Thursday, March 7, 2013

अरा जरा बिटिया का प्यार ,,,,,,,,,

छुटपन की एक घटना मुझे आज भी भीगा देती है ,,उन दिनों हम लोग गर्मी की छुट्टियों में जांजगीर गए हुए थे ,,,मै जिन रिश्तेदार के घर था ,,उन्होंने बताया की वंहा के एक पारिवारिक मित्र ,,की माता मेरे गाँव कुकेरा से थी ,,,और वो हमसे मिलना चाहती हैं ,,अपनी माँ के साथ एक शाम ,,जब हम उनके घर पहुचे ,,तो हमारा परिचय कुकेरहींन दाई से हुआ ,,,आधी झुकी हुई बुजुर्ग महिला हमसे ऐसे मिली ,,जैसे कोई विदेश में अपने देश के लोगों से मिल रहा हो ,,वो ललक कर हमारे गालो को छूती ,,,और फिर गाँव के एक एक परिवार से अपना रिश्ता स्पष्ट करती,,सत्तर की उम्र की याददाश्त भी मानो फिर युवा हो गयी थी ,,फलाना मंदिर ,,फलाना कका,,,तालाब,,आम जामुन ,,उस एक घंटे में उन्होंने सब कुछ समेट दिया ,,,लम्बे समय से हमारे गावं की उस बेटी ने अपना पैत्रिक घर नहीं देखा था ,,,और शायद फिर देख भी न पाई हों ,,,,लेकिन जांजगीर में बसे अपने बड़े परिवार में घुली मिली उस बहु की बूढी आँखों में आज भी ,,कुकेरा से विदा हुई एक १४ साल की बेटी छुपी हुई थी ,,जो अपने गावं के बच्चो से मिलकर उन् पर वोह आत्मीयता बरसा रही थी ,,जिससे खुद उनके बच्चे कुछ अपरिचित लग रहे थे ,,,हमर गौरहा परिवार के लईका ,,, जाते वक्त उनकी आँखों में मैंने आंशु देखे मानो ,, दुल्हन अपने मायके से विदा हो रही हो ,,, आज उस मुलाकात को याद कर ,,महसूस होता है की अपने पित्र प्रधान सामाजिक ढांचे में हम भले ही अपने परिवार की विदा की बेटियों को उस शिद्दद से याद नहीं रखते ,,,पर वो बेटिया अपने परिवार में पूरी तरह डूब कर भी ,,,अपने भीतर अपने छोड़े हुए परिवार के प्यार को हमसे ज्यादा सहेजे रखती है ,,,जिसकी बारिश में उस दिन हम भीग गए ,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,