Wednesday, May 28, 2014

ममा बचा ले गा

ममाँ औ भांचा
राजिम में मामा औ भांचा के मंदिर ...ठाकुर पुजेरी कहानी कहता है .नदिया ये पार का जो मन्दिर नई है वो ममा है .औ कुलेश्वर महादेव भांचा.. जन्हा पूरा आया तो पैरी महानंदी का पानी मन्दिर उपर  चघना शुरू ..बीच में भांचा बुड़ाने लगता है फेर भांचा चिल्लाही ..बुडत हो ममा ..बचा ले गा ...ममा भांचा का गोहार सुन के सब पानी सोख देता है ..ममा के परसादी से भाचा बाँच गे औ राजिम बस्ती भी..
          राजिम में माघ पुन्नी का मेला भराया ..तो सब भांचा भतरा सकला जाते ... ममा घर जाबो कोरर बरा खाबो...ममा के सायकिल डंडी में बैठ बैठे वहा.दुरिया से महानदी पुलिया दीखता रहा...महानंदी के ठंडा नीला पानी में..ले  भांचा मार डुबकी  ...बुडुक बुडुक ...मामा डूब जाऊंगा न ..नई डुबस बे ..मै तो हो ..चला हाथ गोड ..खिर्रर्र से हंसी मामा की..तौरना सीखना हे के नहीं. ..स्नान ध्यान के बाद कुलेश्वर दर्शन पाछू राजीव लोचन.. इहि  केदार इहि बद्री धाम ...
             और  मेला मैदान ...खचा खच ...सब माल दू रुपिया....माला मुंदरी से लेकर बन्दुक बौन्सुरी तक ..सब माल दू रूपया ..वाह.. रचोली नई हवाई झुला चढ़ेंगे मामा ,,बड ऊँचा हे भांचा डर्रा जबे.. फेर झुला जो उपर चढ़ा तो राजिम नवापारा का पूरा लाईट बग्ग बग्ग करता ..अब मामा डर्रा गए ..रोको रोको ..भांचा हंस रहा है...रात गए  टूरिंग टाकिज का सिनेमा...नदिया के पार..रेती में चद्दर बिछा के मामा बीडी फूक रहे है..कौन दिशा में लेके चला रे बटोहिया..सो गेस का भांचा ..अच्छा कल हिम्मत वाला दिखाहू ..तोर ढिसुम ढिसुम ..पानी टपकत हे सिनेमा खतम चलो रे
                   अब तो कुम्भ का अमृत बरसता है राजिम में कुलेश्वर और राजिम लोचन जुड़ गए मुरमी रोड से ..और नदिया ..अब कुण्ड है ..शाही स्नान ..शाही पोस्टर .और शाही मेला...पानी भी हरिया गया है..ठाकुर पुजेरी कहता है .अब तो पूरा च नई आये महराज ..तो काला भांचा डूबय काला ममा बचाय...परेम सिरा गे हे ..ममा भांचा दुन्नो सज धज के अपन अपन ग्राहिकी देखथे मेला में...खिर्रर्र अजीब सी हंसी हँसा पुजेरी....इन दिनों राजिम वाले मामा जी भी बीमार है ...मिलने पर पता चला फेफड़े का संक्रमण है ...मामा रायपुर में दिखाईये ...मेरी छुट्टी नहीं है नही तो आपको साथ ही ले चलता  ....मामा जी हंस दिए ..खिरर्र......लगा कह रहे हों ..भांचा डूबत हो ..बचा ले
अनुभव
                 
    
                            

