Friday, September 26, 2014

फ़िस्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स

......फ़िस्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स..

करक का सूरज मुड़ी उपर दे भभका मार रहा है...टप्प टप्प .टप्प..निथरता... पसीना  ..फीरंता सांवरा का ..माथा में बंधे साफा ले बोहा बोहा के नदिया नारा कस पूरा शरीर भर फ़ैल गया....फ़िस्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स...बीला भीतरी ले मार  फुफकारा ..... करिया डोमी .. फन छाता कस तान दिया..धूप में चमकता छाता फन ....फ़िस्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स...फिरंता दुनो डाहर ले हाथ को घुमा रहा है .डोमी का करिया आंखी बोक बोक घूरता है..ओऊ ओती डोमी घुमा  की.... सट ले फन को दबोचा ..फिरंता......डोरी कस घूमता पूंछी को दूसरा कोती  ले धर के झोला में भीतराया ही था ..के ....फ़िस्स्स्स्स...झोला के कपड़ा में सांप का दंस ...सुनहरा बुन्द हाथ उपर छटका गया ...पसीना उपर चिमकता...अमरित....
             अमरित ही तो है ...बुढा देव ...भोला बाबा का अशीष....सांप का पेट भरता है सो फिरंता का ..ऐसे ही पूरा सांवरा डेरा का भी...इहि अमरित....सपेरा जाति सांवरा मनखे के झोपड़ा में ,मनखे कम ,सांप जियादा....किसम किसम का सांप ...अहिराज ..घोरा किरैत...मुसलेंडी....ओउ राजा डोमी........ डेरा भर का मनखे ...कंधा में कांवर बोहे ...दुनो कोती चार चार  पिटारा टाँगे...किन्जरता है ...ये गाँव ले वोओ गाँव ...धायं रीयपुर धायं दुरुग ....
                  चौक ठेला देख के जम गिया पिटारा....अचरज ले बोकाय आंखी का घेरा...वो वाला दिखाओ जी..इसका जिहर नै निकाला है साहेब ..बस्तर के जंगल से तीन दिन पाछू पकड़ा.. करंच नाग ...जय हो नाग देवता..जागो ..ढकना हटा ही ..के फिस्स ले फिरंता के हाथ में डस दिया डोमी... ये दे मार दिया...न...फिरंता हाथ घुमाता है लाल लाल दू निशान..झट ले लाल पुडिया खोला ...भीतर में सफेद फिरोजी रंग का गरूर बूटी ले के घाव में चेपक दिया ओउ मारा मन्तर.....बूटी टिपक गया...ओ उतर गया जिहर....अचूक इलाज....वा... वा. टीन्न्न्न्न ले पच्चीस ..पच्चास पैसा सिक्का उछल उछल के सांप के देन्हे में पड़ता है...गुलाल इगरबत्ति...दुध...नरियर का चढावा..ओउ.पांच सौ रूपया गरूर बूटी...जिहर का अचूक दवा....ले सौ दे दे महराज..तोर बर....
            आस पास गाव बेडा ले मनखे यंही आता है ..सावरा बेडा....जिल्ला अस्पताल छोड़ के.....प्राण बचने का गरंटी....कोई सांप काटे...बस उही ठंडा देन्हे वापिस जाता है जिसका डेरा चौहद्दी तक सांस बांकी न रहे...नै तो ...संवरा के फुके पूरा दिन ले चढ़ा जिहर भी उतर जाए.....पर आज फिरंता सायकिल में बिठा के अपना छोटे लईका को जिल्ला इस्पताल लाया है....डाक्टर साहेब डोमी डस दिया है ...जल्दी इंजेक्शन लगा दो.....साहब....जल्दी कर न साहब..आंखी तेड्गात हे ..जिहर चघ रहा है..
              डाक्टर पूछा ...क्यों रे सारा जमाँना भर को सावरा बस्ती मन्तर मारता है ...इसका भी जहर उत्तार लेते...काहे याद आया बे अब इंजेक्शन ....फिरंता के आंखी में पानी उतर गया....अब.का कंहू साहब सब पेट का खेल है... ...सबो सांप  जहरीला इहि मान के आता है मनखे ... जो फूंक के उतरता है ....  वो है मन का डर...फेर जिहर .....नाग के जहर दांत तोड़ दे ..तो औ बात  ....जिहर तो भोला बाबा के अमरित हे .अचूक...  जो कभू लहू में चढ़ गिया तो सांस ही लील देता है....सब जन्तर मन्तर फेल....पर का करबे साहब बेडा भर का रसोई चलाता है ये जिहर का डर.. अब एके लइका है  कई के बेडा भर से लड़ के ले आया हु बचाना है तो बचा लो ...फेर ये मन्तर किसी पे झन खोलना...साहेब

