल की मीटिंग के आंकड़े पूरे नही थे ,,,इस लिए अपने दफ्तर में , बचे हुए काम देर रात खत्म कर रहा था ,,अचानक फिर बुरी तरह डर गया,,वो ,,,उसने उस कर्मचारी को देखा था ,,जो कुछ अरसे पहले ही मर चूका था,,,,बन्धी हुई  घिग्घी को तोड कर उसने पूछ  ही लिया ,,,बड़ी अजीब बात है कि तुम तो मर चुके हो,, शायद,,, मैंने सुना भी था ,,
             मरा हुआ आदमी मुस्कुराया ,,,बोला ,,हाँ मरा हुआ ही था,,,पर अब तो जिन्दा हु लगता है,,,,, उसकी घिग्घी कुछ और घुल गई  ,,मरने के बाद भी ,,ऐसा क्यू लगता है ,,,उसे परेशान देख कर मरा हुआ आदमी आगे बढ़ा ,,,देखो मैं जब जिन्दा था तब भी  मेरा परिवार खाना खाता था ,,आज भी खा ही लेता है वैसे ही ,,मेरे दोस्त आज भी महफिले सजा रहे है ,, और तुम आज भी मेरी मेज पर वैसे ही फाइले निपटा रहे हो ,वैसे ही,,सब कुछ वैसा ही तो है जैसे मैं जिन्दा था  ,,हाँ,कुछ चीजे जरूर बदल भी गई है पर फिर ये बदलाव भी एक दिन बदल ही जायेगा,,,वैसे ही,,
                      लेकिन फिर भी तुम तो नही हो न,,, वो बोला,,,,मरा हुआ आदमी परेशान सा दिखा,,,,हा नही  हु ,,,पर अब लगता है मैं तब भी कन्हा था,,,या फिर था भी तो जैसे आज हु ,,,,या फिर जैसे तुम हो,,,,आज मैं मर कर कुछ कर नही पाता ,,तुम भी ???  ,,,चीजे तो वैसे ही होती जाती है ,,,,,ये कहते हुए मरा हुआ आदमी मुस्कुराया ,,,,,उसने भी अब माथे का पसीना पोंछ लिया ,,,और फिर से एक नई फ़ाइल उठा ली,,,जैसे कह रहा हो  ठीक है,,,लेकिन मैं तो अभी जिन्दा ही हु,,,, भले ,,, वैसे ही
अनुभव ,,,,

Wednesday, July 22, 2015

डार्विन

डार्विन की थ्योरी सर्वाइवल आफ द फिटेस्ट ,,भी न्यूटन के तीसरे नियम पे ख़तम होती है ,,क्रिया के बदले प्रतिक्रिया,,, हर एक श्रेस्ठ प्रजाति जो इस धरती पे राज करती है अपने अधिकतम विस्तार के पश्चाद् नष्ट हो जाती है डायनोसारस की भाँती ,,और फिर सबसे कमजोर जीव फैलते है बन्दरो से विकसित आज के मानव की तरह ,,,विकास को ही लें,,,अफ्रीका में बन्दर से मेधावी बन्दर होमोसेपीएन्स विकसित हुए ,,विकास का स्रोत अफ्रीका आज सबसे पिछड़ा छेत्र है ,,

Friday, July 17, 2015

नक्शे

नक्शे  खजाने के हुआ करते थे सुना था,, राजश्व विभाग में खेतों के मिले,, पर किसी छुपे खजाने से कम नही,, वैसे ही रोचक,,,ध्यान देने पर पता चला की सभी नक्शे त्रुटि नामक रोग के शिकार है,,खसरों में बटी इनकी सीमा घुचकती चलती है पटवारीयो और आर आई की खिची रेखाओं से और हमारे दस्तखत से,, खसरे मुद्रा की तरह निस्तारी भूमि के बैंक से निकल कर काश्तकारों के खातों में कब बिखर जाते है पता ही नही चलता,,,ये खसरे जब चुनाव पूर्व बिगरते है तो पट्टा के सम्मान पाते है और उसके बाद अतिक्रमण का आरोप ,,खैर अगले चुनाव तक ये आरोप ही पुरुस्कार का रूप धर लेते हैं,,,सो ट्रेज़र हन्टर इसी जुगत में लगे होते हैं कि कैसे इन पट्टो से होते हुए निस्तार भूमि के खजाने तक पहुचा जाये,, और एक दिन सरकारी नक्शो की घांस जमीन इन भूमाफियाओं के ऋण पुस्तिकाओं में खास जमीन की तरह चमकने लगती है