Friday, May 23, 2014

बचपन का पेड़

बचपन का पेड़
गजब सिस्टम है भाई...अब पेड़ काट के बगीचा बनता है ..मोर्निग वाक के लिए टाईल वाला रास्ता..बच्चो के लिए झुला फिसलपट्टी ..दौड़ धुप के सुस्ताने के लिए सीमेंट का कुर्सी और रंग बिरंगी फुल पौधा का तिरछा इन्ट का  क्यारी ...बचे में हरे घास का लान और फौवारा...ऐसे में कोई सूखा बूढ़ा झाड़ कंहा फिट होगा ...सो कल ये सूखा आम का पेड़ कटने वाला है...
                       लेकिन कभी ये आम का झाड ही पूरा बागीचा था हमारा..गरमी की छुट्टी इसी झाड़ पे सबसे पहिले महकती और कुहुकती थी...की सारा माहोल ही बौरा जाता ..छोटा छोटा गोटा पथरा से मोहल्ले भर के अर्जुन चिड़िया की आंख के लक्छ बेधन प्रेक्टिस में लग जाते..संजू का निशाना सटीक था ..एक गोटा में दू चार हरे आम लस छोड़ते टपक पड़ते ..और साला अपना पथरा डन्गाली बीच से दूसरी ओर किसी प्रेक्टिस रत अर्जुन का माथा लाल कर देता...सो संजू के उपयोग हेतु उपयुक्त गोटा चुनाव का दायित्व ही लाभप्रद था...झाड़ के  बीच में एक  छोटा सा लान भी था..जन्हा से डाली फैली थी ठीक वन्ही..थोडा माटी जमा के घास उग गयी थी ..भरी दोपहर बैठक होती थी वन्ही...फ़िल्मी फोटू वाली ताश..अमिताभ के ऊपर जिसका अमिताभ आये वो जीते..मिथुन पे मिथुन...खेल समाप्ति तक संजू का मिथुन इधर सकला गया..और अपना अमिताभ उसकी गड्डी में ..यानि पराजय...
              झाड़ ऐसे जय पराजय के बहुत से एपिसोड का साक्छी था..स्टम्प तो हमें लेना ही नही पड़ा कभी..चाहे विदेशी मोहल्ले की टीम का टूर क्यू न हो..झाड़ में उकेरी तीन डंडी शास्वत स्टम्प थी जिसकी गिल्ली कभी नही गिरी..इसी के तले पानी में भीगी कटोर कार्क की बाल के प्रहारों को झेला जो पेड तो छोडो बिना गार्ड के छुपे अंग की ओर बिजली की तरह लपकती थी..मारो य  फिर मरवा लो के अंदाज में..जो पहिले बल्ला भी न पकड़ पाए वो भी आत्म सुरक्छा में तेंदुलकर बन गया...आखिर में  हारा हुआ कप्तान अपने पराजय दस्तावेज पे हस्ताक्छर करता था..दस रुपये की राशी सहित ..जो इसी पेड़ के नीचे समोसा भजिया में उड़ा दी जाती...
                      पेड़ तो बुजुर्ग था फिर भी कई नवजात प्रेमियों के उगती प्रेम कथाओ को उसने सहारा दे रक्खा था. शाम के धुन्धकले में..ट्यूशन से लौटती कई राधाओ के कृष्ण यंहा सुरक्छित और असफल  प्रणय निवेदन करते..और मुह लुकवा टाइप प्रेमी पेड़ के उपर ही अपने प्रेमिका का नाम उत्कीर्ण कर उसे एक शास्वत अभिलेख में बदल देते...संजू के साथ ऐसी कई प्रेम कथाओ का आलोचनात्मक समिक्च्छा यंहा हमने की साथ ही अपनी जवानी के सम्भावित सपने भी संजोये..फिर एक दिन वो जवानी भी आ गयी जिसके पास अब पेड़ के नीचे रुकने का समय नही था ...
           और पेड़ के नीचे जो बचपन था उसकी दोपहर ऐसी कमरों में वीडियो गेम तक सिमट गयी थी..वो तब भी बौराता रहा था..पर बगीचे से पत्थर ही बिखर गए थे...शायद इसी लिए अब वो पेड़ भी बुढा गया था सूख गया था....कल वो कटने वाला था मन नहीं माना तो कैसे भी उसके सूखे तने के बीच फिर चढ़ गया..देखा आज भी उस ठूंठ के बीच वो हरी घांस उगी है..संजू भी अब रहा नही पर हमारे कुरेदे निशान अब भी धुंधले हुए बचे है ...उस बूढ़े पेड़ ने अब भी हमारे बचपन को सहेजे हुए रखा था एक माँ की तरह ...वो बचपन जो  कल कट जायेगा उस पेड़ के साथ....
अनुभव