अनुभव

Sunday, September 14, 2014

दलीप कका खखारत हे

दलीप कका खखारत हे...
..आआन्न्न्न्न्न्न्न्न्न्न्न्न्न्न्न्नखाखाकथूऊऊऊऊऊऊऊऊऊऊऊ!
.दलीप कका खखारत हे. ..बा ऊऊऊऊऊ.. परोस के नान नान लईका नीद ले जाग के टोटा फाड़ के रोना शुरू ....अस का बीडी पी के खखाराई हे ओ ..लईका तो लईका सियान आदमी तको झकना जथे ... लेकिन दलीप कका के खाखरने के बाद ही पूरा गाव का कुकरा बांग देता है.. कका का गुड मार्निग ..
             औ फिर लोटा धरे ,खेत कोती वाला मार्निग वाक़.हफर हफर... झुका हुआ शरीर तेजी से मंजिल की ओर.. हाथ में सकेलाया मटमैला धोती ..लाल गमछा  ,,, मुहु में अन्टिना कस घुमता  दातुन ....लकर लकर....ये कका ...सुन तो सोखवा तोर बियाज लौठाहू कहत हे ..ये दे ....पास के पाटा से आवाज आई ...हओ रे तोर महतारी तीर धरा दे आ के झोखथो ..बुजा के ...हफर हफर..पूरा पाटा खलखला गया . हे हे हे...
                   अपनेच खार में मुक्त होते है कका ,, भले ही दू कोस भागे ल पड़े ...काहे.की .एक पन्थ कई काज. कका क असूल .. बीहिनया ही स्नान ध्यान तक खेत खार निरिछ्न और फिर बनिहार लोगो को निर्देश कप्लिट ... फिर नों बजे तक कका पाटा में चार छह झन का बीडी कट्टा महफिल सज जाता ...देशबन्धु  का पन्ना पन्ना सभी बन्धुओ के बीच बटता..और बटती धुन्ग्याती गोला बीडी .. पास ही पड़ी  वो भूरिया  गाँधीडायरी..सट से खुल जाती..गली से आते जाते हर मनखे  पर  ...किसे रे सोखवा !!तोर  तीन हजार होगे हे ...बीडी ले धुन्गीया छोड़ते ही खांसी की अनवरत श्रिंखला ..और कका के अंदर का साहूकार चिल्लाता..बीयाज नई देता तो दूधे पेयुष ल अमरा देता .गाय जनमे हे के नही..
          ले न कका कतका ल अक्केल्ला खाबे.. जा न शहर तोर लईका सोज...जाए के बेरा तो सेवा जतन करवाबे...कका की खांसी रुक गयी .पूरा वसूली कर के जान्हू बाबू रे ऐसे थोड़ी... गाव भर के कर्जदार इसी आस में थे की किसी आखिरी खखार के साथ ही उनको इस ब्याज चक्र से छुटकारा मिल जाएगा ..फेर कब ...एक दिन शहर ले कका के बेटा बहु का मया ठ्ठाया ..कार में आये ..चलो बाबूजी अकेले यंहा क्यों पड़े है..सब मुझे कहते है बाप को अकेले छोड़ दिए हो..गाव भर का मनखे झूम गया ...कका की विदाई...कार में बैठते हुए कका अपने कर्जदारो के चेहरा को पढ़ रहे थे ......सब गाव वाला कार के उड़ाते धुर्रा में खांस रहे है ..चल दिस डोकरा ..

         फेर शहर में बहु बेटा वो भयंकर खखार नही झेल पाए ..बाबूजी ये बीडी बंद करो टी वी जैसे लक्छ्न है आपको . दो दिन से बीडी बंद...फेर क्या ,,कका खटिया धर दिए...रामकृष्ण अस्पताल में बीस दिन ले भरती . ... घुर के कांडी हो गे हे गा....नै बांचे ..कका अपने लडके से बोले बाबू अस्पताल में मरहू ..ओकर ले गाव में छोड़ दे मोला ... आई सी यु के बढ़ते बिल को देखते हुए ये आकर्षक सुझाव था ..सो कका खटिया में ही गाव लौटे ....आखिरी बार मिलेने सब गाव वाला पहुचे...गंगा जल है के लाओ ..भुइंया में लेटा दो..बछरू पूंछी ...कका बोले ..मरत तो हो जी ..एक बीडी तो पीवा..एक बीड़ी के धुन्गिया में जो खखार  की आजू बाजू झानही का खपरा गिर जाए.. कट्टा सिराते कका टिंग ले खड़ा           गाव वाले एक दुसरे को बखान रहे ..डोकरा ल बीडी पिला के टंच कर देव ..अब देबे बियाज...
                  कका बोले ..बीडी तो बहाना हे गा . उन्हा..साला खाखरे पादे का स्वतन्त्रता नही ...आदमी बाचही...इन्हा आ के तुम्हार संग गोठिया के ...टोटा खुल गया ...सोखवा दूध ला तो भेज बुजा के ....कतका होय हे तोर हिसाब...कई दिनों बाद फिर से बिहिनिया ले कुकरा बांग दिया ..दलीप कका खखारत हे....
अनुभव
(वधानिक चेतावनी- बीडी सिगरेट पीना स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है)

Tuesday, September 9, 2014

निश्चिन्त मृत्यु का कथन

निश्चिन्त मृत्यु का कथन
झुलसे हुए शरीर में केवल वो दो आंखे  ही तो थी जो अब भी पानीदार थी ... और बाते कर रही थी ...बर्न यूनिट के उस बिस्तर पे ढकी.. दर्द से ऐंठती.. उस बैचन रूह को अभी भी . कुछ आखिरी शब्द कहने थे .एक बिधिक दस्तावेज को भरने वाले ...आखिरी शब्द ...शीर्षक था ..मृत्यु पूर्व कथन ..
                       रविवार .की.अघोसित छुट्टी में पुलिस के सिपाही या फिर उस डाक्टर या उस मजिस्ट्रेट के कुछ बहुमूल्य घंटों में से आज जो दो कोरे कागज भरे जायेंगे ..वही है एक झुलसी हुई जिन्दगी का सार ..हर एक पीड़ा की कहानी जो फफोलो के रूप में जो आज उभर आइ थी ..या उन आँखों से  लुढ्कती  कुछ नमकीन खुशिया..
                        वो खुशिया परदे के उस पार से अपनी माँ को बड़े ही संकोच से झांक रही थी ... काले पडे उस शरीर में अपनी माँ को खोजते ... उन तीखे प्रश्नो के बीच
                आग कैसे लगी ...क्या तुम्हे किसी ने जलाया... उस झुलसे शरीर ने अपनी पूरी ताकत से जुड़े हुए होंठो को हिलाने की कोशिस की ..सिफर ..फिर तेज होती सांसो के बीच उस माँ की नजरो ने परदे के उस पार से ही अपने बच्चो को पा  लिया ...जिनमें  संजोये भविष्य के सपने अब  बह रहे थे ..उन आँखों ने उसके बाद क्या क्या देखा..  सोंचा ..पता नही ...लेकिन अब वो कुछ निश्चिन्त थी ...प्रश्न फिर दोहराए गए ...क्या तुम्हे किसी ने जलाया ....अब वो चेहरा हिल रहा था ...नही ..यही तो मतलब था उसका ..नहीं ......परदे के उस पार भी उन बच्चो को सँभाले ठहरी सांसे भी शायद अब निश्चिन्त होंगी ..
अनुभव